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  • उत्तर प्रदेश में किसी अप्रत्याशित राजनीतिक घटनाक्रम से इंकार नहीं

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राजेश मिश्र

लखनऊ: रविवार को दिल्ली (Delhi) में संघ और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की संपन्न बैठक के बाद सोमवार की शाम लखनऊ (Lucknow) पहुंचे संघ के सह कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले अपने दो दिन के प्रवास के बाद बुधवार को वापस दिल्ली लौटे। उनके लौटने के अगले दिन गुरूवार को लखनऊ में सियासी पारा अचानक चढ़ गया। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल (Governor Anandi Ben Patel) के मध्य प्रदेश दौरे और सीएम योगी (CM Yogi) के विभिन्न मंडलों से दौरे के बाद गुरूवार की शाम 7 बजे दोनों की मुलाक़ात की खबर आम होते ही बड़े राजनीतिक परिवर्तन के कयास शुरू हो गए।

इस राजनीतिक गहमागहमी की पृष्ठभूमि में बंगाल चुनाव परिणाम, कोरना संक्रमण से निपटने के तरीकोण पर उठते सवाल और यूपी के पंचायत चुनावों में भाजपा की नाकामी के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सत्तारूढ़ भाजपा और पीएम मोदी की छवि के लगातार कुंद होने से बचाने के प्रयास के तौर पर भी इसको देखा जा रहा है। सियासत के जानकारों का कहना है कि लगातार बदल रहे राजनीतिक समीकरणों के बीच हो रही इस मुलाक़ात के कई मायने हैं और उत्तर प्रदेश की सियासत में किसी बड़ी सियासी सर्जरी से इंकार नहीं किया जा सकता है।

हो सकता है मंत्रिमंडल विस्तार

खबरों के मुताबिक़, 28 और 29 मई की तिथि काफी अहम है। इस बीच में सीएम योगी अपना दूसरा मंत्रिमंडल विस्तार भी कर सकते हैं और पीएम मोदी के करीबी माने जाने वाले एमएलसी ए.के. शर्मा को मंत्रिमंडल में शामिल कर चल रही अटकलों को विराम भी दे सकते हैं। फिलहाल सूबे में कैबिनेट मंत्रियों की अधिकतम संख्या 60 हो सकती है और अभी योगी सरकार के मंत्रिमंडल में 6 मंत्री पद अभी भी खाली है। ऐसे में चुनावी साल होने के चलते योगी सरकार अपने कैबिनेट में कुछ नए लोगों को शामिल कर और कुछ को बदलकर असंतुष्टों को संतुष्ट करने की कोशिश कर सकती है। इसके अलावा मंत्रिमंडल से हटाए जाने वाले कुच्छ महत्वपूर्ण चेहरों को संगठन में स्थान दिए जाने की चर्चा है।

आरएसएस का भाजपा पर वह कठोर नियंत्रण नहीं रह गया!

सियासी जानकारों का कहना है कि भाजपा में अन्य दल से आये नेताओं के चलते संघ के प्रति समर्पित नेताओं में कमी आने के कारण आरएसएस का भाजपा पर वह कठोर नियंत्रण नहीं रह गया है जो अटल-आडवाणी के जमाने तक हुआ करता था। आज बीजेपी को मोदी और शाह की भाजपा से नवाजा जाने लगा है। जिस राम मंदिर के मुद्दे को आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद ने गर्म किया और भाजपा अस्तित्व में आई, वहीं राममंदिर मुद्दा मंदिर निर्माण तक मोदी के इर्द गिर्द घूमता दिखा और विश्व हिन्दू परिषद करीब करीब सीन से गायब ही रहा।         

होसबोले ने सियासी नब्ज टटोली 

सूत्रों के मुताबिक़, होसबोले अपने इस दौरे में संघ के पदाधिकारियों के अलावा कुछ व्यक्तिगत संपर्कों के जरिये राजधानी की सियासी नब्ज जरूर टटोली और कुछ लोगों से फोन पर बात भी की, लेकिन सरकार और भाजपा के प्रदेश संगठन से पर्याप्त दूरी बनाई रखी। इस दौरान होसबोले संघ और उससे जुड़े संगठनों की भावी कार्ययोजना पर चर्चा करके कामकाज का फीडबैक लिया और कोरोना प्रबंधन के साथ ही पंचायत चुनाव के बारे में भी जानकारी ली। इसके अलावा उन्होंने संघ के जिले के पदाधिकारियों से फोन पर चर्चा कर जानकारी हासिल कर चले गए।