वणी. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के 10 साल पूरा हो गए है, लेकिन इसकी लगातार अनदेखी हो रही है. इस रिपोर्ट ने असलियत से पर्दा उठाने का काम किया है. मुस्लिमों को उनके अधिकार मिलने चाहिए आज मुस्लिमों की स्थिति बद से बदतर हुई है, पहले राजनीति को मजहब से नही जोडा जाता था आज राजनीति पर मजहब हावी हो जाने का भारतीय मुस्लिम परिषद के नईम अजीज ले लगाया है.
नईम अजीज ने बताया की सच्चर कमेटी की सिफारिश से पहले भी कई सिफारिशे की गई है मगर यह अलग और अनूठी रिपोर्ट है. क्या कारण है कि ऐसी चर्चित रिपोर्ट के बावजूद अल्पसंख्यको की वास्तविक स्थिति मे कोई बदलाव नही आ रहा है.
मुस्लिम समुदाय की शैक्षणिक स्थिति देखे तो 2011 की जनगणना के आंकडो के मुताबिक भारत के धार्मिक समुदायो मे निरक्षरता की दर सबसे ज्यादा मुस्लिमों मे 43 प्रतिशत है. 2018-19 मे उच्च शिक्षा के अखिल भारतीय सर्वेक्षण के अनुसार, उच्च शिक्षा के क्षेत्र मे नामांकित छात्रो मे मुसलामानों की हिस्सेदारी केवल 5.23 फीसदी है जो उनकी जनसंख्या के अनुपात मे काफी कम है.
साल 2020 मे जारी राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट भारत मे शिक्षा पर पारिवारिक सामाजिक उपभोग बताती है कि शिक्षा मे नामांकन के मामले मे मुस्लिम समुदाय के स्थिति दलित और आदिवासी समुदाय के मुकाबले कमजोर है, इस रिपोर्ट के अनुसार मुस्लिम समुदाय मे 3 से 35 आयु समूह के करीब 17 मुस्लिम पुरूष कभी नामांकन ही नही करवाते है जबकि इस आयु वर्ग के अनिसूचित जातियो मे यह दर 13.4 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियो मे 14.7 प्रतिशत है जो कि तुलनात्मक रूप से बेहतर है.
उपरोक्त स्थिती को देखते हुये यह अपेक्षा स्वाभाविक थी कि नयी नीति मे मुस्लिम समुदाय के कमजोर शैक्षणिक स्थिति और इसके कारणो का विश्लेषण करते हुये इसका हल पेश करने की कोशिश की जाती लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नही हुआ है. उलटे इन्हे पूरी तरह से नजरअंदाज करने की कोशिश की गयी है. पूरी नीति मे अल्पसंख्यक या मुस्लिम समुदाय का अलग से जिक्र नही किया गया है बल्कि उन्हे सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से वंचित समूहो एसईडीजी मे शामिल करते हुये टाल दिया गया है. नईम अजीज ने मांग की है की सच्चर कमेटी की सिफारिशे लागु की जाए.