ठाणे

Published: Jun 29, 2022 09:30 PM IST

Maharashtra Political Crisisदिवा में शिवसेना के 800 पदाधिकारियों ने शिंदे के समर्थन में दिया इस्तीफा!

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
कंटेन्ट एडिटरनवभारत.कॉम

ठाणे : शिवसेना (Shiv Sena) के बागी मंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) का समर्थन करने वाले शिवसेना के पदाधिकारियों (Office Bearers) को जहां एक तरफ शिवसेना से निष्कासित किया जा रहा है, वहीं ठाणे के दिवा शहर से शिवसेना के 8 पूर्व नगरसेवकों ने एकनाथ शिंदे का समर्थन किया है। वहीं यहां के स्थानीय सांसद और शिंदे के पुत्र डॉ. श्रीकांत शिंदे (Dr. Shrikant Shinde) ने पूर्व महापौर नरेश म्हस्के (Naresh Mhaske) के नेतृत्व में दिवा में शक्ति प्रदर्शन किया। इस दौरान दिवा से शिवसेना के 800 पदाधिकारियों ने पार्टी से सामूहिक इस्तीफा दे दिया। इन पदाधिकारियों का कहना है कि उन्हें पार्टी से बेदखली का डर नहीं है। इसलिए पार्टी कोई कदम उठाए उसके पहले हम अपने पद और पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे रहे हैं। 

दिवा के रहिवासी शिंदे में विश्वास करते है

राज्य में सत्ता संघर्ष चल रहा है और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में राज्य में कई विधायकों ने बगावत कर दी है। चूंकि ठाणे इस विद्रोह का केंद्र है, इसलिए शिवसेना और शिवसेना के बीच एक संघर्ष पैदा हो गया है। ठाणे में शिंदे के समर्थक पिछले कुछ दिनों से और शनिवार को एकनाथ शिंदे के आवास के बाहर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। बाद में सोमवार को आनंद आश्रम में प्रदर्शन के बाद दिवा में एकनाथ शिंदे के समर्थन में एकत्र हुए थे। प्रदर्शन का नेतृत्व सांसद श्रीकांत शिंदे और पूर्व मेयर नरेश म्हस्के कर रहे हैं और एक तरह से एकता दिखा रहे हैं। सांसद श्रीकांत शिंदे ने कहा कि आज बहुत कठिन समय है, जिले में हर कोई उनके पिता एकनाथ शिंदे को प्यार करता है और दिवा शहर के रहिवासी भी शिंदे में विश्वास करते है। क्योंकि उन्होंने दिवा का विकास किया है। 

पूर्व महापौर नरेश म्हस्के ने गंभीर आरोप लगाया कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के विधायकों ने दिवा के विकास का विरोध किया तो हम उनके साथ सरकार में कैसे बैठ सकते हैं। दिवा में जहां नगरसेवकों की संख्या 8 थी, वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के एक विधायक मंत्री ने इतनी ही संख्या घटा दी। लेकिन शिवसेना ने यहां एक नगरसेवक बढ़ा कर ही दम लिया। उन्होंने कहा कि ‘जब दिवा में कई समस्याएं थीं, तो उसके पीछे केवल शिवसेना खड़ी थी।’