आज की खास खबर

Published: Jun 02, 2021 11:30 AM IST

आज की खास खबरहेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने तीसरी लहर का इंतजार न हो

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

कोरोना की भयावहता ने देश को हर रंग दिखा दिए हैं. ऐसे में सियासत आदि को परे रखकर सरकारों को जनसरोकारों और खासकर स्वास्थ्य सुविधाओं पर ध्यान देने की जरूरत है. दिसंबर 2019 के बाद से अब तक हमारा देश दो ऐसे दौर से गुजर चुका, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी. कोरोना महामारी के चपेट में आकर लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. हजारों लोग अभी भी जान बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं. हर किसी ने अपनों को खोया है. हॉस्पिटल में बेड, ऑक्सीजन, इलाज और जीवनरक्षक दवाइयों के लिए बिलखते-गिड़गिड़ाते लोगों को, रोजाना आंकड़ों में सिमटती मौतों को हम सबने देखा है.

ऐसे हालात इसलिए बने, क्योंकि हमने पहली लहर से सबक ही नहीं लिया. देशभर के विशेषज्ञ डॉक्टर्स चीखते रहे कि कोरोना की दूसरी, भयावह लहर आने वाली है. फिर भी हम चुनावी रैलियों, कुम्भ एवं अन्य आयोजनों में मशगूल रहे. देश में अब तक कोरोना के कुल 2.80 करोड़ केस सामने आ चुके हैं. इनमें से 3 लाख 29 हजार लोगों ने महामारी की चपेट में आकर जान गंवा दी. 1 जून की स्थिति में 1.52 लाख नए केस और 3 हजार से अधिक मौतें दर्ज की गईं. आशंका यह भी जताई जाती रही है कि मौतों के आंकड़ों में बड़ा हेरफेर होता है. खासकर अब टेस्ट कम होने के बाद गांवों के मामले दर्ज नहीं किए जा रहे. दूसरी लहर अभी गुजरी भी नहीं है कि विशेषज्ञों ने तीसरी और चौथी लहर की आशंका जता दी है. आगे फिर महामारी का दौर आए या न आए, इससे निपटने के लिए हम कितने तैयार हैं, यह देखने के लिए यही सही वक्त है. कोरोना से उपजे मौजूदा हालात ने 135 करोड़ की आबादी वाले भारत देश के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर का ताना-बाना उधेड़कर रख दिया है.

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सरकारों के लिए व्यवस्था सुधारने का समय

देश के सभी राज्यों में महामारी से बनी स्थिति का आकलन वहां की जनता खुद अगले चुनावों में कर ही लेगी, सरकारों के लिए यह वक्त है खुद की व्यवस्था, तैयारी की समीक्षा करने का! बेशक अब हम ऑक्सीजन और दवाइयों का उत्पादन बढ़ा लेंगे, कुछ नए अस्पताल खोल देंगे लेकिन हेल्थ केयर सिस्टम को जड़ों तक घुस चुके कुप्रबंधन का इलाज कब और कैसे होगा, यह सोचना भी बेहद जरूरी हो गया है. ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी इंडेक्स के मुताबिक हमारे देश की हेल्थ केयर एक्सेस की रैंकिंग 149 रही है और इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुलभता 124वें स्थान पर है. यह बेहद चिंताजनक विषय है.

सरकारों और इनके अधिकारियों में इतना तालमेल होना चाहिए कि अंतिम व्यक्ति तक हर सुविधा पहुंचे. ‘सरकारी’ अस्पतालों की स्थिति समय रहते सुधारना भी जरूरी है. ज्यादातर अस्पताल ठेके, खरीदी, भर्ती और भ्रष्टाचार का जरिया मात्र बनकर रह गए हैं. करोड़ों की मशीनें कबाड़ बनकर रह गई हैं. इन अस्पतालों के हालात सुधर जाएं तो आम आदमी को प्राइवेट अस्पतालों में जाकर लुटने की नौबत ही नहीं आएगी.