Dussehri Mango

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    राजेश मिश्र

    लखनऊ. खराब मौसम (Bad Weather), कीड़ों (Insects) के असर और कोरोना (Corona) की मार ने इस बार उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मशहूर दशहरी (Dussehri) के कारोबार (Business) को आधा कर दिया है। सामान्य दिनों के मुकाबले इस बार मौसम की मार से बदरंग हुए दशहरी का सीजन भी समय से पहले खत्म हो गया है और कारोबारियों को तगड़ी चपत भी लगी है। बाजार में बिकने के लिए आए दशहरी आमों को काले धब्बे और खराब क्वालिटी के चलते न दाम मिले न ग्राहक। मुंबई और दिल्ली में भी इस बार दशहरी के तलबगार खासे कम हो गए हैं। 

    खराब क्वालिटी ने दशहरी के कारोबारियों को तोड़ कर रख दिया है

    आम तौर पर सालाना 2000 करोड़ रुपये कारोबार वाले दशहरी पर बीते साल भी कोरोना की मार पड़ी थी और लाकडाउन के चलते धंधा घटकर महज 1200 करोड़ रुपये ही रह गया था। इस बार कोरोना से भी ज्यादा खराब क्वालिटी ने दशहरी के कारोबारियों को तोड़ कर रख दिया है। बीते कई सालों में पहली बार यह हुआ है कि दशहरी का धंधा महज 650-700 करोड़ रुपये के बीच ही हो पाया है। दशहरी का सीजन जून के पहले हफ्ते से शुरु होकर जुलाई के दूसरे हफ्ते तक चलता था। इस बार यह दो हफ्ते पहले ही सिमट गया है और अब बाजार में लंगड़ा, चौसा, सफेदा जैसे दूसरे आम नजर आने लगे है। 

    मुंबई और दिल्ली की मंडियों में मांग कम होने के चलते उत्तर प्रदेश के फल पट्टी क्षेत्र काकोरी-मलिहाबाद के बागबानों और आढ़तियों को इस बार अपना माल औने पौने दामों पर स्थानीय मंडियों में ही खपाना पड़ा। सीजन के पीक पर आते-आते जून के तीसरे हफ्ते में दशहरी आम की कीमत घटकर 10-15 रुपये किलो रह गयी थी। हालांकि इस बार भी पहली जून को जब मलिहाबाद में मंडी सजी थी तो दशहरी के दाम 35-40 रुपये किलो पर खुले थे। 

    एंथेर्क्नोज नाम की बीमारी लगी जिससे यह अंदर से सड़ने लगा

    मलीहाबाद की मशहूर नफीस नर्सरी के मालिक शबीहुल हसन का कहना है कि मानसून के पहले ही हुई कई बार की बारिश के कारण दशहरी पर काले धब्बे पड़ गए जिसके चलते इसकी कीमतों पर असर पड़ा।  इसके बाद दशहरी को एंथेर्क्नोज नाम की बीमारी लगी जिससे यह अंदर से सड़ने लगा और फिर तो खरीददार मिलने मुश्किल हो गए। इतना ही नहीं जब दशहरी के फल लगे ही थे तभी थ्रिस नाम के कीट का हमला हुआ था और इसके बदरंग होने की शुरुआत हो गयी थी। 

    आम कारोबारी हकीम बताते हैं कि इस बार समय से पहले ही दशहरी के पेड़ों में बौर आ गए थे और उसमें से भी 25 फीसदी खराब हो गए थे। उनका कहना है कि अकेले एक ही नहीं कई तरह के कीटों के हमले दशहरी पर हुए और कोरोना संकट के चलते बंदी में बागवान ठीक से कीटनाशक भी नहीं डाल पाए। कुछ दूसरे कारोबारी बताते हैं कि सरकार ने निर्यात सब्सिडी भी घटाकर 26 फीसदी की जगह 10 फीसदी कर दी है। सब्सिडी कम होने की वजह से बहुत से लोग निर्यात भी नहीं कर पाए है। शबीहुल का कहना है कि मलीहाबाद की अच्छी दशहरी जरुर कुछ देशों तक गयी है और मांग पूरी की गयी है पर देशी मंडियों में जल्दी ही इसकी मांग घटने लगी थी।  हकीम के मुताबिक सीजन के पीक में जहां पहले हर रोज 8-10 ट्रक माल मुंबई दिल्ली जाता था वहीं इस बार यह एक दो ट्रक तक ही सीमित रह गया।