नवभारत विशेष

Published: Dec 04, 2020 11:41 AM IST

नवभारत विशेषयोगी आदित्यनाथ की पहल, नोएडा फिल्म सिटी से इतनी बेचैनी क्यों?

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

दादासाहब फालके की विरासत वाला मुंबई का 100 वर्ष पुराना फिल्मोद्योग स्वयं को इतना असुरक्षित क्यों महसूस कर रहा है? महाराष्ट्र के नेता यूपी (Uttar Pradesh) के सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के इस एलान से क्यों बेचैन हैं कि वे नोएडा में यमुना किनारे 1,000 एकड़ में नई वर्ल्ड क्लास फिल्म सिटी बनाएंगे (Mumbai’s Film City), ? फिल्में कोलकता, चेन्नई, हैदराबाद में भी बनती हैं लेकिन इससे कभी भी बॉलीवुड को चिंता नहीं हुई। यदि यूपी अपनी फिल्म सिटी स्थापित करना चाहता है तो इसे लेकर महाराष्ट्र के नेता इतना क्यों आशंकित हैं? एक ओर जहां महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे (Uddhav thackeray) ने चुनौती देते हुए कहा कि अगर योगी आदित्यनाथ में हिम्मत है तो ऐसा करके दिखाएं, वहीं मनसे भी इस विवाद में कूद पड़ी। मनसे के घाटकोपर अध्यक्ष गणेश चुक्कल ने योगी का नाम लिए बिना उन्हें ‘यूपी का ठग’ कहा और पोस्टर में लिखा कि कहां महाराष्ट्र की शान और कहां यूपी की गरीबी!

अपने मुंबई दौरे में योगी ने स्पष्ट किया कि बॉलीवुड छीनने के लिए मुंबई नहीं आए। यूपी सरकार की नीयत साफ है। कोई किसी चीज को लेकर नहीं जा सकता। यह खुली प्रतिस्पर्धा है। जो ज्यादा सुरक्षा और सुविधाएं देगा, वहां लोग जाएंगे। मैं बॉलीवुड को उत्तरप्रदेश ले जाने की बजाय वहां विश्वस्तरीय फिल्म सिटी बनाना चाहता हूं। योगी ने मुंबई में नामी उद्योगपतियों के अलावा अभिनेता अक्षय कुमार से भी भेंट की। योगी चाहते हैं कि यूपी में भी फिल्म निर्माण का एक शानदार केंद्र बन जाए। कितने ही अभिनेता-अभिनेत्रियां पंजाब व दिल्ली के अलावा उत्तरप्रदेश के नगरों से बॉलीवुड में काम करने आए। कितने ही निर्देशक, संगीतकार व गीत लेखक भी उत्तर भारत के हैं। योगी उनसे सहयोग की उम्मीद कर रहे होंगे। आखिर कौन अपनी जमीन से जुड़ना नहीं चाहता?

आरोपों के घेरे में बॉलीवुड

बॉलीवुड के संबंध में काफी समय तक आरोप लगता रहा कि वहां अंडरवर्ल्ड और माफिया का दबाव चलता है जो अपनी मर्जी से फिल्मों की स्टारकास्ट तय करते हैं और फिल्म निर्माण में पैसा लगाने से लेकर उसके प्रदर्शन के ओवरसीज राइट्स अपने पास रखते हैं। फिल्म की रिलीज या प्रदर्शन कब हो, यह भी इन ताकतों द्वारा तय किया जाता है। अंडरवर्ल्ड को चुनौती देने शिवसेना आगे आई तो बॉलीवुड शिवसेना के सामने भी नतमस्तक हो गया। कितने ही फिल्मी सितारे शिवसेना संस्थापक स्व। बाल ठाकरे का आशीर्वाद लेने जाया करते थे।

हिंदी प्रदेशों का बैकग्राउंड

ऐसी कितनी ही फिल्में बॉलीवुड में बनी हैं जिनमें हिंदी भाषी प्रदेशों का बैकग्राउंड है। इन फिल्मों का कथानक व भाषा उसी क्षेत्र से संलग्न है। जब कलाकार विदेश जाकर शूटिंग करते हैं तो नोएडा की फिल्म सिटी में शूटिंग से उन्हें क्यों परहेज होगा? भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग जब बिहार में होती है तो हिंदी फिल्मों का निर्माण यूपी में क्यों नहीं हो सकता? जब 1,000 एकड़ में नोएडा फिल्म सिटी बनेगी तो हो सकता है कि उसमें बॉलीवुड से भी बेहतर सुविधाएं रखी जाएं। इतने पर भी एक बात ध्यान देने लायक है कि हैदराबाद में फिल्म निर्माता रामोजी राव ने फिल्म सिटी बनाई जहां एक से एक बढ़िया सेट हैं फिर भी वहां फिल्मों की शूटिंग नहीं के बराबर होती है। ज्यादातर पर्यटक ही उसे देखने आते हैं। वजह यह है कि जब निर्माता-निर्देशक अपने कलाकारों को शूटिंग के लिए लंदन, पेरिस, स्विटजरलैंड या अमेरिका के वास्तविक लोकेशन पर ले जा सकते हैं तो फिल्म सिटी में वहां के डुप्लीकेट सेट के सामने शूटिंग क्यों करेंगे? इसीलिए हैदराबाद की रामोजी फिल्म सिटी म्यूजियम बनकर रह गई। योगी आदित्यनाथ को भी प्रोफेशनल तरीके से अपने नोएडा फिल्म सिटी की व्यवसायिक संभावनाओं पर विचार कर लेना चाहिए।

बदलाव तो पहले भी हुआ था

पहले भी फिल्मोद्योग के केंद्रों में बदलाव होता रहा है। देश के विभाजन के बाद लाहौर फिल्मोद्योग मुंबई आ गया था। पुणे और कोल्हापुर के फिल्म निर्माताओं ने बाद में मुंबई की राह पकड़ ली थी। दक्षिण भारत में बनने वाली हिंदी फिल्म प्राय: जैमिनी या एवीएम बैनर के तले बनती थीं। एलवी प्रसाद प्रोडक्शन भी हिंदी फिल्में बनाया करता था लेकिन बाद में यह क्रम टूट गया। दक्षिण भारतीय अभिनेत्रियों वैजयंतीमाला, पद्मिनी, रेखा, हेमा मालिनी, श्रीदेवी ने भी बॉलीवुड की राह पकड़ ली। देखना होगा कि योगी का फिल्म सिटी उपक्रम आगे चलकर कितने निर्माता-निर्देशकों व कलाकारों को अपनी ओर खींच पाएगा।