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  • बोर में दिखा लंबी चोंच का गिद्ध

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वर्धा. लंबी चोंच वाला गिद्ध अथवा भारतीय गिद्ध के नाम से पहचाने जाने वाले एवं लगभग नष्ट हो चुकी प्रजाति में समाविष्ट गिद्ध बोर व्याघ्र प्रकल्प में दिखाई दिया. लंबे समय के बाद यह महत्वपूर्ण पंजीयन बहार नेचर फाउंडेशन के पंछी अभ्यासक दिलीप वीरखडे ने जंगल सफारी दौरान की है. बोर बांध के पिछले हिस्से में जंगली सूअरों का एक झुंड मृत नीलगाय का मांस भक्षण कर रहे थे. इस दौरान यह लंबी चोंच का गिध्द मांस पर तांव मारते दिखाई दिया. यह नजारा वीरखडे ने अपने कैमरे में कैद किया. इस समय उनके साथ प्राजक्ता वीरखडे, पार्थ वीरखडे, गाईड शुभम पाटिल तथा जिप्सी के चालक सारंग वानखेडे भी उपस्थित थे.

गर्दन पर सफेद पट्टा

उल्लेखनीय है कि लंबी चोंच के गिद्ध का समान्य नाम इंडियन लाँग बिल्ड वल्चर है. इसका शास्त्रीय नाम जीप्स इंडिकस बताया गया है. इसका आकार  करीब 80 से 103 सेंटीमीटर लंबा है. गिद्ध की गर्दन पर स्पष्ट दिखाई देने वाला सफेद पट्टा है. सिर व गर्दन पर पंख नहीं होते़  शरीर तथा पीठ पर पंख हलके फीके रंग के होते है. पीठ के निचले हिस्से के पंख तथा पूंछ डार्क रंग की होती है. उसकी नजर काफी तीक्ष्ण होने से बड़ी ऊंचाई से भी वह अपना भोजन तलाशता है. 1990 के दशक में भारतीय गिध्द व अन्य  गिद्ध की प्रजाति बड़ी मात्रा में पायी जाती थी.

पहले पशुओं के इलाज में डायक्लोफिनॅक यह दवाई का उपयोग होता था. यह पशु मृत होने पर उनका मांस भक्षण करने से गिद्ध भी बड़ी मात्रा में नामशेष होते गए. गिद्ध की संख्या में भारी मात्रा में कमी आने से 2002 वर्ष में  गिद्ध समावेश आईयुसीएन याने आंतरराष्ट्रीय निसर्ग संवर्धन संगठना की सूची में अत्यंत चिंताजनक प्रजाति (क्रिटिकली एन्डेंजर्ड) के रूप में दर्ज किया गया. ऐतिहासिक अथवा पुराने पंजीयन अनुसार विदर्भ व महाराष्ट्र के अधिकांश हिस्सों में भारतीय  गिद्ध पाये जाते थे. वर्तमान में काफी कम संख्या में  गिद्ध पाये जाते है. बहार नेचर फाउंडेशन ने 2015 में वर्धा जिले की पंछी सूची जारी की है. इसमें गिद्ध सहित अन्य तीन प्रजाति का समावेश है. बोर अभयारण्य में भारतीय  गिद्ध पाए जाने की अनेक वर्षों बाद पहली घटना बताई जा रही है. इससे व्याघ्र प्रकल्प की जैवविविधता समृध्द होती दिखाई दे रही है. इस महत्त्वपूर्ण पंजीयन से बोर व्याघ्र प्रकल्प के वनपरिक्षेत्र अधिकारी निलेश गावंडे एवं बहार के पंछी अभ्यासकों ने अभिनंदन किया है. 

सुरक्षा की दृष्टि से करेंगे उपाययोजना : गावंडे

बोर व्याघ्र प्रकल्प में पंछी अभ्यासक दिलीप वीरखडे को भारतीय  गिद्ध  दिखाई दिया. यह आनंद की बात है. उक्त गिद्ध स्थायी रूप से रहता है अथवा भ्रमण के दौरान बोर में रुका है, यह देखना होगा. गिद्ध का घोंसला वनपरिक्षेत्र में हो तो उसकी सुरक्षा की दृष्टि से उपाययोजना करेंगे.

– नीलेश गावंडे, वनपरिक्षेत्र अधिकारी, बोर व्याघ्र प्रकल्प

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स्वच्छतादूत है  गिद्ध :  तिगांवकर

गिद्ध यह पंछी प्रकृति में एक स्वच्छतादूत है. पहले गांव की सीमा पर मृत पशुओं का मांस भक्षण करते हुए झुंड में इन्हें देखा जाता था. भारतीय महाकाव्य में भी गिद्ध कुल के इस पंछी का जटायु के रूप में उल्लेख है. मात्र, खाद्यश्रृंखला का महत्वपूर्ण अंग वाले इस पंछी का अस्तित्व ही आज मनुष्य की गलतियों से खतरे में आ गया है. भारतीय  गिद्ध का नए से पंजीयन राहत देने वाला है. इसके संवर्धन के लिए हरसंभव प्रयास करने जरूरी है.

-संजय इंगले तिगांवकर, मानद वन्यजीव रक्षक

यह अविस्मरणीय :  पार्थ

बोर व्याघ्र प्रकल्प में हमें भारतीय  गिद्ध देखने मिला, इसका काफी आनंद है. विविध पंछियों के साथ पहली बार  गिद्ध के दर्शन हुए, यह मेरे लिए अविस्मरणीय बात है. 

-पार्थ वीरखडे, पक्षीनिरीक्षक