आज की खास खबर

Published: Jun 28, 2021 11:12 AM IST

आज की खास खबरसामंतशाही के चोंचले, कब तक राष्ट्रपति की शाही ट्रेन यात्रा

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

लोकतंत्र में कब तक चलेंगे सामंतशाही के चोंचले? आजादी के 7 दशक बाद भी ब्रिटिश वाइसराय के समान राष्ट्रपति विशेष सलूनवाली शाही ट्रेन में सफर करना पसंद करते हैं. लोकतंत्र में भी राजसी ठाठ दिखाना क्या जरूरी है? आखिर यह कैसी मानसिकता है? इससे न केवल सरकारी खजाने पर अनावश्यक बोझ पड़ता है बल्कि जनता को भारी असुविधाओं व तकलीफों से गुजरना पड़ता है. कुछ लोगों को तो इस वजह से जान भी गंवानी पड़ती है.

राष्ट्रपति को कानपुर के पास परौख नामक गांव में जाना था तो उसके लिए विशेष महाराजा सलून वाली ट्रेन से जाने की क्या आवश्यकता थी? वे विमान से कानपुर जाते और वहां से कार या हेलीकॉप्टर से गांव जा सकते थे. इससे सुविधा होती और समय भी बचता लेकिन राष्ट्रपति ने उस विशेष लग्जरी ट्रेन से प्रवास करने का मन बनाया जिसमें वर्षों पहले तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने सफर किया था.  जाहिर है कि तामझाम वाली इस ट्रेन में राष्ट्रपति व उनके परिजनों, सुरक्षा कर्मियों व स्टाफ के अलावा अन्य कोई यात्री प्रवास नहीं कर सकता. राष्ट्रपति की ट्रेन होने से पूरी रेलवे लाइन क्लीयर रखनी पड़ती है और अन्य ट्रैफिक रोक दिया जाता है. इससे जनता को चाहे कितनी भी असुविधा हो, कोई देखनेवाला नहीं है.

जानलेवा ट्रैफिक जाम

राष्ट्रपति की विशेष ट्रेन के लिए रेलवे क्रासिंग पर गोविंदनगर में ट्रैफिक रोका गया. इस दौरान अपनी कार से कोरोना पीड़ित वंदना मिश्रा नामक 50 वर्षीय महिला अस्पताल जा रही थीं. ट्राफिक जाम में उनकी गाड़ी फंस गई लगभग 1 घंटा रोके गए ट्रैफिक को सामान्य होने में आधा घंटा और लग गया. जब तक वंदना अस्पताल पहुंचतीं, बहुत देर हो चुकी थी. अस्पताल में डाक्टर ने उन्हें मृत घोषित किया. यदि वंदना समय रहते अस्पताल पहुंच जाती तो उनकी जान बचाई जा सकती थी. इसी तरह राष्ट्रपति के दौरे की वजह से बंदोबस्त में लगी सीआरपीएफ की गाड़ी के नीचे आने से एक बच्ची की भी मौत हो गई. ट्रैफिक व्यवस्था की खामी की वजह से हुई वंदना की मौत के बाद पुलिस अधिकारियों ने उनके घर पहुंचकर परिवारजनों से माफी मांगी. इस तरह माफी मांगने से किसी की जान तो वापस नहीं आ जाती. राष्ट्रपति के प्रवास प्रोटोकॉल की वजह से 2 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा. उचित होगा कि भविष्य में राष्ट्रपति विशेष ट्रेन की बजाय हवाई सफर करें ताकि ऐसे हादसे न होने पाएं.

सामान्य ट्रेन से पेरिस जाती हैं महारानी एलिजाबेथ

जिन अंग्रेजों ने 200 साल तक भारत पर हुकूमत की, उनके देश ब्रिटेन की महारानी भी एक सामान्य यात्री की भांति ट्रेन से सफर करती हैं. 97 वर्षीय महारानी एलिजाबेथ द्वितीय को पेरिस जाना था तो वे स्टेशन पर अपनी कार से उतरीं और पैदल ही जाकर यूरोस्टार नामक ट्रेन में बैठीं. यह एक रेगुलर ट्रेन थी जिसमें अन्य यात्री भी सवार थे. इसी ट्रेन से महारानी पेरिस पहुंची. न उसके साथ कोई स्टाफ व नौकर चाकरों का फौजफाटा, न ट्रेन की खास सजावट! उनकी यात्रा से सामान्य जनजीवन जरा भी अस्त व्यस्त नहीं हुआ. न कहीं क्रासिंग बंद की गई न ट्राफिक जाम हुआ. यहां तो कुछ घंटों के सफर के लिए राष्ट्रपति के महल जैसी सजावट वाले विशेष सलून में आरामदेह बेड, ड्राइंग रूम, किचन और खानसामे की व्यवस्था थी.

कहां गए महात्मा गांधी के आदर्श

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आजीवन ट्रेन के तीसरे दर्जे में सफर करते रहे लेकिन क्या उनका आदर्श आज के सत्ताधीश भुला बैठे? लोग तो यही मानेंगे कि स्वयं को अति विशिष्ट दिखाने की चाह तथा पद पर रहते हुए राजसुख भोगने की इच्छा के वशीभूत होकर महामहिम ने विशेष महाराजा सलून वाली ट्रेन से सफर करना पसंद किया. यह लोकतंत्र के आदर्शों से कदापि सुसंगत नहीं है.