Akhilesh Yadav and Shivpal yadav
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    नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। ऐसे में सभी राजनितिक पार्टियां अपनी तरफ से वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रही हैं। राज्य में वैसे सीधा मुकाबला बीजेपी बनाम समाजवादी पार्टी ही नजर आ रहा है। चुनाव से पहले अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल के बीच रिश्तों में पड़ी खटास अब शायद खत्म हो गई है। दरअसल चाचा-भतीजे जिस तरह से बयान लगातार दे रहे हैं उससे अटकलें तेज हो गई हैं।  

    ज्ञात हो कि प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव लगातार कहते आ रहे हैं कि उन्हें और उनके साथियों को अगर सम्मान मिलेगा तो वह समाजवादी पार्टी चीफ अखिलेश यादव के साथ बैठकर गठबंधन या फिर आगे की रणनीति बनाकार चुनाव मैदान में उतरेंगे। इन सब के बीच अखिलेश यादव ने एक ऐसा बयान दिया है कि जिससे कयास लग रहे हैं कि दोनों नेताओं के बीच विवाद अब खत्म हो गया है। अखिलेश ने एक सवाल के जवाब में मंगलवार को कहा कि शिवपाल यादव का दल अभी छोटा है फिर उनका पूरा सम्मान होगा।  

    ज्ञात हो कि अखिलेश यादव विधानसभा चुनाव के मैदान में उतर चुके हैं। इससे पहले अखिलेश आगरा गए थे। वहां उन्होंने कोविड के दौरान वरिष्ठ नेताओं की मृत्य के बाद परिवार से मुलाकात कर सांत्वना दी थी। फिर वे मंगलवार को मैनपुरी गए थे। जहां एसपी-प्रसपा के गठबंधन को लेकर पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में अखिलेश ने कहा कि शिवपाल यादव का पूरा सम्मान होगा। 

    शिवपाल-अखिलेश के साथ आने से दोनों का फायदा। 

    वहीँ अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि उनकी फोन पर चाचा शिवपाल से बातचीत होती है। दरअसल यादव परिवार में हुई यह लड़ाई सीधे मंच पर आ गई थी। शिवपाल और अखिलेश के बीच झगड़े के बाद समाजवादी पार्टी को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा है। वैसे भी शिवपाल के अलग चुनाव लड़ने से समाजवादी पार्टी को साल 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा है। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी ने मैदान में उतरने से यादव बेल्ट में वोट बंट गए थे। ऐसे में अगर शिवपाल और अखिलेश के बीच मामला सुलझता है तो यकीनन चुनाव में इसका फायदा होगा। क्योंकि अगर दोनों पार्टी चुनाव अलग-अलग लड़ेंगी तो नुकसान ही होगा। 

    एम-वाई गठजोड़ पर फोकस करने की सलाह। 

    दूसरी तरफ खबरें है कि अखिलेश को पिता मुलायम सिंह ने पारंपरिक मुस्लिम-यादव का गठजोड़ बनाकर चुनाव में आगे चलने की सलाह दी है। दरअसल एम-वाई गठबंधन का फायदा शुरू से समाजवादी पार्टी को मिलता रहा है। लेकिन इस चुनाव में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के उतरने से वोटों का बिखराव होगा।

    उल्लेखनीय है कि यूपी विधानसभा चुनाव से पहले दल बदलने का सिलसिला भी शुरू है। मौजूदा समय में बीजेपी के खिलाफ सबसे बड़ी उम्मीद समाजवादी पार्टी में नेताओं को दिख रही है। यही कारण है कि पिछले कुछ समय में कई नेताओं ने सपा का दामन थामा है। इस दौरान सबसे अधिक नुकसान बहुजन समाज पार्टी को हुआ है।