इकॉनमी

Published: Nov 08, 2022 12:44 PM IST

Demonetisation'नोटबंदी' के 6 साल बाद भी जारी है इसके फायदों पर बहस, जानें अब क्या है एक्सपर्ट्स की राय

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
Pic: Social Media

नयी दिल्ली.  नोटबंद (Demonetisation) के छह साल बीत जाने के बाद भी इसके फायदे-नुकसान को लेकर बहस जारी है। सरकार का दावा है कि इससे अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने में मदद मिली, जबकि आलोचकों का कहना है कि यह फैसला काले धन पर अंकुश लगाने और नकदी पर निर्भरता को कम करने में विफल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर, 2016 को अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार और काले धन की समस्या को दूर करने के उद्देश्य से 500 और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया था। इस कदम का उद्देश्य भारत को ‘कम नकदी’ वाली अर्थव्यवस्था बनाना था।

यह भी कहा गया कि इससे काले धन पर अंकुश लगाने तथा आतंकवाद के वित्तपोषण को खत्म करने में मदद मिलेगी। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से पखवाड़े के आधार पर शुक्रवार को जारी धन आपूर्ति आंकड़ों के अनुसार, इस साल 21 अक्टूबर तक जनता के बीच चलन में मौजूद मुद्रा का स्तर बढ़कर 30.88 लाख करोड़ रुपये हो गया।

यह आंकड़ा चार नवंबर, 2016 को समाप्त पखवाड़े में 17.7 लाख करोड़ रुपये था। एसबीआई के अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल दिवाली वाले सप्ताह में प्रणाली में नकदी या मुद्रा (सीआईसी) में 7,600 करोड़ रुपये की कमी हुई। लोगों के बीच डिजिटल भुगतान के लोकप्रिय होने के कारण ऐसा हुआ। रिपोर्ट में साथ ही कहा गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय एक संरचनात्मक बदलाव के दौर से गुजर रही है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने नोटबंदी के फैसले की आलोचना करते हुए एक ट्वीट में कहा कि देश को काले धन से मुक्त करने के लिए नोटबंदी का वादा किया गया था, ”लेकिन इसने व्यापार को नुकसान पहुंचाया और नौकरियों को खत्म कर दिया।” अमेरिका के मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर जयति घोष ने कहा कि नोटबंदी के लिए दिया गया तर्क, इसकी योजना और कार्यान्वयन, सभी पूरी तरह गलतियों से भरे थे।