उमरखेड. खरीफ सीजन की शुरुआत में फसल बीमा कंपनी हर साल किसानों से प्रीमियम वसूल करती है. प्राकृतिक अथवा विभिन्न बीमारियों के कारण फसल के नुकसान के मामले में दमनकारी स्थितियां लगाई जाती हैं और किसान मुआवजे से वंचित रह जाते हैं. किसानों के साथ क्रूर मजाक है. पिछले सीजन में हुमनी (रूना), मॉक आदि जैसे कीटों के कारण सोयाबीन जैसी नकदी फसलें नष्ट हो गई थी. बीमा कंपनी ने दमनकारी शर्तें लगाईं और किसानों को बीमे के लाभ से वंचित रखा.
3 एकड़ खेत नष्ट होने पर भी नहीं मिला मुआवजा
पिछले वर्ष किसान गुलाब खान पठान का 3 एकड़ सोयाबीन का खेत हुमनी (रूना) रोग से पूरी तरह नष्ट हो गया था. उन्होंने मुआवजे की मांग की. बीमा कंपनी व तहसील कृषि कार्यालय में एक आवेदन दायर किया था. कृषि विभाग और बीमा कंपनी के कर्मचारियों ने मौके का मुआयना किया.
उन्होंने मांग को लेकर प्रयास किए, किंतु बीमा कंपनी की ओर से उन्हें कोई मुआवजा नहीं मिला. किसानों का एक तरह से बेरहमी से मजाक उड़ाया जा रहा है. किसी रोग के प्रकोप से फसल नष्ट हो जाती है. किसान को आर्थिक हानि होती है. मुआवजा पाने मानक कागज के घोड़ों पर नाचने की प्रथा है. तहसील के किसान बेहाल हो गए हैं.
पिछले वर्ष राजस्व व कृषि विभाग ने घाटे में चल रहा पंचनामा चलाया था, अभी भी कई किसानों को लाभ नहीं मिला है. ब्राह्मणगांव के एक किसान गुलाब खान पठान ने मांग की है कि सरकार इस प्रथा को बंद करें. किसानों को मुआवजे के बीमा का लाभ तथ्यों को ध्यान में रखते हुए दिया जाए.