Farmers
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    पुलगांव. भारत यह कृषिप्रधान देश है. यहां का हर व्यवहार, बाजार किसानों के भरोसे ही चलता रहता है. किसान अपने खेती में अनाज उगाने के कारण आज इतने कोरोना काल में दवाईयां बराबर नही मिल रही है.लेकिन अनाज भरपुर मिल रहा है. किसी को भी भूखमरी की नौबत नही आ रही है. इसका पूरा श्रेय जाता है. किसानों को लेकिन खेती करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है. बैलजोडी और उन्हें निगरानी में रखने के लिए साल में गुडीपाडवा के दिन रखा जाता है.

    खेत का काम संभालने को सालकरी मजदूर जो सालभर मेहनत करता है. यह प्रथा पुरानी है लेकिन आज यह प्रथा घुमील होती नजर आ रही है लेकिन पहले यह सालकरी चालीस, पचास या साठ हजार तक रहता था.लेकिन अब सालकरी लाख रूपये तक की मांग कर रहा है. इसका मुख्य कारण है कोरोना काल का यह संकट और मजदूर की कमी आना यह समझ में आ रहा है.

    इधर किसान वर्ग अपनी फसल पर नैसर्गिक संकट, बैमोसम बारिश फसल पर आए विभिन्न रोग या कभी फसल पर पानी न आने के कारण खेती के फसल के उत्पादन में कमी आना और बढती महंगाई के कारण पहले ही कर्जबाजारी हो गया है. उस पर सालकरी के भाव आसमान छुना और विचारणीय हो गया है. इधर खेती में बैलजोडी को पालने के लिए सालकरी भी जरूरी है.

    ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी किसान वर्ग गुडीपाडवा पर सालकरी रखता है लेकिन अब बढते हुए दामों के कारण और महंगाई को देख सालकरी के भाव बढेगा. यह उनके हिसाब से सही भी है लेकिन किसान भी फसल के उत्पादन में इतना नही कमा रहा जिसमें सालकरी ट्रैक्टर से वाही करना, बीज, महिला, मजदूर वर्ग, इलेक्ट्रिक बिल, माल निकालने का खर्च इत्यादी अनेक खर्च निकालने के बाद अपने परिवार का खर्चा निकालना आज भी किसानों के लिए चांद छुने सरिकी बात हो गई है.

    तो सालकरी रखने के लिए लाख रूपये की किमत सोचकर की खेती करने की सोच बनानी है. फिर खेती करना ऐसा देखने में आ रहा या तो भविष्य में सालकरी यह शब्द लुप्त होते दिखाई पड रहा है.क्योंकि सालकरी अगर लाखों का हो गया तो किसान खेती कैसे करे. यह सोचनीय है.