संयुक्त राष्ट्र: परमाणु हथियारों (Nuclear Weapons) पर प्रतिबंध लगाने वाली अब तक की पहली संधि शुक्रवार को प्रभावी हो गई। दुनिया को सर्वाधिक घातक हथियारों से निजात दिलाने के लिए इसे एक ऐतिहासिक कदम बताया जा रहा है। हालांकि, परमाणु आयुध से लैस देशों ने इसका सख्त विरोध किया है।
परमाणु हथियार निषेध संधि अब अंतरराष्ट्रीय कानून (International Law) का हिस्सा है। इसके साथ ही, द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम चरण में 1945 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर अमेरिका के परमाणु बम गिराने की घटना की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए दशकों लंबा अभियान सफल होता प्रतीत हो रहा है।
हालांकि, इस तरह के हथियार नहीं रखने के लिए सभी देशों द्वारा इस संधि का अनुमोदन करने की जरूरत मौजूदा वैश्विक माहौल में असंभव नहीं, लेकिन बहुत मुश्किल नजर आ रही है। इस संधि को संयुक्त राष्ट्र (United Nations) महासभा ने जुलाई 2017 में मंजूरी दी थी और 120 से अधिक देशों ने इसे स्वीकृति प्रदान की थी।
लेकिन परमाणु हथियारों से लैस या जिनके पास इसके होने की संभावना है, उन नौ देशों–अमेरिका (America), रूस (Russia), ब्रिटेन (Britain), चीन (China), फ्रांस (France), भारत (India), पाकिस्तान (Pakistan), उत्तर कोरिया (North Korea) और इजराइल (Israel) ने इस संधि का कभी समर्थन नहीं किया और न ही 30 राष्ट्रों के नाटो गठबंधन ने इसका समर्थन किया। परमाणु हमले की विभीषिका झेल चुके दुनिया के एकमात्र देश जापान (Japan) ने भी इस संधि का समर्थन नहीं किया।
परमाणु हथियारों का उन्मूलन करने के अंतरराष्ट्रीय अभियान के कार्यकारी निदेशक बीट्रीस फिन ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून, संयुक्त राष्ट्र और हिरोशिमा एवं नागासाकी (Hiroshima Nagasaki) के पीड़ितों के लिए एक ऐतिहासिक दिन बताया है। संधि को 24 अक्टूबर 2020 को 50वां अनुमोदन प्राप्त हुआ था और यह 22 जनवरी से प्रभावी हुआ।
फिन ने बृहस्पतिवार को कहा था कि 61 देशों ने संधि का अनुमोदन किया है तथा शुक्रवार को एक और अनुमोदन होने की संभावना है। इसके साथ ही, शुक्रवार से अंतरराष्ट्रीय कानून के माध्यम से इन सभी देशों में परमाणु हथियार प्रतिबंधित हो जाएंगे।