संपादकीय

Published: Feb 12, 2024 09:13 AM IST

संपादकीयउत्तराखंड सरकार की पहल, लिव-इन संबंधों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने लिव-इन संबंधों (live-in relationships) का अनिवार्य रूप से रजिस्ट्रेशन कराने के उत्तराखंड सरकार (Uttarakhand Government) के प्रावधान को संविधान के अनुच्छेद 21 तथा सुप्रीम कोर्ट के निजता, स्वायत्तता के संदर्भ में दिए गए आदेशों का उल्लंघन बताया है।  उन्होंने कहा कि गत सप्ताह उत्तराखंड विधानसभा में पारित विधेयक लोकसभा चुनाव के पूर्व उठाया गया राजनीतिक कदम है।  यूसीसी या समान नागरिक कानून किसी एक राज्य में कैसे लागू हो सकता है। 

बनाना ही है तो इसे सभी की सहमति लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाना चाहिए।  रजिस्ट्रेशन के नाम पर लिव-इन पर निगरानी रखी जाएगी।  सुप्रीम कोर्ट राइट टु प्राइवेसी से संबंधित फैसले में कह चुका है कि सरकार को नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।  यह अजीब विरोधाभास है कि 18 वर्ष की होने पर एक महिला अपने पैरेंट्स के हस्तक्षेप के बिना विवाह तो कर सकती है, लेकिन लिव-इन संबंध में प्रवेश करने के लिए उसका 21 वर्ष का होना आवश्यक है। 

लिव-इन संबंध में केवल महिला ही गुजाराभत्ता का दावा कर सकती है और वह भी केवल परित्याग के आधार पर।  विवाह के गैर-पंजीकरण के विरुद्ध कोई दंडात्मक प्रावधान नहीं है, लेकिन लिव-इन संबंध को अगर स्थानीय पुलिस व रजिस्ट्रार के समक्ष पंजीकृत नहीं कराया गया तो कैद व जुर्माना दोनों का प्रावधान है। 

अगर कोई पार्टी 21 वर्ष से कम है तो रजिस्ट्रेशन पैरेंट्स को भी सौंपनी होगी।  यह पैरेंट्स की मांग थी, इससे महिलाओं के विरुद्ध अपराध को रोका जा सकेगा और पश्चिमी देशों में भी ऐसे कानूनी प्रावधान हैं ।  यह अजीब तर्क हैं।  सबसे पहली बात तो यह कि पंजीकरण से अपराध नहीं रुकते हैं, जैसा कि विवाह की कानूनी सुरक्षा के भीतर भी दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, यौन शोषण व क्रूरता होती है। 

पश्चिमी देशों में प्रावधान है कि अगर दीर्घकालीन लिव-इन संबंध खत्म किया जाता है तो गुजाराभत्ता व चाइल्ड सपोर्ट जैसे सुरक्षा कवच उपलब्ध रहते हैं।  संबंध खत्म होने पर कमजोर पार्टी के अधिकारों को सुरक्षित रखा जाना आवश्यक है, लेकिन रजिस्ट्रार को यह अधिकार देना कि वह लिव-इन संबंध को रजिस्टर करने से इंकार भी कर सकता है, तो इसका अर्थ सिर्फ यही निकलता है कि कानूनन बालिग होने पर भी युवा अपने फैसले स्वयं करने में सक्षम नहीं हैं। 

रजिस्ट्रार अनेक आधारों पर लिव-इन संबंध को पंजीकृत करने से मना कर सकता है, मसलन, सहमति बहला-फुसलाकर, अनुचित प्रभाव, गलत तरीके आदि के जरिये ली गई है