आर्णी. यह कहा जाता है कि जनसेवा ही भगवान की सेवा है, ऐसी कहावत है. इसका जीता जागता उदाहरण आर्णी से खुशाल नागपुरे दिया जा सकता है. उनकी मां स्व. सुशीलाबाई नागपुरे की तबियत ठीक नहीं थी और उनका इलाज चल रहा था. इस दौरान सुशीलाबाई अपना आधा भोजन बुजुर्गों कों देती थीं.
इससे प्रेरित होकर खुशाल नागपुरे ने सुशिलाबाई नागपुरे का निधन होने के पश्चात वृद्धाश्रम की स्थापना की. इसकी शुरुआत में दो वृद्धों के साथ शुरू हुई. इस वृद्धाश्रम के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में, रज्जाक भातनासे ने एक शब्द पर जगह प्रदान की. आज इस वृद्धाश्रम में 30 बुजुर्ग, 4 अनाथ लड़कियां और 1 लड़का रह रहा है. गोपाल ठाकरे, पटवारी राजेंद्र चौधरी, सरपंच एसोसिएशन के तालुका अध्यक्ष अतुल देशमुख आदि इस वृद्धाश्रम के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.
कोरोना काल के दौरान फूल लाकडाउन में, पूर्व विधायक बालासाहेब मुंगिनवार ने 21 दिनों के भोजन की व्यवस्था की थी. इस वृद्धाश्रम को ध्यान में रखते हुए, यवतमाल के प्रतिसाद फाउंडेशन जो लगातार सामाजिक कार्यों के लिए प्रयासरत है, ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उल्लेखनीय है कि दारव्हा के संजय दुधे पिछले दो साल से साप्ताहिक सब्जी के खर्च को कवर कर रहे हैं. दिग्रस के वीर चव्हाण भी मदद कर रहे हैं.
अब से, सामाजिक कार्यकर्ताओं और परोपकारी और सामाजिक संगठनों को बुजुर्गों की मदद और सहयोग करने की अपील मातोश्री स्व. सुशीलाबाई नागपुरे वृद्धाश्रम के संस्थापक अध्यक्ष खुशाल नागपुरे ने किया है. उल्लेखनीय है कि नागपुरे ने इस वृद्धाश्रम में कई वृद्धों का अंतिम संस्कार भी किया है.