क्रिकेट
Published: Jun 12, 2022 02:52 PM ISTMithali Rajमिताली राज: पुरुषों के दबदबे वाले खेल में महिला क्रिकेट को सशक्त पहचान दिलाने वाली खिलाड़ी
नई दिल्ली: मिताली राज से एक बार किसी पत्रकार ने पूछा कि आपका पसंदीदा पुरूष क्रिकेटर कौन है जिस पर उनका जवाब था, ‘‘क्या आपने किसी पुरूष क्रिकेटर से कभी पूछा है कि उनकी पसंदीदा महिला क्रिकेटर कौन है।” मिताली का यह जवाब ही उनकी पूरी शख्सियत को बयां करता है। इस सप्ताह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने वाली मिताली दुनिया में सबसे ज्यादा रन बनाने वाली बल्लेबाज ही नहीं हैं बल्कि महिला क्रिकेट को पुरूषों के दबदबे वाले खेल में नयी पहचान दिलाने वाली पुरोधाओं में से एक हैं। दो दशक से अधिक लंबे कॅरियर में वह महिला क्रिकेट की सशक्त आवाज बनकर उभरीं और कई पीढियों के लिये प्रेरणास्रोत बन गईं।
तेईस साल लंबा कॅरियर, 333 अंतरराष्ट्रीय मैच और 10,868 रन उनके स्वर्णिम सफर की बानगी खुद ब खुद देते हैं। पुरूष क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर ने 24 साल तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला तो महिला क्रिकेट में मिताली ने भी लगभग इतना समय गुजारा। दोनों के आंकड़ों से अधिक खेल पर उनका प्रभाव उन्हें खास बनाता है। तेंदुलकर की ही तरह मिताली ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बनाई और भारतीय क्रिकेट को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
पिता दुरई राज वायुसेना में कार्यरत थे तो अनुशासन बेटी को विरासत में ही मिला था। सिकंदराबाद की जोंस क्रिकेट अकादमी में अपने भाई और पिता के साथ जाकर मिताली बाउंड्री के पास अपना होमवर्क करती रहतीं और कभी मन करता तो बल्ला उठाकर खेल भी लेती थीं। अकादमी के कोच की पारखी नजर उन पर पड़ी और बस भरतनाट्यम सीखने वाली नन्हीं मिताली ने क्रिकेट के पैड पहनकर हाथ में बल्ला थाम लिया। तमिल परिवार में जन्मी मिताली ने तीसरी कक्षा में ही भरतनाट्यम सीखना शुरू कर दिया था।
अक्सर उनकी परिपक्व तकनीक, क्लासिक (शास्त्रीय) शॉट्स और कमाल के फुटवर्क की चर्चा होती है। कहीं न कहीं बचपन में शास्त्रीय नृत्य के प्रति लगाव और अभ्यास ने इसमें अहम भूमिका निभाई। ‘फ्री हिट : द स्टोरी आफ वुमैन क्रिकेट इन इंडिया’ में लेखिका सुप्रिता दास ने बताया है कि कैसे कोचिंग शिविर में अकेली लड़की होने का फायदा मिताली को पहले बल्लेबाजी के मौके के रूप में मिलता। सुबह पांच बजे मैदान पर अभ्यास के लिये पहुंचने वाली मिताली आठ बजे तक क्रिकेट खेलती और साढे आठ बजे स्कूल जाती थी। स्कूल के बाद फिर अभ्यास और घंटों अभ्यास।
इसके बावजूद स्कूल में कभी उनके ग्रेड नहीं गिरे और ना ही कभी कोई कार्य अधूरा रहा। उस उम्र में जब साथी लड़के-लड़कियां पढ़ाई, पार्टी, घूमने-फिरने में मसरूफ रहते, मिताली मैदान पर पसीना बहा रही होती थी। उनके बचपन और लड़कपन की यादों में कोई सिनेमाई बातें, मेकअप, रूमानी नॉवेल वगैरह नहीं थे, बस मैदान, धूल, बल्ला, पसीना और 22 गज की पिच। यह उस कठिन अभ्यास की ही देन है कि बल्लेबाजी का शायद ही कोई रिकॉर्ड होगा जिसे उन्होंने नहीं छुआ। एकदिवसीय क्रिकेट में 50 से अधिक रन के औसत से रिकॉर्ड 7,805 रन से लेकर लगातार सात अर्धशतक तक, महिला क्रिकेट में ऐसे कई कीर्तिमान मिताली के नाम दर्ज हैं।
यह इसलिये भी खास हो जाता है कि उन्होंने महिला क्रिकेट में तब पदार्पण किया था जब पुरूष क्रिकेट के दीवाने इस देश में किसी लड़की के क्रिकेट खेलने को हास्यास्पद माना जाता था। रेलवे के दूसरे दर्जे से लेकर हवाई जहाज के बिजनेस क्लास तक के अनुभव को मिताली ने जिया है और यह उनका जीवट था कि उन्होंने हालात के बदलने का इंतजार किया और डटी रहीं। फिर बीसीसीआई ने 2006 में महिला क्रिकेट को अपनी छत्रछाया में लिया लेकिन केंद्रीय अनुबंध 2016 में मिले। मिताली की कप्तानी में भारतीय टीम 2017 के विश्वकप फाइनल में पहुंची लेकिन लॉडर्स पर इंग्लैंड से नौ रन से हार गई और विश्वकप जीतने की मिताली की ख्वाहिश अधूरी ही रह गई।