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वाशिंगटन. अमेरिका के प्रमुख शिक्षाविदों और सांसदों ने देश में डिग्री पाठ्यक्रमों में हिस्सा ले रहे विदेशी विद्यार्थियों को देश के बाहर निकालने के लिए बनाये गये दिशानिर्देश पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे ‘भयावह’ और ‘क्रूर’ बताया है। ये दिशानिर्देश उस परिस्थिति के लिए बनाये गये हैं जब विश्वविद्यालय ऐसे पाठ्यक्रमों को ऑनलाइन पढ़ाना शुरू करते हैं जिनमें विदेशी विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। आव्रजन एवं सीमा शुल्क प्रवर्तन (आईसीई) ने सोमवार को घोषणा की कि अमेरिका में पढ़ाई कर रहे विदेशी विद्यार्थियों को तब देश छोड़ना होगा या उन्हें निर्वासित होने के जोखिम का सामना करना होगा जब उनके विश्वविद्यालय सितंबर से दिसंबर के सेमेस्टर के लिए ऑनलाइन कक्षाएं शुरू कर देते हैं। इस निर्णय से अमेरिका में पढ़ रहे हजारों भारतीय विद्यार्थियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

इसमें कहा गया है कि 2020 में पड़ने वाले सेमेस्टर में पूरी तरह से ऑनलाइन कार्य करने वाले स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी पूर्ण ऑनलाइन पाठ्यक्रम का दबाव नहीं उठा पाएंगे और वे अमेरिका में रह सकते हैं। इस नियम की बड़े स्तर पर आलोचना हो रही है और लोग सोशल मीडिया पर अपने गुस्से का इजहार कर रहे हैं। अमेरिकन काउंसिल ऑन एजुकेशन (एसीई), जिसमें विश्वविद्यालय के अध्यक्षों का प्रतिनिधित्व होता, ने कहा कि यह दिशानिर्देश ‘भयावह’ है और इससे भ्रम की स्थिति पैदा होगी क्योंकि स्कूल सुरक्षित तरीके से उन्हें खोलने का रास्ता तलाशेंगे। एसीई के अध्यक्ष टेड मिशेल ने कहा, ‘‘ आईसीई द्वारा जारी दिशानिर्देश भयावह हैं। हम अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों को लेकर और स्पष्टता का स्वागत करेंगे, यह दिशानिर्देश जवाब से अधिक सवाल उत्पन्न करते हैं और दुर्भाग्य से अच्छा करने के बजाय नुकसान अधिक कर रहे हैं।” उन्होंने कहा, ‘‘ अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि यह दिशानिर्देश स्थिरता और स्पष्टता के बजाय भ्रम और जटिलता अधिक पैदा करता है। ।” काउंसिल के वरिष्ठ उपाध्यक्ष टेरी हर्टले ने कहा कि खास चिंता इस बात को लेकर है कि दिशानिर्देश में उन विद्यार्थियों के लिए नियमों में छूट नहीं दी गई जिनके स्कूल महामारी के चलते ऑनलाइन कक्षाएं चलाने को मजबूर हुए हैं। यह भी स्पष्ट नहीं है कि तब क्या होगा जब विद्यार्थी इस परिस्थिति में पढ़ाई छोड़ देता है, लेकिन यात्रा प्रतिबंधों की वजह से स्वेदश लौट नहीं पाता है।”

उन्होंने कहा, ‘‘स्पष्ट रूप से आईसीई संस्थानों को दोबारा खोलने के लिए उत्साहित कर रहा है और इस महमारी की वजह से उत्पन्न परिस्थितियों के प्रति बेपरवाह है।” नया नियम एफ-1 और एम-2 गैर आव्रजन वीजा पर लागू होता है जिसके तहत गैर आव्रजित छात्रों को क्रमश: अकादमिक और वोकेशनल पाठ्यक्रमों में पढ़ाई करने की अनुमति मिलती है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय की अध्यक्ष लैरी बाकॉउ ने बयान में कहा, ‘‘हम आईसीई द्वारा जारी दिशानिर्देशों को लेकर चिंतित है जो काफी कुंद लगता है।.. अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों खासतौर पर ऑनलाइन पाठ्यक्रमों में पंजीकृत विद्यार्थियों को देश छोड़ने या स्कूल बदलने के इतर सीमित विकल्प देता है।” गैर लाभकारी इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशलन एजुकेशन के मुताबिक अमेरिका में करीब 10 लाख विदेशी छात्र उच्च शिक्षा के लिए आते हैं। अमेरिकी सीनेटर एलिजाबेथ वारेन ने ट्वीट किया, ‘‘ अंतरराष्ट्रीय छात्रों को महामारी के समय बाहर निकाला जा रहा है क्योंकि कॉलेज सामाजिक दूरी कायम रखने के लिए ऑनलाइन कक्षाओं की ओर बढ़ रहे हैं और इससे विद्यार्थियों को परेशानी होगी। यह मनमाना, क्रूर और विदेशियों के प्रति भय का नतीजा है। आईसीई और आंतरिक सुरक्षा मंत्रालय को इस नीति को तुरंत वापस लेना चाहिए।” सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने भी इस दिशानिर्देश की निंदा की। वर्मोंट से निर्दलीय सीनेटर ने कहा, ‘‘इस तरह की क्रूरता के लिए व्हाइट हाउस की कोई सीमा नहीं है।” उन्होंने कहा, ‘‘ विदेशी विद्यार्थियों को इस विकल्प के साथ धमकाया जा रहा है कि या तो अपनी जान खतरे में डाल कर कक्षा में जाएं या निर्वासित हों। हमें ट्रम्प की कट्टरता के खिलाफ खड़ा होना होगा।

हम सभी छात्रों को सुरक्षित रखेंगे।” डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन की राष्ट्रीय वित्त समिति में सदस्य अजय जैन भूतोरिया ने इस कदम को अन्यायपूर्ण करार दिया। उन्होंने कहा, ‘‘ इस पाबंदियों से भारत और अन्य देशों से आने वाले विद्यार्थी प्रभावित होंगे। वे या तो कोरोना वायरस के खतरे के बीच पांरपरिक कक्षाओं में बैठने को मजबूर होंगे या फिर वे दोबारा अमेरिका लौटने की अनिश्चितता के साथ भारत लौटेंगे।” भूतोरिया ने कहा, ‘‘ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को अहसास नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी अमेरिकी शिक्षा प्रणाली के मेरुदंड हैं। भारत और चीन से यहां पढ़ने वाले विद्यार्थी अमेरिकी कॉलेजों को बहुत बड़ा राजस्व प्रदान करते हैं।” उन्होंने कहा, ‘‘ट्रम्प प्रशासन की अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों पर पांबदी वाली नीतियों की वजह से अमेरिका उच्च कुशलता प्राप्त प्रतिभाओं और भविष्य के स्वास्थ्य पेशेवर, इंजीनियर,नवोन्मेषी और कारोबार नेता को खो देगा।”

‘यूएसए टुडे’ की खबर के मुताबिक ट्रम्प प्रशासन के इस कदम की आव्रजन समर्थकों ने भी निंदा की और कहा कि मौजूदा प्रशासन द्वारा वैध और अवैध आव्रजन को प्रतिबंधित करने की चल रही कोशिश है। अटलांटा के आव्रजन वकील और अमेरिकन इमिग्रेशन लॉयर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधि चार्ल्स काक ने कहा कि नयी नीति स्पष्ट रूप से इस तरह से बनाई गई है कि अगर स्कूल केवल ऑनलाइन कक्षाएं चलाते हैं तो अमेरिका में रह रहे विदेशी विद्यार्थियों को बाहर किया जाए और अमेरिका आ रहे छात्रों के देश में प्रवेश रोका जाए। अमेरिका के विभिन्न कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे अंतरराष्ट्रीय छात्रों और अंतरराष्ट्रीय शिक्षकों के परिसंघ ‘ एनएएफएसए’ के आर्थिक विश्लेषण के मुताबिक विदेशी विद्यार्थियों ने अकादमिक वर्ष 2018-19 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 41 अरब डॉलर का योगदान किया और 4,58,290 नौकरियां सृजित हुईं। एनएएफएसए ने नियम पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि स्कूलों को अपने परिसर में सही फैसला करने का अधिकार होना चाहिए। यह दिशानिर्देश अंतराष्ट्रीय विद्यार्थियों के लिए नुकसानदेह है… उन्हें खतरे में डालता है।” न्यूयॉर्क के आव्रजन अटॉर्नी साइरस मेहता ने ट्वीट किया, ‘‘जो विद्यार्थी उन स्कूलों में पढ़ाई करेंगे जहां कक्षाएं पूरी तरह ऑनलाइन संचालित हो रही है, वहां पंजीकृत विदेशी छात्रों को एफ-1वीजा प्राप्त करने की अनुमति नहीं होगी। इस तरह से ट्रम्प विदेशी विद्यार्थियों को कोविड-19 के दौरान असुरक्षित माहौल में पढ़ने को मजबूर कर रहे हैं। ”(एजेंसी)