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लखनऊ. राम मंदिर आन्दोलन (Ram Mandi) से लेकर बाबरी मस्जिद विध्वंस (Babri Demolition Case) और अब राममंदिर निर्माण तक गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों के योगदान को हिन्दुओं द्वारा नहीं भुलाया जा सकता है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु गोरक्षनाथ पीठ के महंत रहे अवैद्यनाथ मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरा थे. महंत अवैद्यनाथ से पहले गोरक्षपीठ के महंत दिग्विजय नाथ उन चंद प्रमुख लेगों में शामिल थे जिन्होंने शुरुआती तौर पर बाबरी मस्जिद को मंदिर में बदलने करने की कल्पना की थी.

अयोध्या के विवादित ढांचे को गिराए जाने से से सम्बंधित मुक़दमे का निर्णय 28 वर्ष बाद आया और जीवित बचे सभी 32 अभियुक्तों को अदालत ने बरी कर दिया. इस तरह इस निर्णय से उन विषयों का पटाक्षेप हो गया जो गत कई वर्षों से सियासत का विषय बने हुए थे. मस्जिद विध्वंस के इस मुकदमें में कुल 49 लोगों के खिलाफ मुकदमा चल रहा था, जिनमें फैसला आने तक अशोक सिंघल, महंत अवैद्यनाथ, परमहंस रामचन्द्र दास, राजमाता विजया राजे सिंधिया, आचार्य गिरिराज किशोर, बाल ठाकरे, विष्णुहरी डालमिया और वैकुण्ठ लाल शर्मा (प्रेम जी) सहित इस मुकदमें से जुड़े कुल 17 लोग गोलोकवासी हो चुके थे.

इसी 02 सितम्बर को इस मुक़दमे में सीबीआई की विशेष अदालत ने सभी जीवित अभियुक्तों के बयान दर्ज करके मामले में सभी अदालती कार्यवाही पूरी कर ली थी. तब अदालत ने 30 सितंबर को फ़ैसला सुनाने का निर्णय लिया था. सुनवाई पूरी होने तक कुल मिलाकर इस मामले में सीबीआई ने अपने पक्ष में 351 गवाह और क़रीब 600 दस्तावेज़ पेश किए गए.

सीबीआई की विशेष अदालत के इस निर्णय का सीएम योगी ने किया स्वागत

विवादित ढाँचे के आरोपियों के बरी किये जाने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रतिक्रया देते हुए CBI की विशेष अदालत के निर्णय का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि “सत्यमेव जयते! CBI की विशेष अदालत के निर्णय का स्वागत है. तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रसित हो पूज्य संतों, @BJP4India नेताओं, विहिप पदाधिकारियों, समाजसेवियों को झूठे मुकदमों में फँसाकर बदनाम किया गया. इस षड्यंत्र के लिए इन्हें जनता से माफी मांगनी चाहिए.” इसके पहले भी सीएम योगी राम मंदिर और कांग्रेस पर हमला करते हुए कहते रहे हैं कि “जो कांग्रेस राम की नहीं, वह हमारे किसी काम की नहीं.”

मंदिर आन्दोलन में गोरक्षपीठ का रहा है अहम योगदान, सीएम योगी सहित पीठ की तीन पीढियां मंदिर आन्दोलन से रहीं जुड़ी

 मंदिर आन्दोलन में गोरक्षपीठ का अहम योगदान रहा है. जानकारों के अनुसार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु गोरक्षनाथ पीठ के महंत रहे अवैद्यनाथ मंदिर आंदोलन के प्रमुख चेहरा थे. राम मंदिर आन्दोलन की शुरुआत भी गोरखनाथ मठ से हुई थी और आज जब इसका पटाक्षेप हुआ तब उसी मठ का मुखिया योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के रूप में सूबे का भी मुखिया है. गोरखनाथ मठ की तीन पीढ़ियां मंदिर आंदोलन से जुड़ी रही हैं. छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने का प्लान उनकी देखरेख में तैयार किया गया था.

इलाहाबाद में वर्ष 1989 में मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद ने जिस धर्म संसद का आयोजन किया था, उसमें अवैद्यनाथ के भाषण ने ही इस आंदोलन का आधार तैयार किया. धर्मसंसद के तीन साल बाद दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहा दिया गया था. महंत अवैद्यनाथ से पहले गोरक्षपीठ के महंत दिग्विजय नाथ उन चंद प्रमुख लेगों में शामिल थे जिन्होंने शुरुआती तौर पर बाबरी मस्जिद को मंदिर में बदलने करने की कल्पना की थी. उन्हीं की अगुवाई में 22 दिसंबर 1949 को विवादित ढांचे के भीतर चोरी-छिपे भगवान राम की प्रतिमा रखवाई गई थी. उस समय हिंदू महासभा के विनायक दामोदर सावरकर के साथ दिग्विजय नाथ ही थे, जिनके हाथ में इस आंदोलन की कमान थी.  

 महंत दिग्विजयनाथ के निधन के बाद मुख्यमंत्री योगी के गुरु महंत अवैद्यनाथ का इस राम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. दिग्विजय नाथ के निधन के बाद उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ ने आंदोलन को आगे बढ़ाया और वे श्रीराम जन्‍म भूमि मुक्‍ति यज्ञ समिति के आजीवन अध्‍यक्ष भी रहे. और इनके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इस आंदोलन को गति देते रहे हैं. सीएम योगी का कहना रहा है कि “राम मंदिर चुनावी मुद्दा नहीं…मेरे लिए जीवन का मिशन है.” संत से श्रीमंत बनने के बाद राम मंदिर मामले पर सीएम योगी के बयान जो भी हों लेकिन राममंदिर की जगह और उसके निर्माण को लेकर वे अपने गुरु  की तरह ही सक्रिय रहे हैं. महंत अवैद्यनाथ के दिगंबर अखाड़े के महंत रामचंद्र परमहंस के साथ बेहद अच्छे संबंध थे. रामचंद्र परमहंस राम जन्मभूमि न्यास के पहले अध्यक्ष भी थे, जिसे मंदिर निर्माण के लिए गठित किया गया था.

बाबरी मस्जिद टूटी, हिंसा हुई, 28 साल बाद 30 सितम्बर को सभी 32 अभियुक्त हुए बरी

गौरतलब है कि इस पूरे घटना में बाबरी मस्जिद टूटी, हिंसा हुई, 28 साल मुकदमा चला और बुधवार 30 सितम्बर को सभी 32 अभियुक्त बरी हुए.  बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए सभी 32 अभियुक्तों को बरी कर दिया. फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि मामले में कोई ठोस सबूत नहीं है और यह विध्वंस सुनियोजित नहीं था. इस मामले में बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल के प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती समेत कुल 32 लोगों को अभियुक्त बनाया गया था.

16वीं सदी में मुग़ल बादशाह बाबर के समय में बनी बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवकों की एक भीड़ ने ढहा दिया था. इसके बाद पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया, हिंसा हुई और सैंकड़ों की संख्या में लोगों की जानें गईं थीं.जिसके बाद मस्जिद विध्वंस के मामले में दो एफ़आईआर दर्ज किए गए. पहली, इसे गिराने वाले कारसेवकों के ख़िलाफ़, तो दूसरी बीजेपी, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और आरएसएस से जुड़े उन 8 लोगों के ख़िलाफ़ थी जिन्होंने रामकथा पार्क में मंच से कथित तौर पर भड़काऊ भाषण दिया था.

दूसरे एफ़आईआर में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, वीएचपी के तत्कालीन महासचिव अशोक सिंघल, बजरंग दल के नेता विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, मुरली मनोहर जोशी, गिरिराज किशोर और विष्णु हरि डालमिया नामज़द किए गए थे. बाद में आरोप पत्र में बाला साहेब ठाकरे, कल्याण सिंह, चंपत राय, धरमदास, महंत नृत्य गोपाल दास और कुछ अन्य लोगों के नाम भी जोड़े गए थे.

अंत में 02 सितम्बर को सीबीआई की विशेष अदालत ने सभी जीवित अभियुक्तों के बयान दर्ज करके मामले में सभी अदालती कार्यवाही पूरी करते हुए 30 सितंबर को फ़ैसला सुनाने का निर्णय लिया. और बुधवार 30 सितम्बर को अपने फैसले में सभी जीवित अभियुक्तों को बरी कर दिया. अदालत में सुनवाई पूरी होने तक मामले में सीबीआई ने अपने पक्ष में कुल 351 गवाह और लगभग 600 दस्तावेज़ पेश किए.

बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड में फैसले के दिन तक जीवित बचे 32 अभियुक्त

लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, डा. राम विलास वेदांती, चंपत राय, महंत धर्मदास, सतीश प्रधान, पवन कुमार पांडेय, लल्लू सिंह, प्रकाश शर्मा, विजय बहादुर सिंह, संतोष दुबे, गांधी यादव, रामजी गुप्ता, ब्रज भूषण शरण सिंह, कमलेश त्रिपाठी, रामचंद्र खत्री, जय भगवान गोयल, ओम प्रकाश पांडेय, अमर नाथ गोयल, जयभान सिंह पवैया, महाराज स्वामी साक्षी, विनय कुमार राय, नवीन भाई शुक्ला, धर्मेंद्र सिंह गुर्जर, आचार्य धमेंद्र देव, सुधीर कुमार कक्कड़ और आरएन श्रीवास्तव.

राजेश मिश्र