धर्म-अध्यात्म

Published: Sep 24, 2020 12:38 PM IST

धर्म-अध्यात्मक्यों मनाया जाता है संवत्सरी पर्व? जानें क्या है मिच्छामी दुक्कड़म का अर्थ

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

-सीमा कुमारी 

साल भर में आपसे जाने अनजाने में जो भी गलतियां हुई हैं उसका अफ़सोस करने और सुधारने के लिए यह पर्व मनाया जाता हैं. समस्त भूलों के लिए प्रायश्चित करना तथा दूसरों के प्रति हुए अशिष्ट व्यवहार के लिए अत्यन्त सरल, ऋजु व पवित्र बनकर क्षमा माँगना और सारे कष्ट को नष्ट करने के लिए हमें इस पर्व की आराधना करनी चाहिए. माना जाता हैं की इस संवत्सरी महापर्व को जो सच्चे मन से करता हैं, उनके सारे कष्ट और  गलतियाँ माफ़ हो जाती हैं. यह जैन समुदाय  का एक महत्वपूर्ण पर्व हैं. इस दिन सभी अपने शक्ति के अनुसार उपवास रखते हैं. गलतियों के लिए क्षमा करना ही महानता है. जैन धर्म में इसके दस लक्षण हैं. 

दस लक्षण  इस प्रकार हैं:

जैन धर्म में जो इन दस लक्षणों को अच्छी तरह से पालन कर लें, उसे इस धरती  से मुक्ति मिल सकती है. वैसे तो हर धर्म में कोई व्यक्ति अगर सच्चे मन से पूजा पाठ या प्रार्थना करता हैं तो उसे माफ़ी मिल जाती हैं. ऐसा हर धर्म में कहा गया हैं की जैन धर्म के इस पर्व के दौरान लोग पूजा-अर्चना, आरती, समागम, त्याग-तपस्या, उपवास आदि में अधिक से अधिक समय व्यतीत करते हैं.

इस पर्व का आखिरी दिन ‘क्षमावाणी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. जिसमें हर किसी से ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहकर क्षमा मांगते हैं. संवत्सरी पर्व के आखिरी दिन ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहने की परंपरा है. इसमें हर छोटे-बड़े से ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहकर क्षमा मांगते हैं. यह त्यौहार बाकी सभी त्योहारों में सबसे अलग त्यौहार हैं. क्योंकि इस त्यौहार में सभी को एक मौका मिलता हैं माफ़ी मांगने की या  फिर  गलतियों को सुधारने का और यह त्यौहार समाज को एकजुटता का एहसास दिलाता हैं.