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काबुल: अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) सरकार ने शुक्रवार को 80 तालिबानी कैदियों को रिहा  कर दिया है। एक पारम्परिक परिषद में 400 तालिबान (Taliban) कैदियों (Prisoners) को छोड़ने पर फैसला किया गया था।  अफगान राजनीतिक नेतृत्व और तालिबान के बीच शांति समझौते को लेकर बातचीत शुरू करने की राह में यह आखिरी बाधा थी। रिपोर्ट्स के अनुसार, स्थानीय सुरक्षा एजेंसी ने कहा कि अफगान सरकार ने अंतिम बैच के करीब 400 कैदियों को रिहा करना शुरू कर दिया है, जो  शांति वार्ता शुरू होने से पहले मुक्त होना चाहते थे। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जावीद फैसल ने कहा कि सरकार ने कल 400 में से 80 तालिबान दोषियों को रिहा कर दिया है।

तालिबान के अधिकारियों ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर कहा कि ’86 कैदियों’ को रिहा किया गया है। ये अधिकारी मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं। यह पता नहीं चल सका है कि शेष कैदियों को कब रिहा किया जाएगा। अमेरिका और तालिबान के बीच फरवरी में हुए समझौते के तहत दोनों पक्षों के कैदियों को रिहा किया गया है।

समझौते के तहत सरकार द्वारा जेलों में डाले गए पांच हजार तालिबानियों और आतंकवादी समूह द्वारा बंधक बनाए गए एक हजार सरकारी और सैन्य कर्मियों की रिहाई होनी है। इसके बाद अफगानिस्तान में विभिन्न पक्षों के बीच वार्ता होगी। वार्ता कतर में होने की उम्मीद है जहां तालिबान का राजनीतिक कार्यालय है।

कुछ अफगान नेताओं ने ‘एपी’ को बताया कि 20 अगस्त से वार्ता हो सकती है। इन वार्ताओं से युद्ध के बाद अफगानिस्तान की रूपरेखा तय करने का आधार बनेगा। वॉशिंगटन की तरफ से शांतिदूत नियुक्त किए गए जालमे खलीलजाद ने शांति वार्ता शुरू करने के लिए डेढ़ वर्षों तक प्रयास किया जिसका उद्देश्य अमेरिकी सैनिकों की घर वापसी और अमेरिका के अब तक के सबसे ज्यादा समय तक किसी दूसरे देश में सैन्य संघर्ष को खत्म करना है।

अमेरिकी सैनिकों ने देश छोड़ना शुरू कर दिया है और नवंबर तक अफगानिस्तान में पांच हजार से भी कम अमेरिकी सैनिक होंगे। 29 फरवरी को जब समझौता हुआ था उस वक्त देश में करीब 13 हजार सैनिक थे। अमेरिका और नाटो सैनिकों की वापसी तालिबान की इस वचनबद्धता पर भी हो रही है कि आतंकवादी समूह अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल नहीं करेगा। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने पिछले हफ्ते परंपरागत परिषद् बैठक लोया जिरगा का आयोजन किया था जिसमें 400 तालिबानी कैदियों की रिहाई पर सहमति बनी थी। 

मामले पर अमेरिका (America) ने पिछले सप्ताह एक बयान में कहा था कि वह पारम्परिक परिषद या जिरगा का स्वागत करता है। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ यह स्पष्ट कर चुके हैं कि अगर तालिबान के साथ शांति वार्ता (Peace Talks) की दिशा में आगे बढ़ना है तो 400 कैदियों को रिहा करना ही होगा। पोम्पिओ ने एक बयान में कहा था कि हम मानते हैं कि सब कैदियों की रिहाई के हक में नहीं है लेकिन इस मुश्किल कदम से जरूरी परिणाम निकल कर आएंगे। बयान से यह संकेत मिले कि अमेरिका 400 तालिबान को रिहा ना करने के फैसले को स्वीकार करने को तैयार नहीं है।  

 

वहीं, पाकिस्तान (Pakistan) ने तालिबान के 400 कैदियों को रिहा करने की एक पारंपरिक अफगान परिषद की सिफारिश का रविवार को स्वागत किया था और उम्मीद जतायी थी कि इस कदम से अफगानिस्तान के संघर्षरत पक्षों के बीच बातचीत जल्द शुरू करने में मदद मिलेगी। 

रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि कैदियों की रिहाई पर फिलहाल तालिबान ने टिप्पणी नहीं की है। हालांकि उन्होंने पहले एक बयान में कहा था है कि वे कैदियों की अंतिम रिहाई के एक सप्ताह के भीतर कतर (Qatar) में अमेरिकी समर्थित सरकार के साथ शांति वार्ता के लिए बैठेंगे।