धर्म-अध्यात्म

Published: Jul 27, 2021 12:11 PM IST

Sankashti Chaturthiआज है सावन में ‘संकष्टी चतुर्थी’, जानें व्रत-विधि और इसकी महिमा

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
File Photo

-सीमा कुमारी 

हिंदू धर्म में ‘संकष्टी चतुर्थी’ का बड़ा महत्व है। हर महीने दो चतुर्थी आती है। एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में।शास्त्रों के अनुसार, चतुर्थी तिथि बुद्धि और शुभता के देव भगवान श्रीगणेश को समर्पित होती है। ऐसे में हर शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेश की पूजा अवश्य की जाती है। कृष्ण पक्ष में जो चतुर्थी आती है वो संकष्टी चतुर्थी कहलाती है। कुछ महीनों में ऐसे संयोग भी बनते हैं जब कृष्ण पक्ष की चतुर्थी मंगलवार को होती है। इसे ही ‘अंगारकी संकष्टी चतुर्थी’ (Angarki Sankashti Chaturthi) कहा जाता है। इस बार यह चतुर्थी सावन मास में आज यानी 27 जुलाई 2021 को पड़ रही है।

माना जाता है कि चतुर्थी पर भगवान गणेश की आराधना करने और विधि-विधान से व्रत करने पर सारे संकट दूर होते हैं। जब यही चतुर्थी मंगलवार को पड़ती है तो इसमें मंगल देव का आशीर्वाद भी जुड़ जाता है। आइए जानें  ‘संकष्टी चतुर्थी’ के बारे में-

पूजा-विधि:

मान्यताओं के अनुसार, इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नाननादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं और हाथ में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प करें। ब्रह्मचर्य का पालन जरूर करना चाहिए। मंदिर में देवी- देवताओं को स्नान कराएं और और उन्हें भी स्वच्छ लाल या पीले रंग के स्वच्छ वस्त्र पहनाएं। इसके बाद एक लकड़ी की चौकी पर स्वच्छ कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश प्रतिमा स्थापित करें। प्रतिमा को इस तरह से स्थापित करें कि पूजा करते समय आपका मुख उत्तर या पूर्व दिशा में रहे। अब भगवान गणेश के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें और सिंदूर, अक्षत, दूर्वा एवं पुष्प से पूजा-अर्चना करें।    

पूजा के दौरान ‘ॐ गणेशाय नमः’ या ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्रों का उच्चारण सदहृदय से करें। भगवान गणेश की आरती करें और उन्हें मोदक, लड्डू या तिल से बने मिष्ठान का भोग चढ़ाएं। शाम को व्रत की कथा करें। इसके बाद और चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत तोड़ें।

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

गणपति पूजन में इस चतुर्थी का खास महत्व है। वैसे तो ऐसे चतुर्थी का मंगलवार को आना ही बड़ा अच्छा संयोग माना जाता है। इस संबंध में अलग-अलग कथाएं भी प्रचलित हैं।  संतान की लंबी आयु के लिए इस दिन व्रत किया जाता है। प्राचीन कथा है कि जब पार्वती जी के अनुरोध पर शिवजी ने गणपति को नया मुख लगवाया तो उनका नाम गजानन रखा गया।  उसके बाद से ही चतुर्थी व्रत की परंपरा शुरू हुई। संतान की लंबी और स्वस्थ आयु के लिए माताएं ये व्रत करती हैं।