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Published: Jan 31, 2024 10:47 AM ISTIndian Economy ReviewEconomic Survey की जगह आए लेखा जोखा में ऐसे हैं संकेत, मोदी सरकार के सामने ये हैं 2 बड़ी चुनौतियां
नई दिल्ली : आमतौर पर देखा जाता है कि 1 फरवरी को देश के वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ( Finance Minister Nirmala Sitharaman) अपना बजट पेश करने के पहले 31 जनवरी को देश का इकोनामिक सर्वे ( Economic Survey ) पेश किया करती हैं। लेकिन अबकी बार चुनावी साल में वित्त मंत्री द्वारा पेश किए जाने वाले अंतरिम बजट के पहले इकोनामिक सर्वे नहीं पेश होगा, बल्कि 10 वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था-एक समीक्षा (Indian Economy–A Review) पेश होगा। इस रिपोर्ट में आने वाले वर्षों में अर्थव्यवस्था के परिदृश्य की झलक भी साझा की जा रही है। यह रिपोर्ट मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) वी अनंत नागेश्वरन के कार्यालय द्वारा तैयार की गई है, जिससे चुनावी साल में देश को एक अर्थव्यवस्था के बारे में जानकारी देने की कोशिश की जा रही है।
इकोनामिक सर्वे बजट के पहले बजट की पूरी तस्वीर पेश कर देता है। यह एक ऐसा दस्तावेज होता है, जिसमें आगे की संभावनाओं पर चर्चा की गई होती है। लेकिन चुनाव के पहले पेश होने वाले इस अंतरिम बजट के पहले आज कोई भी इकोनामिक सर्वे पेश नहीं किया जाएगा, बल्कि 10 सालों में देश के आर्थिक लेखे जोखे वाली एक रिपोर्ट पेश की जाएगी, जिससे आने वाले कुछ समय तक देश की अर्थव्यवस्था के बारे में के बारे में तस्वीर साफ हो सके।
आर्थिक विश्लेषण करने वाले लोगों की जानकारी के अनुसार अबकी बार वित्त मंत्री के सामने महंगाई और बेरोजगारी पर काबू पाना एक बड़ी चुनौती है। वित्त मंत्रालय द्वारा आर्थिक सर्वेक्षण के बजाय पेश गई की जा रही पूर्व आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट में यह बात परिलक्षित हो रही है। बताया जा रहा है कि देश का आर्थिक सर्वेक्षण लोकसभा चुनाव के बाद पेश होने वाले पूर्ण बजट के पहले प्रकाशित किया जाएगा।
सरकार द्वारा पेश की गई समीक्षा रिपोर्ट में कहा जा रहा है कि चालू वित्तीय वर्ष में भारत के विकास तक 7 फ़ीसदी रहने की उम्मीद है। अगले तीन वर्षों में 5 लाख करोड़ डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद अथवा जीडीपी के साथ दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा गया है। अभी तक 3.7 लाख करोड़ डॉलर की अनुमानित जीडीपी के साथ हिंदुस्तान दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
आपको याद होगा कि मोदी सरकार के द्वारा 2030 तक अर्थव्यवस्था को 7 लाख करोड़ डालर तक पहुंचाने और 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने की उम्मीद जताई गई है। समीक्षा रिपोर्ट में लगभग उसी तरह की सारी बातों का विवरण है, जो पिछले लंबे समय से कहीं जा रही हैं।
5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना मोदी सरकार का एक बड़ा महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, जिसे पाने के लिए मंदी के दौर में भी जोरशोर से प्रयास किए जा रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था द्वारा तरह-तरह के प्रयासों से इसको पाने का दावा किया जा रहा है। समीक्षा रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में पिछले 10 वर्षों में कई उल्लेख में सुधार हुए हैं, जिसका असर आर्थिक प्रगति पर देखा जा रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू मांग और निवेश बढ़ा है। पिछले 3 वर्षों को देखें तो विकास दर 7 फीसदी जल्दी से अधिक रही है। हालांकि समीक्षा रिपोर्ट देखने के बाद आर्थिक विश्लेषक इसका और बारीकी से विश्लेषण करेंगे।
कुछ लोगों का कहना है कि संतुलित अर्थव्यवस्था में जो विकास की दर होनी चाहिए, वह अभी नहीं रही है। अर्थव्यवस्था काफी लड़खड़ाती हुई नजर आ रही है। महंगाई और बेरोजगारी पर काबू पाना सरकार के लिए अभी भी चुनौती बनी है। इसके लिए घरेलू मांग और निवेश का बढ़ना कुछ असंगत जान पड़ता है।
औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्र में उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है। निर्माण और विनिर्माण के क्षेत्र में भी उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। ऐसे में विकास करने संतुलन बनाए रखना सरकार के लिए काफी बड़ा सवाल होगा।