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मनपा चुनाव से पहले राजनीतिक वर्चस्व की तैयारी

नवी मुंबई. लॉकडाउन के कारण लंबित हुए नवी मुंबई मनपा चुनाव से पहले ही शिवसेना और भाजपा के बीच राजनीतिक वर्चस्व की जंग शुरू हो गयी है. असली मुकाबला वर्तमान और पूर्व पालकमंत्री के बीच चल रहा है. जिसमें एक तरफ खुद पूर्व मंत्री ऐरोली के भाजपा विधायक गणेश नाईक हैं तो वहीं दूसरी ओर ठाणे के शिवसेना छत्रप और पालकमंत्री एकनाथ शिंदे हैं जो राज्य में सरकार के एक कद्दावर मंत्री भी हैं और नाईक का गढ़ रही नवी मुंबई पर अपना परचम लहराना चाहते हैं. पालकमंत्री एकनाथ शिंदे नवी मुंबई में हर छोटे बड़े मौके पर पहुंचकर नगरसेवकों का मनोबल बढ़ा रहे हैं जबकि भाजपा नगरसेवक अपने नेता को बुलाने से परहेज कर रहे हैं. यह रुझान नवी मुंबई की राजनीति का नया समीकरण बना रहा है जो देखने वाली बात होगी.  

शिवसेना में एकजुटता, भाजपा में दरार

नवी मुंबई की राजनीति पर गौर करें तो बीते 25 सालों से गणेश नाईक के ईर्द गिर्द घूमती रही है. यूनियन लीडर के बाद शिवसेना से एक्टिव राजनीति में प्रवेश करने वाले गणेश नाईक के लिए आज वही शिवसेना जी का जंजाल बन रही है. हालांकि नाईक अपनी रणनीति के कारण हमेशा टॉप पर रहे हैं. फिलहाल  नाईक के पक्ष में 55 नगरसेवकों का वह कुनबा है जो एनसीपी छोड़कर भाजपा में आया है. हालांकि राज्य में उनके विरोधियों की सरकार है. यह और बात है कि नवी मुंबई की दोनों विधानसभा सीटों पर एक ही पार्टी भाजपा का कब्जा है लेकिन दोनों विधायकों में कोई एकजुटता नहीं हैं. वहीं शिवसेना में छिटपुट पदाधिकारियों को छोड़ दें तो संगठन सक्रिय और एकजुट दिख रहा है और नाईक के खिलाफ मैदान में है. दो जिलाप्रमुखों के साथ ही 10 बड़े जनाधार वाले नगरसेवक शिवसेना की बड़ी ताकत बन गए हैं. ऐसे में सिर्फ अपने वार्ड तक सोंचने वाले भाजपा के नगरसेवक और पार्टी के बड़े पदाधिकारियों की सोच से संगठन सिमटता जा रहा है.

महानगर पालिका पर किसका झंडा

दरअसल कोरोना के कारण आगे धकेल दिए गए चुनाव की तारीख दिसंबर में तय हो सकती है. 3 महीने का समय बचा है इसलिए मनपा में अपना झंडा लहराने की कवायद तेज हो गयी है. गणेश नाईक अपने 55 नगरसेवकों के साथ नवी मुंबई में अपनी सत्ता दुबारा काबिज करना चाहते हैं, जबकि पालकमंत्री एकनाथ शिंदे 3000 करोड़ के बजट वाली महानगर पालिका पर शिवसेना का भगवा लहराकर यह संकेत देना चाहते हैं कि उन्होंने ठाणे जिले को पूरी तरह फतह कर लिया है. हालांकि चुनौतियां कम नहीं हैं, लेकिन महाविकास आघाड़ी का साथ मिल जाने के कारण उनकी जीत की गुंजाईश बढ़ रही है.दोनों पार्टी के बडे़ नेता अपनी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं. इस बीच कांग्रेस और एनसीपी हासिए पर हैं, उन्हें तो बस मौके का इंतजार है.