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Published: Sep 23, 2023 12:00 AM IST

One Nation One Electionतो क्या 6 महीने के लिए टाल दिए जाएंगे 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव? क्या होगा अन्य राज्यों की सरकारों का?

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

नई दिल्ली. जिस तेजी से केंद्र की मोदी सरकार वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर आक्रामक नजर आ रही है, उससे ये अनुमान लगाना आसान हो गया है कि बहुत जल्द इससे जुड़ी सुगबुगाहट, वास्तविकता का रूप ले सकती है। जिस तरह विशेष संसद के पहले दिन पीएम मोदी ने पुराने संसद में कई भावुक बयान दिए, और नए संसद को 2047 के विकसित भारत से जोड़ते हुए, 75 सालों की यात्रा को एक साथ मिलकर आगे बढ़ाने की बात कही, उससे उन कयासों को और मजबूती मिल गई है जो अब तक मीडिया और सियासी गलियों में ही गोते खा रहे थे।

ऐतिहासिक निर्णयों वाला विशेष सत्र

पीएम मोदी ने जिस तरह इस विशेष सत्र को ऐतिहासिक निर्णयों वाला बताया, बहुत संभव है कि उन्होंने देश को वन नेशन वन इलेक्शन का तोहफा देने का भी मूड बना लिया हो। चूंकि पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में कमेटी का गठन पहले ही किया जा चुका है तो सरकार का पक्ष अपने आप साफ़ हो जाता है, लेकिन क्या केंद्र के लिए ये सब कुछ इतना आसान होगा? क्या ऐसी भी कोई सम्भावना है कि केंद्र आगामी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों तक के लिए टाल दे?

मध्य प्रदेश मं बीजेपी की सरकार

चूंकि फिलहाल तेलंगाना, मिजोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में से सिर्फ मध्य प्रदेश में ही बीजेपी की सरकार है, लेकिन आशंका जताई जा रही है कि केंद्रीय नेतृत्व के भरसक प्रयास को भी प्रदेश में बीजेपी की वापसी के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। कुछ पार्टी के अंदरूनी कलेश के कारण और कुछ केंद्र की मेहरबानियों के कारण, और ऐसी स्थिति सिर्फ मध्य प्रदेश में नहीं बल्कि देश के कई राज्यों में बनी हुई है, जहां बीजेपी शासन में है।

महंगाई, बेरोजगारी, असहिष्णुता जैसे मुद्दों पर घिरी केंद्र सरकार

राजनीतिक रणनीतिकार अतुल मलिकराम के अनुसार ऐसे समय में सत्ता पक्ष के लिए सबसे अच्छा यही फार्मूला हो सकता है कि पहले वन नेशन वन इलेक्शन को प्लेटफार्म पर लाया जाए और फिर राज्यों के विधानसभा चुनावों का समीकरण तैयार किया जाए। लोकसभा चुनाव 2024 में फ़िलहाल लगभग 6 महीने से अधिक का समय है यानि इतना ही समय केंद्र के पास भी वन नेशन वन इलेक्शन का मसौदा तैयार करने, लागू करने और प्रदेशों के साथ राष्ट्रीय स्तर पर बनी मतदाताओं की नाराजगी को कम करने का है। फ़िलहाल केंद्र सरकार, महंगाई, बेरोजगारी, असहिष्णुता जैसे मुद्दों पर घिरी हुई है। और देश का एक बड़ा धड़ा इंडिया गठबंधन के जरिए विपक्षी खेमे में जाता नजर आ रहा है। इन सब से पार पाने का सबसे सटीक तरीका वन नेशन वन इलेक्शन हो सकता है लेकिन इसको धरातल पर लाने वाली मुश्किलों से कैसे पार पाया जाएगा, यह अधिक विचारणीय है। फिर क्या इसके लिए सभी दल राजी हो जाएंगे? लेकिन फिर अन्य राज्यों में चल रही सरकारों का क्या होगा?

सरकारी मशीनरी का बंदोबस्त कैसे करेंगे?

यदि राजनीतिक दलों के स्तर पर सब सही भी रहता है तो आप इतने बड़े स्तर पर सरकारी मशीनरी का बंदोबस्त कैसे करेंगे? इसके इतर वोटर आखिर किस मुद्दे पर वोट डालेंगे, चूंकि केंद्र और राज्यों के मुद्दे अलग-अलग होते हैं, और राष्ट्रीय विषयों को प्रदेश व शहर या क्षेत्रीय विषयों से सीधे तौर पर नहीं जोड़ा जा सकता तो एक मतदाता किस आधार पर केंद्र और राज्य सरकारों का चुनाव करेगा? इतना ही नहीं आप क्षेत्रीय पार्टियों के अस्तित्व को फिर कैसे देखेंगे? इसके लिए लोक प्रतिनिधि अधिनियम 1951 में विभिन्न संसोधनों और लोकसभा व विधानसभा की प्रक्रियाओं में संसोधन को भी अंजाम देना होगा। लेकिन विधि आयोग के अनुसार इन संसोधनों के लिए राज्यसभा के भी 50 फीसदी मतों की जरुरत पड़ेगी। ऐसे ही तमाम प्रश्न और हैं और किये जा सकते हैं जिनका जवाब मोदी सरकार को खोजना होगा, और ऐसा सिर्फ सर्वसम्मति से ही संभव है शायद इसीलिए सत्ता पक्ष के कड़क लहजे में अब थोड़ी नरमी देखने को मिल रही है। अंतिम फैसला जो भी हो, ऊपर से देखने और सुनने में वन नेशन वन इलेक्शन जितना कलेक्टिव और प्रोग्रेसिव लगता है, जमीनी स्तर पर इसे लागू करना उतना ही पेंचीदा और मुश्किल मालूम पड़ता है।