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Published: Mar 25, 2023 04:10 PM IST

World Theatre Day 2023आज है ‘विश्व रंगमंच दिवस’, जानें इससे जुड़ी कुछ रोचक जानकारी

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

नई दिल्ली: रंगमंच एक ऐसा माध्यम है जो असल जिंदगी के कई भूमिका बयां करता है। ये एक ऐसा माध्यम है जिससे हर कोई रिलेट करता है। इसलिए हर किसी के लिए इस मनोरंजन के इस माध्यम का बहुत महत्व है। इस महत्व को बनाए रखने के लिए हर साल पुरे विश्व में 27 मार्च यानी आज के दिन  ‘विश्व रंगमंच दिवस’ (World Theatre Day) यह दिन मनाया जाता है। रंगमंच एक ऐसा माध्यम है जहां से हम अपनी बात कई हजारों लाखों लोगों तक पहुंचा सकते है। रंगमंच मनोरंजन का सबसे पुराना माध्यम है। खासकर, बता करें हमारे  भारत देश की तो, आप जानते ही हैं कि, हम लोग मनोरंजन और कला के प्रति बहुत दीवाने हैं।

बता दें कि पहले सिनेमा नहीं होता था, एंटरटेनमेंट के लिए लोगों के पास थियेटर यही एकमात्र विकल्प था। आज भी हम सबके लिए थिएटर का महत्व कम नहीं हुआ है। बॉलीवुड में कई नामी चेहरे थिएटर की ही देन है। आज ‘विश्व रंगमंच दिवस’ (World Theatre Day) दिवस के अवसर पर आइए जानते है इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी…

विश्व रंगमंच दिवस का उद्देश्य

‘विश्व रंगमंच दिवस’ मनाने के कई महत्वपूर्ण उद्देश्य है, पूरी दुनिया के समाज और लोगों को रंगमंच की संस्कृति के विषय में बताना, रंगमंच के विचारों के महत्व को समझाना, रंगमंच संस्कृति के प्रति लोगों में दिलचस्पी पैदा करना और इससे जुड़े लोगो को सम्मानित करना है।

इसके अलावा विश्व रंगमंच दिवस मनाने कुछ अन्य उद्देश्य ये है, जैसे कि, दुनिया भर में रंगमंच को बढ़ावा देने, लोगों को रंगमंच की जरूरतों और इम्पोर्टेंस से अवगत कराना, रंगमंच का आनंद उठाया और  इस रंगमंच के आनंद को दूसरों के साथ शेयर करना,  इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए करने के लिए यह दिन पुरे विश्वभर में मनाया जाता है।  

विश्व रंगमंच दिवस का इतिहास

इस बारे में कहा जाता है कि, भारत के महान कवि कालिदास जी ने भारत की पहली नाट्यशाला (Theatre) में ही ‘मेघदूत‘ की रचना कि थी। भारत की पहली नाट्यशाला अंबिकापुर जिले के रामगढ़ पहाड़ पर स्थित है, जिसका निर्माण कवि कालिदास जी ने ही किया था। आपको बता दें कि भारत में रंगमंच का इतिहास आज का नहीं बल्कि सहस्त्रों साल पुराना है।

आप इसके प्राचीनता को कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि, पुराणों में भी रंगमंच का उल्लेख यम, यामी और उर्वशी के रूप में देखने को मिलता है।  इनके संवादों से ही प्रेरित होकर कलाकारों ने नाटकों की रचना शुरू की। जिसके बाद से नाट्यकला (Drama) का विकास हुआ और भारतीय नाट्यकला (Indian Drama) को शास्त्रीय रूप देने का कार्य भरतमुनि जी ने किया था।