नीतीश कुमार-जीतन राम मांझी, तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी (File Photo)
नीतीश कुमार-जीतन राम मांझी, तेजस्वी यादव और मुकेश सहनी (File Photo)

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    नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव (UP Assembly Election 2022) होने हैं। ऐसे लेकर बीजेपी (BJP), समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party), बीएसपी (BSP), कांग्रेस (Congress), आम आदमी पार्टी (AAP) सहित तमाम दलों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है। दूसरी तरफ बिहार (Bihar) के क्षेत्रीय दलों की यूपी में चुनाव लड़ने की दिलचस्पी बढ़ने से सियासी गणित बिगड़ सकता है। लेकिन माना जा रहा है कि ये दल गठबंधन के तहत मैदान में उतर सकते हैं। वैसे इन दलों के अकेले चुनाव लड़ने की उम्मीद बहुत कम है। सूबे में सभी पार्टियों की नजर खासकर ब्राह्मण और दलित वोटरों पर है। 

    ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को देश का चुनाव बताया जा रहा है। दरअसल इस चुनाव के जरिए राष्ट्रीय दलों सहित क्षेत्रीय दल खुद को स्थापित करने की पूरी कोशिश करेंगे। लेकिन बिहार के क्षेत्रीय दलों की यूपी चुनाव में दिलचस्पी लेने से सियासी गणित बिगड़ सकता है। जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने पहले ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। 

    ज्ञात हो कि बिहार के इन दलों की यूपी में भले ही खासी पकड़ न हो लेकिन कुछ इलाकों में जातीय समीकरण को देखते हुए ये दल चुनाव में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं। वीआईपी की नजर खासकर यूपी में पिछड़े समुदाय के वोटरों पर है। दूसरी तरफ राजग में शामिल जेडीयू ने भी यूपी में चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। हालांकि जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि हमारी पार्टी चुनाव भी लड़ेगी और सीटें भी जीतेगी। लेकिन उनका कहना है कि पहले वो अपने सहयोगी दलों से बात करेंगे और फिर बात न बनने पर अकेले मैदान में पार्टी उतरेगी। हालांकि इसके लिए अभी इंतजार करना पड़ेगा। 

    उल्लेखनीय है कि यूपी चुनाव के मद्देनजर सभी पार्टियां खासकर ब्राह्मणों और दलितों को अपने पक्ष में करना चाहती है। राज्य में प्रबुद्ध सम्मलेन का आयोजन सभी पार्टियां कर रही है। जिससे ब्राह्मणों को साधने की कोशिश की जा रही है। सपा ब्राह्मणों, मुस्लिम-यादव गठबंधन सहित आदिवासियों को अपने पक्ष में करने में जुटी है। बीएसपी की नजर ब्राह्मण और दलित वोटरों पर है। 

    गौर हो कि उत्तर प्रदेश की सियासत जातीय समीकरण पर ही टिकी है। यही कारण है कि सभी दल इसे ध्यान में रखकर आगे बढ़ रहे हैं। सूबे में 42 फीसदी से अधिक पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय के लोग है। जिसमें लगभग 21 फीसदी दलित हैं। दलितों-ब्राह्मणों  के वोट बैंक के दम पर ही बीएसपी ने साल 2007 में 206 सीटों पर जीत दर्ज की थी और मायावती सीएम बनीं थी। तब मायावती की इस सोशल इंजीनियरिंग की खूब चर्चा हुई थी। हालांकि साल 2007 के बाद से ही बसपा का वोट प्रतिशत गिरता चला गया है।

    वहीं मायावती ने आज ब्राह्मण सम्मलेन को राजधानी लखनऊ में संबोधित किया। मायावती ने कहा कि ब्राम्हण समाज के लोग भी कहने लगे हैं कि, हमने BJP के प्रलोभन भरे वादों के बहकावे में आकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर बहुत बड़ी गलती की है। BSP की रही सरकार ने ब्राम्हण समाज के लोगों के सुरक्षा, सम्मान, तरक्की के मामले में हर स्तर पर अनेको ऐतिहासिक कार्य किए हैं।