सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती राजस्थान
सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती राजस्थान

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    राजस्थान : भारत में ऐसे कई धार्मिक स्थल हैं, जो अपनी खासियत के लिए जाने जाते हैं। उन्ही में से एक धार्मिक स्थल हैं जहां सभी लोगों की मन्नतें पूरी होती हैं, इतना ही यहां न केवल मुसलमान ही आते हैं बल्कि हमारे देश के सभी धर्मों के लोग इस खास दरगाह में जातें है।  भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है। यहां पर जहां एक तरफ हर क्षेत्र की बोलियों में भिन्नता पाई जाती है वहीं हर क्षेत्र के तीज−त्यौहारों में भी भिन्नता मिलती है।

    किन्तु कुछ ऐसे भी धार्मिक त्यौहार तथा धार्मिक पुरुषों की याद मनाने वाले दिवस होते हैं, जिन्हें मनाते हुए पूरे भारतवर्ष में एकरूपता की झलक मिलती है। मनुष्य के रास्ते अलग हैं, किन्तु मंजिल एक है, इंसानियत को मानव एकता का यह पैगाम देने वाले महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की याद में राजस्थान के अजमेर शहर में मनाया जाने वाले सालाना उर्स में सभी धर्मों के लोगों का जमावड़ा लगता है।

    विदेशों से भी आते हैं भक्तजन 

    गरीबों के हिमायती और इंसानियत के मसीहा ख्वाजा के इस उर्स में देश−विदेश के मुसलमान तो जुटते ही हैं साथ ही अन्य धर्मों के श्रद्धालु भी बाहर से आते हैं। अमीर, गरीब, बच्चे एवं बूढ़े सभी लोग श्रद्धा से ख्वाजा की मजार पर शीश झुकाकर दुआ मांगते हैं। मध्य एशिया के सीस्तान कस्बे में नौ रजब 530 हिजरी 1143 ई. को एक साधारण कस्बे में जन्मे ख्वाजा साहब के पूर्वज संजार कस्बे में रहते थे इसलिए उन्हें संजरी भी कहा जाता है। उनके खानदान के ख्वाजा इसहाक शामी हिरात के पास चिश्त कस्बे में रहने के कारण उन्हें चिश्ती के नाम से भी जाना जाता है। चौदह वर्ष की अल्पायु में माता बीबी महानुर का इंतकाल होने तथा इसके कुछ दिनों बाद ही पिता गयासुद्दीन का साया सिर से उठने से वह एक तरह से बेसहारा हो गये। ख्वाजा साहब को दो पत्नियों बीबी अमानतुल्ला और बीबी अस्मत शरीक से तीन बेटे और एक बेटी हुई।

    मानव सेवा करना हजरत ख्वाजा का था उद्देश्य 

    महान संत हजरत शेख इब्राहिम कलौंजी से अध्यात्म की प्रेरणा पाने के बाद ख्वाजा को दुनियादारी बेमानी लगने लगी। सत्य एवं ज्ञान की खोज में वह विभिन्न देशों की यात्रा करते हुए मक्का पहुंचे। हज के बाद उनकी मुलाकात मशहूर संत शेख उस्मान हारूनी से हुई और वह उनके शिष्य बन गये। करीब 52 वर्ष की उम्र में ख्वाजा साहब को उनके गुरु ने इस दीक्षा के साथ अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया कि दीन दुखियों की सेवा करना, भूले भटकों को राह दिखाना और माया रूपी संसार की बुराइयों से बचाना एक संत का मुख्य धर्म है।