प्रतीकात्मक तस्वीर
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    उत्तराखंड : उत्तराखंड राज्य में लैंसडौन नाम की एक बेहद सुंदर और छोटी सी जगह है। दिल्ली से 200 किलोमीटर दूर लैंसडौन छुट्टियों पर आने वाले लोगों की पसंदीदा जगह है। यह जगह काफी शांत है और शहर के शोर-शराबे से भी काफी दूर है। यह इतनी सुंदर जगह होने के बावजूद रात के 8.30 बजते ही सन्नाटा छा जाता है। उत्तराखंड में कई कहानियां बहुत समय से मशहूर हैं और उन्हें कुछ कहानियों में एक कहानी रोंगटे खड़े कर देने वाली है। जी हां हम आपको जो कहानी बताने जा रहे है उसे सुनकर आप दंग रह जायेंगे।

    क्या है वह खौफनाक कहानी

    जो कहानी हम आपको बताने जा रहे है। वैसी कहानी शायद ही आपने सुनी होगी। ये कहानी है एक सिर कटे भूत की जो लैंसडौन की सड़कों पर घूमता है। लैंसडौन में यह कहानी पिछले कई दशकों से हर घर में सुनाई जाती है। कहा जाता है कि आधी रात को यहां के कैंटोनमेंट एरिया में एक सिर कटा अंग्रेज अपने घोड़े पर घूमता है।

    वो सिर्फ घूमता ही नहीं बल्कि यहां की चौकीदारी भी करता है। कहानियों के मुताबिक इस अंग्रेज का ये भूत यहां रात के समय ड्यूटी करने वाले सिपाहियों पर नजर रखता है, इतना ही नहीं अगर कोई सोता हुआ पाया गया तो उसकी तो खैर नहीं होती है। कई सिपाहियों की मानें तो उन्हें रात में अजीब-अजीब आवाजें तक सुनाई देती हैं। 

    जानें कौन है सिर कटा भूत

    जिस कहानी की हम बात कर रहे है।वो सर कटा बहुत एक ब्रिटिश आर्मी अफसर का है। ऐसे कई रिटायर्ड सिपाही हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि उन्होंने इस भूत को महसूस किया है। ड्यूटी में लापरवाही बरतने पर भूत सिपाहियों के सिर पर मारता है। कई लोग ये भी कहते हैं कि लैंसडौन में अपराध भी इसी वजह से नहीं होता। सवाल ये है कि आखिर वो अंग्रेज कौन है? कहते हैं कि ये भूत एक ब्रिटिश आर्मी ऑफिसर डब्लू. एच. वार्डेल का है. वार्डेल सन् 1893 में भारत आए थे। यहां पर उन्हें लैंसडौन कैंट का कमांडिंग ऑफिसर बनाया गया था। 

    प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुई मौत

    सन् 1901-02 में वो अफ्रीका में तैनात थे और फिर भारत वापस आ गए। जिस समय प्रथम विश्व युद्ध हुआ, वो लैंसडौन में ही ड्यूटी कर रहे थे। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान डब्लू. एच. वार्डेल फ्रांस में जर्मनी के खिलाफ लड़ते हुए मारे गए। भारतीय सैनिक दरबान सिंह नेगी के साथ लड़ने वाले इस ऑफिसर की लाश कभी नहीं मिली थी। उनकी मौत के बाद ब्रिटिश अखबारों में लिखा गया कि वो एक शेर की तरह लड़े और मारे गए। कुछ लोग कहते है कि मौत से पहले लैंसडौन में पोस्टिंग होने और उनके शव का सही तरह से अंतिम संस्कार न होने की वजह से 100 साल के बाद भी वार्डेल की आत्मा कैंट में घूमती है।