Agriculture Law: Maharashtra government made its stand clear on agricultural laws, Balasaheb Thorat said - will amend agricultural laws to protect the interests of farmers
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केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर (Narendra Singh Tomar), रेल मंत्री पीयूष गोयल (Piyush Goyal) तथा वाणिज्य व उद्योग राज्यमंत्री सोम प्रकाश की किसान नेताओं से बातचीत निष्फल रही. किसान नेताओं ने कृषि कानूनों पर चर्चा के लिए समिति बनाने की केंद्र सरकार की पेशकश सिरे से ठुकराते हुए कहा कि 3 कृषि कानूनों को रद्द करने और एमएसपी कानून बनाने से कम पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा. किसानों (Farmer protest) को मना पाने में नाकाम तोमर और गोयल ने बाद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से बात कर स्थिति की गंभीरता से अवगत कराया. आपाधापी में बनाकर जबरन लागू किए जाने वाले कृषि कानूनों को लेकर हर तरफ असंतोष गहरा गया है. कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने चेतावनी दी है कि यदि किसानों की समस्या का हल नहीं निकला तो वे अपने मेडल 5 दिसंबर को लौटा देंगे.

इस आंदोलन को खालिस्तान समर्थकों और कांग्रेसियों का आंदोलन बताने का सरकार का दांव काम नहीं आ रहा है. पंजाब व हरियाणा के नामी खिलाड़ी, गायक व पंजाब फिल्मोद्योग भी इसके पीछे खड़ा हो गया है. महाराष्ट्र के किसान संगठनों ने भी दिल्ली कूच की घोषणा कर दी है. बीजेपी नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा कि किसानों का गुस्सा जायज है क्योंकि उनकी लंबे समय से उपेक्षा होती रही है. हरियाणा में सत्तारूढ़ बीजेपी की सहयोगी पार्टी जेजेपी ने फसलों के लिए एमएसपी की मांग का समर्थन किया और कहा कि कानून में एमएसपी की गारंटी वाली एक लाइन लिखने में समस्या क्या है? ऐसा कानून अनिवार्य किया जाए कि देश में कहीं भी किसानों की फसल एमएसपी से कम कीमत पर नहीं खरीदी जाएगी.

यदि यह दुष्प्रचार है तो सरकार भरोसा दिलाए

सरकार का दावा है कि विपक्ष के दुष्प्रचार से किसान बहकावे में आ गए हैं, यदि ऐसा है तो सरकार स्पष्ट शब्दों में गलतफहमी दूर क्यों नहीं करती? किसानों को सबसे बड़ा संदेह है कि एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की सुविधा खत्म हो जाएगी और वे बड़ी-बड़ी कंपनियों के हाथ की कठपुतली बनकर रह जाएंगे. ये बड़ी कंपनियां पहले अच्छे दाम देंगी, फिर अपना एकाधिकार जमाकर किसानों से धोखेबाजी पर उतर आएंगी. जब सरकारी मंडी खत्म हो जाएगी तो कंपनियां माल को मनमाने दाम पर खरीदने या क्वालिटी खराब बताकर रिजेक्ट करने जैसे हथकंडे अपना सकती हैं. किसानों का कहना है कि उन्होंने कभी ऐसे कानूनों की मांग ही नहीं की थी. यदि किसानों को अमेरिका-यूरोप की तरह खुला बाजार देने की बात है तो किसानों को हर वर्ष सरकार की ओर से मोटी आर्थिक सहायता भी दी जाए जैसी उन देशों में दी जाती है. सरकार एमएसपी को कानूनी रूप देने की घोषणा करने से कतरा रही है इसीलिए उसके इरादों को लेकर किसानों के मन में शंका है.

सरकार के पास बहुत अनाज जमा है

सरकार के पास गोदामों में पहले ही बहुत अनाज जमा है, जो बफर स्टाक से ढाई गुना है. इसलिए वह चाहती है कि अब कारपोरेट किसानों से अनाज खरीदें ताकि उसका बोझ कम हो. सरकार के तीनों कानून अमेरिका व यूरोप की तर्ज पर हैं. वहां भी खेती गहरे संकट में फंसी हुई है तो फिर उस विफल मॉडल को भारत में क्यों लादा जा रहा है? आज भी अमेरिका में किसानों पर 425 अरब डालर का कर्ज है. यूरोप में भी भारी सब्सिडी मिलने के बावजूद किसान खेती छोड़ रहे हैं.

कई दशकों से अनदेखी

जब से केंद्र सरकार ने कृषि से संबंधित 3 कानून बनाए हैं, तब से किसानों की नाराजगी बढ़ी है और उनके गुस्से का प्रसार हुआ है. लेकिन यह गुस्सा कई दशकों से किसानों की अनदेखी के चरम के रूप में फूटा है. हरित क्रांति के समय से ही पंजाब और हरियाणा में एपीएमसी मंडी का जाल बिछाया गया था, क्योंकि देश को खाद्यान्न की जरूरत थी. इसके अलावा इन वर्षों में एपीएमसी मंडियों से लेकर किसानों के खेतों तक ग्रामीण सड़कों का जाल बिछाया गया. तब यह जानते हुए कि ज्यादा उत्पादन होने पर किसानों की उपज की कीमतें गिरेंगी, सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था बनाई. यानी जब किसान अपनी फसल लेकर मंडी में जाएगा और कोई व्यापारी उसे समर्थन मूल्य से ज्यादा कीमत देने को तैयार नहीं होगा तो सरकार भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से आगे आकर एमएसपी पर किसानों से खाद्यान्न खरीदेगी.