Climate change could be the reason for the decline of Indus Valley Civilization: Study
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इस्लामाबाद: विश्व बैंक ने भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से लंबित जल विवाद के समाधान के लिये एक निष्पक्ष विशेषज्ञ या मध्यस्थता अदालत (सीओए) नियुक्त करने पर स्वतंत्र फैसला लेने में सक्षम नहीं होने की बात कही है। यहां मीडिया में आई एक खबर में यह कहा गया है। खबर के मुताबिक विश्व बैंक ने यह भी कहा कि दोनों देशों को द्विपक्षीय तरीके से एक विकल्प चुनना चाहिए। उल्लेखनीय है कि भारत और पाकिस्तान ने नौ साल की लंबी बातचीत के बाद 1960 में एक संधि पर हस्ताक्षर किये थे। इसमें वाशिंगटन स्थित विश्व बैंक भी एक हस्ताक्षरकर्ता था।

यह संधि नदियों के जल के उपयोग के बारे में देानों देशों के बीच सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान के लिये एक तंत्र का प्रावधान करती है। हालांकि, संधि को लेकर भारत और पाक के बीच असहमति एवं मतभेद रहे हैं। डॉन अखबार ने पाकिस्तान के लिए विश्व बैंक के पूर्व निदेशक पी. इल्लनगोवान के हवाले से कहा है, ‘‘भारत और पाकिस्तान को इस बारे में मिल बैठकर तय करना चाहिए कि आगे कौन सा विकल्प होगा।” उन्होंने इस्लामाबाद में अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के अवसर पर यह कहा। उन्होंने बताया कि दो जलविद्युत परियोजनाओं के विवाद के हल के लिये पाकिस्तान ने मध्यस्थता अदालत नियुक्त करने का अनुरोध किया था, जबकि भारत ने एक निष्पक्ष विशेषज्ञ की मांग की थी। उन्होंने कहा कि 1960 की सिंधु जल संधि के तहत दो टकरावपूर्ण स्थितियों को लेकर विश्व बैंक दोनों देशों की सरकारों को अपने मतभेद दूर करने का रास्ता तलाशने और आगे बढ़ने के लिये प्रेरित कर रहा है। यह पूछे जाने पर कि क्या बैंक अपनी भूमिका निभाने से हिचक रहा है, जबकि वह संधि का हिस्सा था और चार साल से सीओए के लिये पाकिस्तान के अनुरोध को दबाये बैठा है, इस पर उन्होंने कहा, ‘‘संधि में विश्व बैंक के लिये ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि वह स्वतंत्र फैसला ले।”

दाइमर-बाशा बांध को वित्तीय सहायता प्रदान करने के प्रति बैंक के अनिच्छुक होने के बारे में पूछे जाने पर इल्लनगोवान ने कहा कि सिंधु नदी पर दासु-1 और दासु-2 जैसी अन्य परियोजनाओं की बैंक सहायता कर रहा है, लेकिन विवादित क्षेत्र (पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर) में दाइमर-बाशा के होने को लेकर भारत ने इस पर आपत्ति जताई है तथा विवादित परियोजनाओं को वित्त मुहैया करने की बैंक की नीति नहीं है। पाकिस्तान ने नीलम नदी पर 330 मेगावाट की किशनगंगा परियोजना और चेनाब नदी पर 850 मेगावाट की रातले जलविद्युत परियोजना को लेकर विवादों के समाधान की अपील की है।

दिसंबर 2016 में बैंक ने सीओए या एक निष्पक्ष विशेषज्ञ की नियुक्ति की प्रक्रिया अस्थायी रूप से रोक दी थी तथा इस विषय पर दोनों देशों के बीच मध्यस्थता शुरू की थी कि दोनों परियोजनाओं के त्रुटिपूर्ण प्रारूप के समाधान के लिये तंत्र पर संधि के आलोक में सहमति की ओर कैसे बढ़ा जाए। बैंक द्वारा प्रोत्साहित एवं सचिव स्तर की वार्ता भारत और और पाक के बीच अंतिम बार सितंबर 2015 में वाशिंगटन में हुई थी, जो इस्लामाबाद के लिये निराशा के साथ समाप्त हुई थी। संधि के तहत, पक्षों के विवादों का हल द्विपक्षीय तरीके से निकालने में नाकाम रहने की सूरत में पीड़ित पक्ष के पास विश्व बैंक के तहत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत या निष्पक्ष विशेषज्ञ के अधिकारक्षेत्र का उपयोग करने का विकल्प होगा। (एजेंसी)