महाराष्ट्र

Published: Mar 12, 2022 11:56 AM IST

Maharashtraमहाराष्ट्र: औरंगाबाद के कुछ गांवों में लिंग अनुपात सुधरा, अब प्रति 1,000 लड़कों पर हैं 1,113 लड़कियां

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम

पुणे: लिंग अनुपात की खराब स्थिति से लेकर लड़कियों के जन्म का जश्न मनाने तक, महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के भालगांव सहित कुछ अन्य गांवों ने बदलाव के अगुआ के रूप में उभरने के लिए एक लंबा सफर तय किया है। वॉटरशेड ऑर्गनाइजेशन ट्रस्ट (डब्ल्यूओटीआर) नाम के एक स्वयंसेवी संगठन द्वारा शुरू की गई पहल के तहत गंगापुर तहसील के 20 गांव साल 2015 से 2017 के बीच अपने लिंग अनुपात में 29 फीसदी तक का सुधार करने में सफल रहे हैं। 

डब्ल्यूओटीआर के प्रयासों को सरकारी प्राधिकरणों ने भी सराहा है। उन्होंने इसके नतीजों को उत्साहजनक करार दिया है। डब्ल्यूओटीआर के मुताबिक, 2015 में जब उसने इस परियोजना की शुरुआत की थी, तब इन गांवों में औसत बाल लिंग अनुपात प्रति 1,000 लड़कों पर 863 लड़कियों का था। संस्था ने दावा किया कि 2017 में इन गावों में बाल लिंग अनुपात बढ़कर प्रति 1,000 लड़कों पर 1,113 लड़कियों तक पहुंच गया। डब्ल्यूओटीआर में महिला सशक्तीकरण मामलों की प्रमुख प्रीतिलता गायकवाड़ ने कहा कि शुरुआती दौर में लड़कियों के जन्म के प्रति लोगों का नजरिया बदलना एक बड़ी चुनौती थी। गायकवाड़ महाराष्ट्र के पांच जिलों में इस परियोजना का नेतृत्व कर रही हैं।

उन्होंने कहा, “परियोजना के लिए भालगांव सहित क्षेत्र के अन्य गांवों का चयन इसलिए किया गया, क्योंकि वहां लिंग निर्धारण जांच और कन्या भ्रूण हत्या के मामले काफी अधिक थे। जब हमने 2015 में अपना काम शुरू किया, तब लोग इस विषय पर हमारी बात सुनने में आनाकानी करते थे।” हालांकि, शुरुआत में इस परियोजना का नाम ‘सेव द गर्ल चाइल्ड’ रखा गया था, लेकिन स्थानीय स्तर पर इसे बदलकर ‘चांस फॉर गर्ल्स’ कर दिया गया। साथ ही संस्था ने नवविवाहित जोड़ों और उनके परिजनों तक पहुंच बनानी शुरू कर दी, ताकि समाज में लड़कियों की अहमियत को रेखांकित किया जा सके। 

गायकवाड़ ने कहा, “हमने लोगों को समुदाय में हर लड़की के जन्म को उत्सव के रूप में मनाने के लिए प्रोत्साहित किया। नवजात के साथ परिवार की तस्वीरें खींची गईं, उन्हें मढ़वाया गया और फिर एक सार्वजनिक कार्यक्रम में परिजनों को सम्मानित करने के दौरान उन्हें ये तस्वीरें भेंट की गईं। यह अनूठा उत्सव क्षेत्र के कई परिवारों के लिए खुशी का जरिया बन गया।” परियोजना से जुड़ी रानी शेख ने बताया कि इन गांवों में उन जोड़ों को भी सम्मानित किया गया, जिन्होंने एक या दो बेटियों के जन्म के बाद नसबंदी करवा ली।     

परियोजना के लिए चुने गए हदियाबाद गांव के निवासी सोपन जाधव ने कहा, “पहले हमारे गांव में लड़कियों का अनुपात बहुत कम था, क्योंकि लोग लिंग निर्धारण जांच और कन्या भ्रूण का गर्भपात करवाते थे। लेकिन इस परियोजना के बाद गांव में एक सकारात्मक बदलाव आया है और बाल लिंग अनुपात में सुधार हुआ है।” (एजेंसी)