धर्म-अध्यात्म

Published: Jul 17, 2021 08:30 AM IST

Devshayani Ekadashiइस दिन है 'देवशयनी एकादशी', रुक जाएंगे सभी मांगलिक कार्य

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
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-सीमा कुमारी

जुलाई के महीने में कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार हैं। जुलाई महीना धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। 25 जून, शुक्रवार से आषाढ़ मास का आरंभ हो चुका है। ‘देवशयनी एकादशी’ इस साल जुलाई में ही है। इस एकादशी से विष्णु भगवान शयन में चले जाएंगे और चार महीने बाद ‘देव उठनी एकादशी’ के दिन जागेंगे।

इस साल ‘देवशयनी एकादशी’ 20 जुलाई को पड़ेगी। इसलिए सभी मांगलिक कार्य जुलाई तक ही किए जाएंगे। इसके बाद मांगलिक कार्य जैसे यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश नहीं किए जाते हैं। इन चार महीनों को ‘चातुर्मास’ कहते हैं। इनमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इसमें आषाढ़ के 15 और कार्तिक के 15 दिन शामिल है।

आषाढ़ ‘शुक्ल एकादशी’ से प्रारंभ होकर ‘कार्तिक शुक्ल एकादशी’ तक चलता है। ऐसा कहा जाता है कि ‘चातुर्मास’ आरंभ होते ही भगवान विष्णु धरती का कार्य भगवान शिव को सौंपकर खुद विश्राम के लिए चले जाते हैं। इसलिए इस दौरान शिव आराधना का भी बहुत महत्व है।सावन का महीना भी ‘चातुर्मास’ में ही आता है। इसलिए इस महीने में शिव की आराधना शुभ फल देती है।

20 जुलाई 2021 से आरंभ होगा ‘चातुर्मास’:

पंचांग के अनुसार, 20 जुलाई, मंगलवार को आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से ‘चातुर्मास’ शुरू होगा। इस एकादशी से भगवान विष्णु विश्राम की अवस्था में आ जाते हैं। 14 नवंबर 2021 को ‘देवोत्थान एकादशी’ पर विष्णु भगवान विश्राम काल पूर्ण कर क्षीर सागर से बाहर आकर पृथ्वी की बागड़ोर अपने हाथों में लेते हैं।

एकादशी के व्रत को समाप्त करने को ‘पारण’ कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गई हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।

एकादशी में चावल न खाने का धार्मिक महत्व:

पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया। चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए, इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है। जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया, उस दिन एकादशी तिथि थी। इसलिए इनको जीव रूप मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है, ताकि सात्विक रूप से ‘विष्णुप्रिया एकादशी’ का व्रत संपन्न हो सके।

एकादशी के दिन चावल न खाने के पीछे सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि ज्योतिषीय कारण भी है। ज्योतिष के अनुसार चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। जल पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। ऐसे में चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है और इससे मन विचलित और चंचल होता है। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है।

एकादशी व्रत में मन का पवित्र और सात्विक भाव का पालन अति आवश्यक होता है। इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजें खाने की मनाही है। सभी एकादशियों को श्री नारायण की पूजा की जाती है। लेकिन, इस एकादशी को श्री हरि का शयनकाल प्रारम्भ होने के कारण उनकी विशेष विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। ‘पदम् पुराण’ के अनुसार ‘देवशयनी एकादशी’ के दिन कमललोचन भगवान विष्णु का कमल के फूलों से पूजन करने से तीनों लोकों के देवताओं का पूजन हो जाता है।