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    वणी. देश भर के नौकरीपेशा वर्ग को हमेशा ही विभिन्न चुनौतियो का सामना करना पडता है. लेकिन इन दिनो कोविड के कारण उनकी परिस्थिति और अधिक गंभीर हो गई है और उन्हे आर्थि संकट के बीच जीवनयापन करना पड रहा है. महंगाई की तुलना मे नौकरीपेशा वर्ग का वेतन बहुत कम है. इससे वे बचत नही कर पा रहे है. उन्हे इसी वेतन से ही आयकर और व्यावसायिक कर भी जमा करना पडता है. विरोधाभास यह है कि किसान कितना भी धनवान हो जाए, लेकिन उन्हे कोई कर नही चुकाना पडता है.

    शहर के एक जाने-माने चार्टर्ड अकाउंटेंट व्दारा नाम नही जाहिर करने की शर्त पर दी गई जानकारी के अनुसार कोविड काल मे नौकरीपेशा वर्ग मे शामिल चार करोड लोगो ने आयकर जमा कराया है. सरकार ने उस निधि से प्रवासी श्रमिको के लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओ को लागू किया. इसके बावजूद केंद्रीय वित्त मंत्री ने इस वर्ष के बजट मे नौकरीपेशा वर्ग के लिए किसी भी कटौती की घोषणा नही की है. 

    सार्वजनिक क्षेत्र की तुलना मे निजी क्षेत्र मे नौकरीपेशा वर्ग की संख्या बहुत अधिक है. वे करो का भुगतान करते है. लेकिन उन्हे पेंशन वेतन, बेरोजगारी सहायता अथवा सेवानिवृत्ति के बाद स्वास्थ्य सेवा नही मिलती है. लेकिन आर्थिक परिस्थिति खराब होने के बावजूद उन्हे कर का भुगतान अनिवार्य रूप से करना पडता है. देश के बॉलीवुड उद्योग और राजनीतिक क्षेत्र के अनेक नागरिक खुद को किसाप घोषित कर अत्यल्प कर का भुगतान करते है. इसलिए सूत्रो ने अपना मत व्यक्त करेत हुए कहा है कि कृषि कार्य से वर्ष मे 10 लाख रूपए से अधिक आय अर्जित करने वालो को भी करो के दायरे मे लाना जाना चाहिए.     

    देश मे नौकरीपेशा वर्ग के मतदाताओ की संख्या केवल 7 प्रतिशत है. इसलिए राजनीतिक दल उन पर गंभीरता से विचार नही करते. इसलिए ही यह विसंगति निर्माण हुई है. सरकार की विरोधाभासी नीति के कारण ही पिछले कुछ वर्षो मे प्रत्यक्ष रूप से कर जता करने वालो की  तुलना मे केवल रिटर्न आवेदन भरने वालो की संख्या बहुत तेजी से बढी है. उपलब्ध आंकडो के अनुसार वर्ष 2020-21 मे 3 करोड 75 लाख नागरिको ने रिटर्न आवेदन दाखिल किया , लेकिन प्रत्यक्ष कर जमा करने वालो की संख्या बहुत कम है.