धर्म-अध्यात्म

Published: Jul 07, 2021 12:22 PM IST

Jagannath Rath Yatra 2021जगन्नाथपुरी में क्यों लगता है खिचड़ी का भोग? जानें क्या है रसोई का रहस्य?

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

-सीमा कुमारी

हिन्दू धर्म में चार धामों का बड़ा महत्त्व है। इन्हीं में से एक धाम भगवान जगन्नाथ जी का पवित्र धाम है जगन्नाथ पुरी। पुरी उड़ीसा में समुद्र तट के किनारे बसा ऐतिहासिक शहर है। अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ अदभुत स्थापत्य कला के लिए भी जाना जाता है। भगवान जगन्नाथ, भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण  रूप हैं। पुरी को ‘पुरुषोत्तम क्षेत्र’ और ‘श्री क्षेत्र’ के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों में ‘जगन्नाथ धाम’ (Jagannath Dham) को धरती का बैकुंठ, यानी स्वर्ग भी कहा गया है। यह हिन्दू धर्म के चार पवित्र धामों बद्रीनाथ, द्वारिका, रामेश्वरम के साथ चौथा धाम माना जाता है।

श्री जगन्नाथ का मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है। इसके शिखर पर अष्टधातु से निर्मित विष्णु जी का सुदर्शन चक्र लगा हुआ है, जिसे ‘नीलचक्र’ भी कहते हैं। मंदिर परिसर में अन्य देवी-देवताओं के भी कई मंदिर हैं जिनमें से मां विमला देवी शक्तिपीठ भी शामिल है। जगन्नाथ मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो सिंह लगे हुए हैं। दर्शन के लिए पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण में चार द्वार हैं जिनके जरिए श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए प्रवेश करते हैं। चारों प्रवेश द्वारों पर हनुमान जी विराजमान हैं, जो कि श्री जगन्नाथ जी के मंदिर की सदैव रक्षा करते हैं।

रथयात्रा

हर साल यहां आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से ‘रथयात्रा’ का आयोजन होता है। श्री जगन्नाथजी, बलभद्रजी और सुभद्राजी रथ में बैठकर अपनी मौसी के घर तीन किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। लाखों लोग रथ खींच कर तीनों को वहां ले जाते हैं। फिर आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तीनों वापस अपने स्थान पर आते हैं। रथयात्रा को देखने के लिए लाखों लोग देश-विदेश से जगन्नाथ पुरी (Jagannath Puri) आते हैं।

खिचड़ी भोग

यहां के खिचड़ी भोग की बहुत महिमा है। मंदिर में प्रवेश से पहले दाईं तरफ आनंद बाजार और बाईं तरफ महाप्रभु श्री जगन्नाथ मंदिर की पवित्र विशाल रसोई है। इस रसोई में प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तन एक दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है, लेकिन, आश्चर्य की बात यह है कि इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान सबसे पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है। मंदिर के इस प्रसाद को रोज़ाना करीब 25,000 से ज़्यादा श्रद्धालु ग्रहण करते हैं। ख़ास बात तो यह है कि यहां न तो प्रसाद बचता है और न ही कभी कम पड़ता है।

क्यों लगता है खिचड़ी का भोग?

श्री जगन्नाथ मंदिर में प्रात:काल भगवान श्री जगन्नाथजी को खिचड़ी का बालभोग लगाया जाता है। इसके पीछे पौराणिक कथा यह  है कि प्राचीन समय में भगवान की एक परम भक्त थी कर्माबाई जो कि जगन्नाथ पुरी में रहती थीं और भगवान से अपने पुत्र की तरह स्नेह करती थी। कर्मा बाई एक पुत्र के रूप में ठाकुरजी के बाल रूप की उपासना करती थीं। एक दिन कर्मा बाई की इच्छा हुई कि ठाकुरजी को फल-मेवे की जगह अपने हाथों से कुछ बना कर खिलाऊँ। 

उन्होंने प्रभु को अपनी इच्छा के बारे में बताया। भगवान तो भक्तों के लिए सर्वथा सरल रहते हैं। तो प्रभुजी बोले, ‘मां, जो भी बनाया हो, वही खिला दो। बहुत भूख लग रही है’। कर्मा बाई ने खिचड़ी बनाई थी और ठाकुर जी को बड़े चाव से खिचड़ी खाने को दे दी। प्रभु बड़े प्रेम से खिचड़ी खाने लगे और कर्मा बाई यह सोचकर भगवान को पंखा झलने लगीं कि कहीं गर्म खिचड़ी से मेरे प्रभु का कहीं मुंह न जल जाए। प्रभु बड़े चाव से खिचड़ी खा रहे थे और मां की तरह कर्मा उनका दुलार कर रही थी। भगवान ने कहा, मां मुझे तो खिचड़ी बहुत अच्छी लगी। मेरे लिए आप रोज खिचड़ी ही पकाया करें। तो मैं यहीं आकर रोज ऐसी ही खिचड़ी खाऊंगा। अब कर्मा रोज बिना स्नान के ही प्रातःकाल ठाकुरजी के लिए खिचड़ी बनाती थीं। कथानुसार ठाकुरजी स्वयं बालरूप में कर्माबाई की खिचड़ी खाने के लिए आते थे। लेकिन एक दिन कर्माबाई के यहां एक साधु मेहमान आया। 

उसने जब देखा कि कर्माबाई बिना स्नान किए ही खिचड़ी बनाकर ठाकुरजी को भोग लगा देती हैं, तो उसने उन्हें ऐसा करने से मना किया और ठाकुरजी का भोग बनाने व अर्पित करने के कुछ विशेष नियम बता दिए। अगले दिन कर्माबाई ने इन नियमों के अनुसार ठाकुरजी के लिए खिचड़ी बनाई जिससे उन्हें देर हो गई और वे बहुत दु:खी हुईं कि आज मेरा ठाकुर भूखा है। ठाकुरजी जब उनकी खिचड़ी खाने आए तभी मंदिर में दोपहर के भोग का समय हो गया और ठाकुरजी जूठे मुंह ही मंदिर पहुंच गए। 

वहां पुजारियों ने देखा कि ठाकुरजी के मुंह पर खिचड़ी लगी हुई है, तब पूछने पर ठाकुरजी ने सारी कथा उन्हें बताई। जब यह बात साधु को पता चली तो वह बहुत पछताया और उसने कर्माबाई से क्षमा-याचना करते हुए उसे पूर्व की तरह बिना स्नान किए ही ठाकुरजी के लिए खिचड़ी बनाकर ठाकुरजी को खिलाने को कहा। इसलिए आज भी पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रात:काल बालभोग में खिचड़ी का ही भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि यह कर्माबाई की ही खिचड़ी है।