आज की खास खबर

Published: Nov 20, 2021 03:25 PM IST

आज की खास खबरकिसान कानूनों की वापसी में BJP ने कर दी बहुत देर. UP- पंजाब बचाने मोदी का नया पैंतरा

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

बंगाल विधानसभा चुनाव में हारने के बाद बीजेपी को समझ में आ गया था कि उसकी जमीन किसी पोली है. यह भी अहसास हो गया कि मोदी अभेद नहीं हैं और उनके नेतृत्व को भी चुनौती दी जा सकती है. लंबे आंदोलन के बाद किसानों ने सरकार को झुकाया. इसके पीछे किसानों की ताकत तो थी ही, साथ इस आंदोलन का असर यूपी चुनाव पर भी नजर आने लगा था. 

यहां तक कि बीजेपी और आरएसएस का सर्वे भी कहने लगा था कि पार्टी की हालत बहुत खस्ता है. दिल्ली का तख्त बचाने और यूपी चुनाव जीतने के लिए कृषि कानूनों को वापस लेने के अलावा केंद्र के पास कोई पर्याय नहीं था. 4 माह बाद होने वाले यूपी चुनाव के बाद अगले वर्ष राष्ट्रपति चुनाव भी है. इसके लिए यूपी में पार्टी की मजबूती बेहद जरूरी है.

किसान कानूनों की वापसी में सरकार ने बहुत देर कर दी. क्या बीजेपी किसानों को समझा पाएगी कि कानून क्यों बनाया और फिर क्यों वापस लिया? महेंद्रसिंह टिकैत के बाद उके पुत्रों ने भी साबित कर दिया कि उनका आंदोलन इतनी उंचाई पर पहुंच सकता है. जेपी और राजनारायण के इंदिरा विरोधी आंदोलन और अन्ना हजारे के आंदोलन की तरह यह आंदोलन भी तख्त बदलने की ताकत रखता है. 

यह पहला वक्त है जब किसानों ने अपनी जबरदस्त ताकत दिखाई. 14 जनवरी 2021 को राहुल गांधी ने वक्तव्य दिया था कि मेरे शब्दों को लिखकर रखिए कि कानून वापस लेना होगा, इसके अलावा विकल्प नहीं है. राहुल का यह टि्वटर कांग्रेस ने वायरल किया जो पार्टी के बढ़े हुए आत्मविश्वास का प्रतीक है.

कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार की सारी अकड़ खत्म हो गई और उसे बैक फुटपर आना पड़ा. शायद ही कभी ऐसा होता है कि संसद में प्रस्ताव पारित होने के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी से बने हुए कानूनों को भारी विरोध की वजह से वापस ले लिया जाए. तीनों कृषि काननों के मामले में ऐसा हुआ. जाहिर है कि किसानों के सामने मोदी सरकार पस्त हो गई. यदि कानूनों को अंतत वापस लेना ही था तो इन्हें बनाया ही क्यों और वापसी में इतना विलंब क्यों लगाया? 

एक वर्ष से अधिक समय से इन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसान लगातार धरना आंदोलन का रहे थे. किसान नेता इन कानूनों को किसान विरोधी बताते हुए इनकी पूरी तरह वापसी की मांग पर अड़े हुए थे. केंद्रीय मंत्रियों और किसान नेताओं के बीच चर्चा के कई दौर हुए लेकिन कोई समाधान नहीं निकल पाया था. सरकार ने यह भी प्रस्ताव दिया था कि वह इन कानूनों को डेढ़ वर्ष लागू नहीं करेगी लेकिन फिर भी किसान टस से मस नहीं हुए. 

वे प्रधानमंत्री से सीधी चर्चा चाहते थे लेकिन केंद्रीय मंत्री ही चर्चा के लिए भेजे जाते रहे. किसान नेताओं ने नरेंद्रसिंह तोमर, राजनाथसिंह या पीयूष गोयल की एक नहीं सुनी. अमित शाह की अपील भी बेअसर रही. पंजाब, हरियाणा और पश्चिम यूपी में किसान आंदोलन का जबरदस्त असर था. 

दिल्ली से लगी सीमा पर किसान टैट लगाकर डटे हुए थे. पुलिस का लाठी चार्ज और पानी की तेज बौछार भी किसानों का मनोबल नहीं तोड़ पाया. कोरोना संकट के बीच भी उनका आंदोलन जारी रहा. सरकार मान कर चल रही थी कि किसान थक जाएंगे और खुद ही धरना समाप्त कर देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

UP चुनाव देख्:ते हुए फैसला लिया

अब सामने यूपी और पंजाब सहित 6 राज्यों के विधानसभा चुनाव की घड़ी आ गई. सरकार समझ गई कि किसानों की नाराजगी बीजेपी को बहुत महंगी पड़ेगी. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने प्रकाश पर्व का दिन चुनकर तीनों विवादित कृषि कानून वापस लेने का एलान किया. 

उन्होंने कहा कि सरकार ये कानून किसानों के हित में नेक नीयत से लाई थी लेकिन शायद हमारी तपस्या में कुछ कमी रह गई जिसके कारण मैं किसानों को समझा नहीं पाया. इस महीने के अंत में संसद सत्र शुरु होने जा रहा है जिसमें इन कानूनों को वापस ले लिया जाएगा.

आखिर झुकना पड़ा

विपक्ष को विश्वास से लिए बिना केंद्र ने 3 कृषि कानून 17 सितंबर 2020 को अपाधापी में लोकसभा में पारित करवा लिए थे. न तो इन कानूनों को लेकर संसद में बहस हुई न इनका मसौदा चयन समिति के पास भेजा गया. किसान संगठनों कोभी विश्वास में भी लिया गया. 

कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि सरकार ने अपने बड़े पूंजीपति मित्रों को लाभ पहुंचाने के लिए यह कानून बनाए. किसान आंदोलन में फूट डालने की कोशिश भी कामयाब नहीं हो पाई बल्कि वह पश्चिम यूपी तक फैल गया. इसे खालिस्तानियों का आंदोलन कहकर बदनाम करने का भी प्रयास किया गया था.

आंदोलन अभी भी जारी

प्रधानमंत्री मोदी के एलान के बावजूद किसान नेता राजेश टिकैत अड़े हुए हैं. संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि एमएसपी बिल और बिजली शोध एक्ट रद्द होने तक संघर्ष जारी रहेगा. मायावती और राहुल गांधी ने कहा कि यह फैसला देरी से लिया गया किसानों ने अहंकार को झुका दिया. कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़से ने कहा कि 700 से ज्यादा किसानों की मौत के बाद अगर ये सरकार कृषि कानून वापस लेती है तो इससे पता चलता है कि वह किसानों के बारे में कितना सोचती है. 

साल भर से किसान और आम जनता का जो नुकसान हुआ, उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? ममता बनर्जी ने संघर्ष करने वाले हर किसान को बधाई. बीजेपी ने जिस क्रूरता से आपके साथ बर्ताव किया उससे आप विचलित नहीं हुए. तेजस्वी यादव ने इसे अहंकार की हार बताया. कृषि कानूनों पर अभी बवाल थमने वाला नहीं है. विपक्ष संसद में सरकर को घेरने की रणनीति बना रहा है.