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प्रयागराज. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नोएडा प्राधिकरण के पूर्व मुख्य अभियंता यादव सिंह की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका बुधवार को मंजूर कर ली और सीबीआई अदालत द्वारा तय शर्तों को पूरा करने पर सिंह की रिहाई का निर्देश दिया। यादव सिंह की याचिका मंजूर करते हुए अदालत ने कहा, “सीबीआई की यह दलील है कि लॉकडाउन के दौरान अदालतें बंद रहीं। लेकिन इस दौरान ऐसा तो नहीं है कि कोई अपराध नहीं हुआ और ना ही कोई गिरफ्तारी हुई। इसलिए सीबीआई की यह दलील उचित नहीं है। ” अदालत ने विशेष अदालत द्वारा तय शर्तों को पूरा करने पर याचिकाकर्ता को तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया। उल्लेखनीय है कि बुधवार को अदालत ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

हालांकि देर रात अदालत ने अपना निर्णय सार्वजनिक कर दिया। न्यायमूर्ति प्रितिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की पीठ ने कहा, “विशेष अदालत ने अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत याचिकाकर्ता की अर्जी खारिज करने में त्रुटि की है। इसलिए उसका आदेश दरकिनार किया जाता है और याचिकाकर्ता की हिरासत को अवैध ठहराया जाता है। ” तथ्यों के मुताबिक, “याचिकाकर्ता भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी और भ्रष्टाचार निरोधक कानून, 1988 की धारा 13(2) आरडब्लू 13(1) (बी) एवं 13 (1) (डी) के तहत आरोपी है। उसे 10 फरवरी, 2020 को हिरासत में लिया गया और रिमांड के लिए 11 फरवरी को सीबीआई की विशेष अदालत में पेश किया गया। सीबीआई अदालत ने उसे रिमांड पर सीबीआई हिरासत में भेज दिया। हालांकि, 60 दिनों की निर्धारित अवधि में आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया। ” याचिकाकर्ता ने 12 अप्रैल, 2020 को ईमेल के जरिए गाजियाबाद के जिला जज के समक्ष जमानत के लिए अर्जी दाखिल की जिसे जिला जज ने 16 अप्रैल को सीबीआई की विशेष अदालत के पास भेज दिया। हालांकि सीबीआई की विशेष अदालत ने इस आधार पर याचिका खारिज कर दी कि लॉकडाउन की वजह से 60 दिन की सीमा नहीं गिनी जाएगी।