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वर्धा. कोरोना के चलते हुए लॉकडाऊन का असर सबसे अधिक व्यवसाय पर हुआ है. करीब तीन माह तक सभी व्यापारी प्रतिष्ठान पूरी तरह से बंद रहे. पश्चात कुछ व्यवसाय शुरु करने की अनुमति तो मिली परंतु उसमें भी ढेर सारे नियम लगाए गए. इन समस्याओं से किसी तरह रास्ता निकाल रहे व्यवसायी अब प्रशासन द्वारा दिये गए समयावधि से परेशान है. सुबह 9 से शाम 5 बजे तक ना तो ग्राहकी है ओर ना ही आय हो रहा. साथ सामान्य, मध्यम वर्गीय व मजदूर परिवारों का बुरा हाल है. ऐसी स्थिति में अब नागरिक व व्यवसायियों द्वारा समयावधि बढाने की मांग उठ रही है.

अनलॉक-3 में राज्य सरकार ने सभी व्यवसाय, व्यापार सहित अनेक क्षेत्र में रियायत दी है. जिसमें लगभग सभी व्यवसाय शुरु करने की अनुमति मिली. साथ ही समयावधि भी सुबह 9 से शाम 7 बजे तक किया गया. यहा तक कि, मुंबई, पुणे, नाशिक, नागपुर जैसे कोरोना हॉटस्पॉट वाले शहरों में भी यही समयावधि लागू है. परंतु जिले में नागरिक व व्यापारियों के साथ प्रशासन कुछ ज्यादा ही सख्ती दिखा रहा है. राज्य शासन का आदेश होकर भी यहा प्रतिष्ठान शुरु रखने का समय सुबह 9 से 5 बजे तक है. परंतु इस समय का प्रभाव व्यवसायी सहित सभी वर्ग के लोगों को हो रहा है. लेकिन इसके बावजूद भी प्रशासन सुद नही ले रहा. प्रशासन का यह रवैय्या समझ से परे है. अगर प्रतिष्ठान शुरु रखने रखने का समय सुबह 9 से शाम 7 बजे तक होता है तो अनेकों को फायदा हो सकता है. इसके अलावा चायटपरी, पानठेले चलाने वाला भी बडा वर्ग है. गत पांच माह से यह व्यवसाय ठप होने से उनपर आर्थिक संकट आन पडा है. प्रशासन तो दूर परंतु राज्य सरकार भी इस ओर ध्यान नही दे रही है. ऐसे में अब इस वर्ग को राहत देते हुए चायटपरी व पानठेले शुरु करने की मांग भी उठ रही है.

मजदूरों के घर चुल्हा जलना हुआ मुश्किल
जरा यह सोचने में अजीब लगेगा कि, व्यापारी प्रतिष्ठान व मजदूर वर्ग का क्या कनेक्शन है, वे कैसे प्रभावित हो सकते है. लेकिन वास्तविकता यह है कि, दूकानों के इस समय से सबसे अधिक मजदूर वर्ग ही प्रभावित है. उनके घर में कभी कबार तो चुल्हा जलना तक मुश्किल हो रहा है. मजदूर वर्ग सुबह 8 बजे से शाम 7-8 बजे तक काम करता है. दिनभर मेहनत कर रात में जो भी आमदनी होती है, उससे सामान खरीदकर परिवार का गुजारा होता है. परंतु फिलहाल यह स्थिति ही बदल गई है. क्योकि मजदूर वर्ग का काम तो शुरु है, परंतु जब किराणा या अन्य सामान खरीदने जाते है तो, उन्हे कुछ भी मिल नही पाता. सुबह घर से निकलते है तो तभी दूकान बंद ही रहते है, ओर शाम में लौटते है तो भी दूकान बंद ही मिलते है. दोपहर में अगर किसी तरह खरीदी करने की इच्छा हो तो आधी मजदूरी कांट दी जाती है. ऐसी स्थिति में मजदूरों के समक्ष बडा पेच निर्माण हुआ है. इसी तरह नोकरीपेक्षा लोगों का भी यही हाल है. क्योकि, सुबह 10 बजे तक उन्हे अपने गंतव्य तक पहुंचना होता है. शाम 5.30 या 6 बजे घर लौटते है. उस दौरान अगर कुछ लेने की सोचते भी है तो सबकुछ बंद होने से वे भी परेशान हो गए है.

एक दिन का बंद भी अन्याय के समान
जिला प्रशासन ने तहसील निहाय एक दिन तय कर पूरा मार्केट निर्जंतुकीकरण करने का निर्णय लिया है. परंतु निर्जंतुकीकरण किया भी जाता है या नही? यह भी सवाल है. वर्धा शहर में शुक्रवार के दिन पूरा मार्केट बंद रहता है. परंतु गत शुक्रवार को किसी तरह का निर्जंतुकीकरण नही किया गया. अगर प्रशासन को केवल दिखावा ही करना है तो फिर नागरिक व व्यापारियों पर अन्याय क्यो? व्यापारी वर्ग पूरी तरह से आर्थिक रुप से कमजोर हो गया है. लॉकडाऊन के पांच माह की अवधि में व्यवसाय नही के बराबर है. उसमें दिया गया समय तथा अब शुक्रवार बंद से व्यापार पूरी तरह से चौपट हो गया है. ऐसे में प्रशासन शुक्रवार बंद की जिद छोड दें तथा शुक्रवार को सुबह 7 से 2 बजे तक प्रतिष्ठान शुरु रखे, पश्चात निर्जंतुकीकरण का कार्य भी कर सकते है. इस ओर प्रशासन को ध्यान देकर उचित कदम उठाने की जरुरत है. कृषि केंद्र व होटेल के समय में भी बदलाव की मांग उठ रही है. खाद, दवाई छिकडाव सुबह के समय होता है. ऐसे में अनेक किसान सुबह आकर दवाई अथवा अन्य चीजे लेकर जाते है. किन्तु कृषि केंद्र 9 बजे के बाद खुलने के कारण उसका असर किसान के काम पर हो रहा है. उसी तरह नास्ता स्टाल व होटेल का समय भी 9 बजे का है. यह समय भी उचित नही है. नागरिक सुबह 7 बजे से 10 तक बड़े पैमाने पर नास्ता करते है. बावजूद इसके समय 9 बजे का होने के कारण ग्राहक होने के बाद भी वह अपना माल नही बेच सकते. इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए प्रशासन ने कदम उठाना आवश्यक है.