नवभारत विशेष

Published: Sep 29, 2021 11:45 AM IST

आज की खास खबर ‘भारत बंद’ सिर्फ उत्तर के कुछ प्रदेशों में ही देश के शेष हिस्सों में सिर्फ दिखावा

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

केंद्र सरकार के 3 कृषि कानूनों को वापस लेने तथा अन्य मांगों को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा का ‘भारत बंद’ सिर्फ उत्तर भारत के कुछ प्रदेशों तक ही सीमित रहा. किसान संगठनों के भारत बंद का सबसे ज्यादा असर दिल्ली, गुरुग्राम, पंजाब व हरियाणा में नजर आया जहां किसानों ने हाईवे और टोल प्लाजा को जाम कर दिया था. इससे लोगों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ा. सड़कों पर गाड़ियों की कई किलोमीटर लंबी कतारें लग गईं. पटियाला में किसान रेल पटरी पर बैठ गए, इस कारण ट्रेनों की आवाजाही प्रभावित हुई. दिल्ली-पंजाब रूट पर भी ट्रेनों को डायवर्ट किया गया और कुछ गाड़ियों को कैंसिल करना पड़ा. दिल्ली-पंजाब के बीच चलनेवाली 25 ट्रेनों पर किसान आंदोलन का असर पड़ा है. तथ्य यह है कि उत्तर भारत को छोड़ दिया जाए तो देश में बाकी हिस्सों में ‘भारत बंद’ सिर्फ दिखावा बनकर रह गया.

किसान आंदोलन में राजनीति

केंद्र की मोदी सरकार को किसान आंदोलन के बहाने विपक्षी दलों ने टक्कर देने की कोशिश की. पंजाब के कांग्रेसी मुख्यमंत्री चरनजीतसिंह चन्नी ने बंद को अपना समर्थन दिया. कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी, बसपा, टीएमसी, सीपीएम, जदसे, डीएमके और आरजेडी ने बंद को समर्थन जताया. चूंकि आंदोलन मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तरप्रदेश के किसानों का है, इसलिए बाकी राज्यों में इसका असर नहीं के बराबर रहा. तमिलनाडु इस मामले में अपवाद रहा. वहां प्रदर्शनकारियों ने चेन्नई में तोड़फोड़ की.

बहुत लंबा खिंच गया आंदोलन

10 माह से जारी किसान आंदोलन के आलोचक उसे बड़े व समृद्ध किसानों का आंदोलन बताते हैं, जिसके पीछे आड़तियों व बिचौलियों का हाथ है. उनकी धरने पर बैठे लोगों को मदद है. विपक्ष भी इसमें अपना स्वार्थ खोज रहा है. इस आंदोलन में गरीब किसान शामिल नहीं हैं. वे अपना पेट पालने के लिए खेतों में मेहनत करेंगे या धरना देंगे? यदि आंदोलन के पीछे आर्थिक ताकत नहीं होती तो वह इतना लंबा नहीं चलता. महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात तथा विभिन्न दक्षिणी राज्यों में इस आंदोलन का असर नहीं है.

यूपी सरकार के लिए चुनौती

पश्चिम यूपी का जाट किसान समुदाय किसान आंदोलन में शामिल है. हरियाणा व पंजाब के किसानों ने पश्चिम यूपी के राकेश टिकैत को आंदोलन की कमान दे रखी है. भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत अब कृषि कानूनों के विरोध के अलावा अन्य 2 मोर्चों पर सरकार से भिड़ने की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने टि्वटर पर लिखा कि किसान यूनियन काले कृषि कानूनों के साथ ही गन्ने और बिजली के मुद्दे पर भी मोर्चाबंदी करेगी. उत्तर प्रदेश में गन्ने का रेट 425 रुपए से कम मंजूर नहीं होगा. राज्य सरकार ने अपने घोषणापत्र में साढ़े चार वर्ष पहले 370 रुपए का वादा किया था, अब उसके हिसाब से महंगाई जोड़ी जानी चाहिए. विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन खास तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के लिए सिरदर्द बन सकता है.

हर जगह ताकतवर नहीं है किसान

पंजाब और हरियाणा की तुलना में अन्य राज्यों के किसान उतने ताकतवर नहीं हैं. महाराष्ट्र में किसानों ने बड़ी तादाद में आत्महत्या की थी. उन्हें समय पर सुधरे हुए बीज, खाद और कृषि कार्य के लिए रकम चाहिए. फसल की समय पर खरीद और उचित दाम की वे उम्मीद रखते हैं. जिन किसानों के खेतों में सिंचाई की व्यवस्था नहीं है, उनकी खेती भगवान भरोसे रहती है. पंजाब-हरियाणा के किसानों से उनकी कोई तुलना नहीं हो सकती. समृद्ध किसान अपनी खेती बाहरी राज्यों से मजदूर बुलवा कर करवा लेते हैं. पश्चिम महाराष्ट्र का सिंचित कृषि वाला किसान छोटे खेत में भी हर साल 2 फसलें ले लेता है तथा बागवानी भी कर लेता है, जबकि विदर्भ का किसान बड़ा खेत होने पर भी सिंचाई के अभाव में अभावग्रस्त बना रहता है.