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Published: Jul 14, 2021 05:18 PM IST

History Of Tipरेस्टोरेंट में खाने के बाद क्यों दी जाती है TIP? जानें कब शुरू हुई ये परंपरा और इसका इतिहास

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

नई दिल्ली : आम तोर पर दुनिया के किसी भी रेस्टोरेंट में हम जाते हैं तो हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है की टिप देने के पीछे क्या वजह है। या इसके पीछे क्या इतिहास है। तो आज हम आपको टिप से जुड़ी पूरी कहानी बताने वाले है। आप अपने दोस्त या परिवार के साथ किसी अच्छे होटल या रेस्टोरेंट में जाते हैं। खाना ऑर्डर करते हैं और खाते हैं। वेटर से बिल मंगवाते हैं। 

मान लीजिए, 3360 रुपये का बिल बनता है। आप वेटर को 2000 रुपये की 2 नोट थमाते हैं। वह काउंटर से आपको 640 रुपये लाकर वापस देता है. आप इसमें से 500 का नोट उठाते हैं और 140 रुपये वेटर के लिए छोड़ देते हैं। अब ये जो 140 रुपये एक्सट्रा हैं, यह आपकी ओर से वेटर के लिए टिप (TIP) हो गई।

क्या आपको मालूम है कि टिप देने की शुरुआत कैसे हुई, इसके पीछे की कहानी क्या है, कैसे टिप देना एक संस्कृति बन गई, परंपरा बन गई, कैसे इस कल्चर का एक समय विरोध भी हुआ, फिर पोस्ट मॉडर्न व्यवस्था में सर्विस चार्ज जैसी चीज भी आई, लेकिन टिप देने की परंपरा अभी भी जारी है… तो चलिए आज इन सभी प्रश्नों के उत्तर आपको इस खबर की जरिये देते है….. 

कब हुई टिप देने की शुरुआत

खाने के बाद टिप की परंपरा अंग्रेजों ने शुरू की थी। यह बात है 1600 ईस्वी की। संयोग से उसी दशक में अंग्रेजों ने भारत की धरती पर कदम रखा था। ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना इसी वर्ष हुई थी और इसे ही सामान्यत: अंग्रेजों के भारत आगमन से जोड़कर देखा जाता है। TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1600 ईस्वी में अंग्रेजों की हवेली में काम करने वाले कर्मचारियों को अच्छी सेवा देने पर एक छोटी राशि देने की शुरुआत हुई। कर्मचारियों की सराहना के तौर पर इसकी शुरुआत हुई थी। बाद में यह एक चलन बन गया। 

अमेरिका में कुछ अलग है कहानी 

टिप देने की शुरुआत को लेकर कई कहानियां बताई जाती हैं। foodwoolf वेबसाइट ने अमेरिका में टिपिंग की शुरुआत 18वीं शताब्दी में बताया है। न्‍यूयॉर्क में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ होटल एडमिनिस्ट्रेशन (Cornell University School of Hotel Administration) में प्रोफेसर माइकल लिन के मुताबिक अमेरिका में इसकी शुरुआत अभिजात्य वर्ग यानी अमीर लोगों द्वारा दिखावे के रूप में हुई। तब समाज का एक वर्ग अपना क्लास दिखाने के लिए, खुद को वेल एजुकेटेड बताने के लिए कर्मियों या सेवादारों को टिप देते थे। हालांकि लिन भी मानते हैं कि ब्रिटेन में इसकी शुरुआत 17वीं शताब्दी में ही हो गई थी, जब खासकर शराब पीने वाले लोग वेटर्स को या नौकरों को टिप देते थे।  यह एक तरह से इस बात की श्योरिटी होती थी कि उन्हें जल्दी शराब परोसी जाएगी। उनकी ग्लास का खास ख्याल रखा जाएगा। 

TIP यानी To Ensure Promptitude?

1706 ईस्वी में ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार ‘टिप’ शब्द का सबसे पहला प्रयोग हुआ। यह भी कहा जाता है कि TIP का फुल फॉर्म To Ensure Promptitude है। यानी टिप इस बात का संकेत है कि टिप देनेवाले को स्पेशल, बेहतर और तुरंत सर्विस दी जाएगी। प्रो लिन की बातों में भी यह एक कॉमन तथ्य दिख पड़ता है। लेखक और कोशकार सैमुअल जॉनसन ने 18वीं शताब्दी के एक कॉफी हाउस में एक टिपिंग जार पर ध्यान दिया था, जिसका इंग्लैंड में इस्तेमाल होता था। हालांकि बहुत सारे लोगों ने इस शॉर्ट फॉर्म (TIP) को अफवाह बताया है। 

अमेरिकी पत्रकारों ने टिप का किया था विरोध 

1764 ईस्वी में जब पूरे ब्रिटेन में होटल, रेस्तरां, पब में कर्मचारियों को भत्ता देना आम हो गया तो अभिजात्य वर्ग ने टिपिंग को खत्म करने की कोशिश की। इस दौरान लंदन में बवाल भी खूब हुआ। 1904 में अमेरिका में पत्रकारों ने भी इसकी निंदा की। उनके मुताबिक, टिपिंग यानी टिप देने की परंपरा एक तरह की गुलामी दिखाता है। यह अमेरिकी संस्कृति में शामिल नहीं था। तब जॉर्जिया में एक एंटी-टिपिंग सोसाइटी ऑफ अमेरिका का गठन किया गया और इसके अगले दशक में वाशिंगटन सहित 6 अमेरिकी राज्यों ने टिपिंग विरोधी कानून पारित किया। हालांकि 1926 में सभी अमेरिकी राज्यों में टिपिंग विरोधी कानूनों को निरस्त कर दिया गया।

टिप के बदले दे बेहतर वेतन – सिफारिश

1960 में अमेरिकी कांग्रेस ने फेयर लेबर स्टैंडर्ड एक्ट (FLSA) में एक संशोधन पारित किया, जिसके मुताबिक, कर्मचारियों के लिए टिप की राशि तय की गई।  टिपिंग अमेरिका और यूरोपियन कंट्रीज से निकल कर दुनियाभर के देशों में एक कल्चर बन चुका है। न केवल होटल या रेस्तरां में, बल्कि टैक्सी, डिलीवरी, रूम सर्विस समेत कई सेवाओं में टिप देने की परंपरा बन गई है। अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य यूरोपियन कंट्रीज में टिप देना तो एक अलिखित नियम बन गया है।  इन देशों में कुछ रेस्तरां और होटल संचालक टिपिंग पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हैं। इसके बदले वे कर्मचारियों को बेहतर वेतन देने की सिफारिश करते हैं।

जाने किया है टिप और सर्विस चार्ज से जुड़े नियम

सामान्य अवधारणा है कि ज्यादातर भारतीय उदार टिपर नहीं होते। टिप देना आपकी इच्छा पर निर्भर करता है। आपसे कोई जबरदस्ती तो की नहीं जा सकती। बहरहाल, जब जब रेस्टोरेंट ने बिल में सर्विस चार्ज जोड़ना शुरू किया तो इससे स्टिंगी टिपिंग की समस्या कुछ हद तक हल हो गई। हालांकि सीबीडीटी, यह मानकर चलता है कि सभी रेस्टोरेंट कर्मचारियों को सर्विस चार्ज में मिली राशि नहीं देते। इसलिए बैलेंस शीट पर उनकी कड़ी नजर रहती है।

5 वर्ष पहले ही उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय (Department of Consumer Affairs) ने स्पष्ट कर दिया था कि रेस्टोरेंट के बिल में लगने वाला सर्विस चार्ज ऑप्शनल है, मेंडेटरी नहीं। यानी आपको रेस्टोरेंट की सर्विस पसंद नहीं आई तो आप सर्विस चार्ज देने से इनकार कर सकते हैं। रेस्टोरेंट में 5 से 20 परसेंट तक सर्विस चार्ज लिया जाता है। कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के मुताबिक, अगर किसी ग्राहक को सर्विस चार्ज के रूप में गलत तरीके से पैसा देने के लिए मजबूर किया जाता है तो वह इसकी शिकायत कंज्यूमर फोरम से कर सकता है।