- इस साल भी पढाई में पिछे छात्रों ने बाजी मारी
करंजी. पिछले साल से कोरोना के नाम से ऑनलाइन स्कूल शुरू हो गए थे और इस साल भी यही स्थिति है. शिक्षा सिरदर्द बनने वाली है. स्कूल कॉलेजों को नुकसान से बचाने के लिए कोरोना द्वारा शुरू किया गया ऑनलाइन स्कूल अभिभावकों के लिए सिरदर्द है. कई माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे अपनी नियमित शिक्षा जारी रखें लेकिन पिछले दो वर्षों से कोरोना महामारी के कारण शिक्षा बाधित हो गई है. नतीजतन छात्र पढ़ाई में जीरो होता जा रहा है.
एक ओर जहां ऑनलाइन स्कूलों की शुरुआत से ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब परिवारों को मोबाइल और नेटवर्क की समस्या हो रही है. एक तरफ ऐसी ऑनलाइन पढ़ाई पर मोबाइल खर्च, रिचार्ज खर्च आदि खर्च भी बढ गया है, एक ही परिवार में दो-तीन बच्चे रहने पर तीन मोबाइल का खर्चा कहां से उठाएंगे.
लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर अगड़बम फीस वसूल की जा रही है. लाकडाउन से 80 फीसदी अभिभावकों ने आनलाइन पढाई के चलते बच्चों के हाथों में मोबाइल दे दिए है. कॉन्वेंट से लेकर छोटे-बडे बच्चों तक सभी के पास मोबाइल फोन होना जरूरी हो गया है. स्कूल बंद होने से कई बच्चे मोबाइल गेम्स की चपेट में आ गए हैं.
नतीजतन, बच्चों को मोबाइल स्मार्ट फोन देना उन्हें मोबाइल का दीवाना बना रहा है. माता-पिता को दोष देना है. इसका परिणाम कल आए 10वीं/12वीं के परिणाम से देखा जा सकता है. ऐसे ही ऑनलाइन रिजल्ट जारी रहा तो मेधावी छात्रों को दीप जलाकर खोजना होगा. यह राय शिक्षा विशेषज्ञों ने व्यक्त की है.
‘ऑनलाइन शिक्षा ग्रामीण छात्रों के लिए अभिशाप बनती जा रही है. क्या इन छात्रों को पहले से ही प्रतियोगिता में पीछे रखने के पीछे यही उद्देश्य है? सवाल यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल शुरू करना आवश्यक है.’