Israel will not be a part of the weapons fair in UAE

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यरुशलम: इजराइल (Israel) और संयुक्त अरब अमीरात (यूएईए) (UAE) में राजनयिक संबंध स्थापित करने के लिए हुआ समझौता अरब देशों के संबंधों के लिए ऐतिहासिक क्षण है, लेकिन फलस्तीन (Palestine) ने कहा कि इससे पश्चिम एशिया (Western Asia) में संघर्ष का समाधान और मुश्किल हो गया है। उल्लेखनीय है कि पश्चिमी तट के हिस्सों को इजराइल में शामिल करने के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालते हुए यूएई ने तेल अवीव से संबंधों को बढ़ाने का फैसला किया है।

फलस्तीनी अधिकारी और वयोवृद्ध वार्ताकार साएब एराकात ने शुक्रवार को कहा, ‘‘मैंने कभी भी अरब देश से इस विश्वासघाती कदम की उम्मीद नहीं की थी। आप आक्रामकता को पुरस्कृत कर रहे हैं…आपने इस कदम से फलस्तीनियों और इजराइलियों के बीच किसी भी शांति की संभावना को नष्ट कर दिया।”

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump) ने इस महत्वपूर्ण राजनयिक समझौते को अमेरिकी मध्यस्थता के नतीजे के तौर पर पेश किया और कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि और अरब एवं मुस्लिम देश इस परिपाटी का अनुसरण करेंगे। उल्लेखनीय है कि इजराइल, यूएई और खाड़ी के अन्य कई देशों से कई वर्षों से संबंध बना रहा था क्योंकि उनका समान दुश्मन ईरान है। इजराइल के मुताबिक इस समझौते से पड़ोसी देशों से सामान्य संबंध स्थापित करने की लंबे समय से की गई उम्मीद पुख्ता हुई है।

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू (Benjamin Netanyahu) लंबे समय से कह रहे है कि पीढ़ियों से चल रही असफल वार्ता और फलस्तीन के साथ विवाद सुलझाए बिना भी उनका देश अन्य देशों से संबंध स्थापित कर सकता है और इस समझौते से वह सही साबित होते दिख रहे हैं। इजराइली अखबार हेरात्ज में स्तंभकार अंशेल पीफेफ्फेर ने लिखा, ‘‘अब यह दावा करना मुश्किल है कि 53 साल पुराना कब्जा ‘अरक्षणीय’ है जब नेतन्याहू ने हाल में साबित किया कि यह न केवल टिकाऊ है बल्कि इजराइल खुले तौर पर अब भी जारी कब्जे के बावजूद अरब जगत से संबंधों को सुधार भी सकता है।”

उन्होंने लिखा कि पश्चिम एशिया का संघर्ष कभी भी इजराइल और यूएई के बीच नहीं रहा है और दोनों देशों ने कभी लड़ाई नहीं की है और न ही उनकी सीमा लगती है, लेकिन समझौते की रूपरेखा से फलस्तीन अपना रुख और कड़ा करने पर मजबूर होगा और इजराइल को अलग-थलग करने के लिए अपनी कोशिश और तेज करेगा। फलस्तीनी प्राधिकरण ने इस कदम पर सख्त बयान जारी करते हुए इसे यरुशलम, अल अक्सा मस्जिद और फलस्तीनी राज्य के मकसद पर विश्वासघात करार दिया। बयान की भाषा अरब और मुस्लिम जगत की भावनाओं को भड़ाकाने की कोशिश प्रतीत होती है।

फलस्तीन ने तत्काल अरब लीग और 57 सदस्यीय इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) की बैठक बुलाकर समझौते की निंदा करने की मांग की है लेकिन ये मंच तेल संपन्न यूएई की निंदा करने से बचेंगे क्योंकि क्षेत्र में उसके सहयोगी हैं और इजराइल से समझौता होने के बाद अमेरिका पर भी उसका प्रभाव बढ़ गया है।

फलस्तीनी विश्लेषक इब्राहम दलालशा ने कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय अभियान अमीरात को अलग-थलग करने के लिए है ताकि दूसरे देश इस तरह का कदम नहीं उठाए। लेकिन यह देखना होगा कि यह सफल होता है या नहीं।” संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) द्वारा इजराइल के साथ अपने राजनयिक संबंध सामान्य करने पर ईरान और तुर्की ने शुक्रवार को उस पर गहरी नाराजगी जाहिर की और फलस्तीन, अरब जगत एवं मुस्लिमों से वादाखिलाफी करने का आरोप लगाया। हालांकि, समझौते और इजराइल द्वारा फलस्तीनी जमीन पर कब्जा रोकने के फैसले का मिस्र एवं खाड़ी के अरब देश बहरीन, ओमान सहि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने स्वागत किया। कई देशों ने उम्मीद जताई कि इससे शांति प्रक्रिया की बहाली होगी।

गौरतलब है कि फलस्तीनी पश्चिमी तट, पूर्वी यरुशलम और गाजा को मिलाकार अपना स्वतंत्र राष्ट्र चाहते हैं, इन इलाकों पर 1967 के अरब युद्ध के बाद से इजराइल का कब्जा है। ट्रम्प की योजना के मुताबिक इजराइल को पूरा पूर्वी यरुशलम जिसमें ईसाई, मुस्लिम और यहूदियों के सबसे पवित्र स्थान है सहित पश्चिमी तट के एक तिहाई हिस्से पर कब्जा कायम रखने की अनुमति होगी। इस योजना को फलस्तीनियों ने खारिज कर दिया है।

जर्मनी (Germany) के विदेश मंत्री हेइको मास ने दोहराया कि उनका देश दो राज्य फलस्तीन-इजराइल समाधान का समर्थन करता है। इसके साथ ही उन्होंने यूएई के साथ हुए ऐतिहासिक समझौते के लिए इजराइल को बधाई दी। उन्होंने कहा, ‘‘हम अपने रुख पर कायम है कि पश्चिम एशिय में स्थायी शांति केवल पूर्व में चर्चा किए गए दो राज्य समाधान से ही आ सकती है।” फ्रांस और इटली ने भी इसी तरह का बयान दिया। (एजेंसी)