आज की खास खबर

Published: Jun 23, 2021 11:15 AM IST

आज की खास खबरतीसरे मोर्चे की आहट, अब जागी कांग्रेस हाईकमांड भी

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

कांग्रेस हाईकमांड को इस बात का आभास हो गया कि यदि तीसरा मोर्चा बन गया तो वह सीधे बीजेपी से टक्कर लेगा और उस हालत में कांग्रेस की साख और भी गिर जाएगी. तब राजनीतिक टकराव एनडीए और यूपीए के बीच सीमित नहीं रहेगा, बल्कि तीसरा मोर्चा राजनीति के त्रिभुज का तीसरा कोण बनकर उभरेगा. जिस तरह से एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार गैर कांग्रेस पार्टियों का तीसरा मोर्चा बनाने के लिए पहल कर रहे हैं, वह न केवल बीजेपी बल्कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के लिए भी खतरे की घंटी है. यदि विकल्प के रूप में तीसरा मोर्चा आकार लेता है तो वह अंतर्विरोधों से घिरी कांग्रेस को पीछे छोड़ सकता है. सवाल विश्वसनीयता का है और यदि गैर कांग्रेसी पार्टियों का मजबूत गठबंधन बन जाता है तो वह राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे लोगों को विकल्प दे सकता है जिन्हें बीजेपी की रीति-नीतियां नापसंद हैं और जो कांग्रेस में भी विश्वास खो चुके हैं.

प्रशांत किशोर ने हवा निकाल दी

एक ओर तो ममता बनर्जी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की शरद पवार से मुलाकात को तीसरे मोर्चे की एकजुटता के तौर पर देखा जा रहा था लेकिन प्रशांत ने राष्ट्र मंच की बैठक से पहले यह कहकर हवा निकाल दी कि उन्हें नहीं लगता कि तीसरा या चौथा मोर्चा बीजेपी को टक्कर दे सकता है. इस तरह उन्होंने पहले ही हताशा जताते हुए कह दिया कि तीसरे मोर्चे में बीजेपी को पछाड़ने का दम नहीं है. पीके ने तीसरे मोर्चे पर पूर्णविराम लगाते हुए कहा कि मौजूदा राजनीतिक स्थितियों में तीसरे मोर्चे की कोई भूमिका नहीं है.

पंजाब-राजस्थान संकट

कांग्रेस की पंजाब और राजस्थान में सरकार रहने के बावजूद इन दोनों राज्यों में नेतृत्व के सामने चुनौतियां बनी हुई हैं. गुटबाजी चरम पर है. जहां ऐसी राजनीतिक अस्थिरता रहेगी, वहां शासन-प्रशासन का निष्क्रिय हो जाना स्वाभाविक है. स्वार्थ में डूबे नेताओं को जनकल्याण से कोई सरोकार भी तो नहीं रह जाता. उनका सारा ध्यान इसी में लगा रहता है कि कैसे अपना उल्लू सीधा करें. पंजाब में अगले वर्ष मार्च में होने वाले विधानसभा चुनाव को कुछ माह का समय रह गया है लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पूर्व मंत्री नवजोतसिंह सिद्धू के बीच जबरदस्त टकराव बना हुआ है. उनके बीच सुलह कराने के प्रयास नाकाम साबित हुए हैं. सिद्धू के बड़बोलेपन पर कहीं कोई अंकुश नहीं है. उनका कहना है कि वे चुनाव जीतने के लिए शोपीस नहीं हैं. वे सोनिया और राहुल की तारीफ करते हैं लेकिन कैप्टन की तीखी आलोचना करते हैं. गुरुग्रंथसाहिब की बेअदबी का मुद्दा हो या राज्य में नशीले पदार्थों की समस्या, वे इसके लिए अमरिंदर सिंह की ढील को जवाबदार बताते हैं. राजस्थान में भी सचिन पायलट को संभालना कांग्रेस के लिए जरूरी हो गया है. ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद के पार्टी छोड़ बीजेपी में चले जाने के बाद पायलट जैसे जमीनी आधार वाले नेता को रोके रखना कांग्रेस के लिए आवश्यक है. राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सामंजस्य स्थापित कर पाना कांग्रेस हाईकमांड के लिए टेढ़ी खीर है. प्रियंका गांधी के समझाने और पायलट को अ.भा. कांग्रेस महासचिव पद का ऑफर देने के बाद भी बात नहीं बन पाई.

एआईसीसी की बैठक

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गुरुवार को एआईसीसी की बैठक बुलाई है जिसमें वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए राजनीतिक स्थिति पर चर्चा होगी. इससे ज्वलंत मुद्दों के प्रति कांग्रेस की गंभीरता का एहसास होता है. विधानसभा चुनावों से पहले राज्य इकाइयों में गुटबाजी को खत्म करने के लिए किसी स्वीकार्य फार्मूले को खोजने पर विचार किया जा सकता है. पायलट को संतुष्ट करने के लिए उनके कुछ समर्थकों को मंत्री बनाया जा सकता है. गहलोत और पायलट के बीच बढ़ते विवाद से कांग्रेस में गुटबाजी तेज हो गई है. जिस तरह एक म्यान में 2 तलवार नहीं रह सकती, वैसे ही गहलोत और पायलट का साथ में निभाव नहीं हो सकता. दोनों राजस्थान छोड़ना नहीं चाहते अन्यथा गहलोत का अनुभव देखते हुए उन्हें पार्टी संगठन में बड़ी जिम्मेदारी देकर दिल्ली बुलाया जा सकता है. समस्या केवल पंजाब और राजस्थान की ही नहीं है, छत्तीसगढ़ में कैबिनेट मंत्री टीएस सिंहदेव ढाई-ढाई वर्ष के फार्मूले के तहत अब मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहते हैं जबकि सीएम भूपेश बघेल इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं.