Tiger seen on highway, terror among Goregaon farmers
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बाघों की मौत के सबसे ज्यादा मामले मध्यप्रदेश (526) व कर्नाटक (111) में हुए हैं। उत्तराखंड में 88, तमिलनाडु व असम में 54-54, यूपी में 35 तथा महाराष्ट्र में 28 बाघों की मौत हुई।

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भारत में पिछले 8 वर्षों में 750 बाघों की मौत होना चिंताजनक है क्योंकि बाघ हैं तो जंगल है। यदि बाघ का डर न रहे तो अवैध कटाई कर वनों का सफाया कर दिया जाए। वन सुरक्षित रहने पर हिरन, खरगोश, नीलगाय, बंदर, भालू, भेड़िया, सियार आदि अन्य वन्यपशु रहते हैं। वृक्षों और घास से पर्यावरण संतुलन बना रहता है। बाघों की मौत के सबसे ज्यादा मामले मध्यप्रदेश (526) व कर्नाटक (111) में हुए हैं। उत्तराखंड में 88, तमिलनाडु व असम में 54-54, यूपी में 35 तथा महाराष्ट्र में 28 बाघों की मौत हुई। भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, म्यांमार, चीन, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम व रूस में बाघ पाए जाते हैं।

जब तक शिकार पर प्रतिबंध नहीं लगा था, तब तक बड़ी तादाद में बाघ मारे जाते थे। विदेशी शिकारी इस उद्देश्य से भारत आया करते थे। यहां भी शिकारियों की कमी नहीं थी। पुराने राजा-महाराजा शिकार का शौक रखते थे। कुछ कंपनियां भी शिकार की सुविधा मुहैया कराती थीं। वे तेज लाइट वाली जीपें और बंदूकों के अलावा स्थानीय शिकारी भी उपलब्ध कराती थीं। नेपाल के तत्कालीन महाराजा महेंद्रवीर विक्रम शाह तथा महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक भी शिकार के शौकीन थे। देश में बाघों की तादाद काफी घट गई थी। बाद में वन संरक्षण की दिशा में कदम उठाए गए तथा शिकार पर प्रतिबंध लग गया। 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया। शुरू में 9 टाइगर रिजर्व थे जो अब बढ़कर 50 हो गए हैं। संरक्षित क्षेत्रों की संख्या भी 2019 में बढ़कर 860 हो गई। कम्युनिटी रिजर्व भी 100 से ज्यादा हो गए। इतने पर भी बाघों की मौत होना चिंता का विषय है। बाघों की मौत या तो अवैध शिकार से होती है अथवा वे हादसों में मारे जाते हैं। बाघ की खाल या नाखून रखना अपराध है, फिर भी अवैध शिकारी मौके की ताक में रहते हैं। कुछ वर्षों पहले संसारचंद नामक अवैध शिकारी व उसके गिरोह की काफी चर्चा थी। बाघ बूढ़े या घायल होने पर शिकार नहीं कर पाते और भूख या प्राकृतिक कारणों से भी मरते हैं। इसके अलावा क्षेत्रीय कब्जे की लड़ाई (टेरिटोरियल फाइट) में भी एक बाघ अपने से कम शक्तिशाली दूसरे बाघ को मार डालता है। ऐसा तब होता है जब बाघ के विचरण का क्षेत्र घट जाए। कहावत भी है कि एक जंगल में दो शेर नहीं रह सकते। बाघ के अस्तित्व से जंगल और पर्यावरण का मुद्दा जुड़ा हुआ है इसलिए उनका संरक्षण बेहद जरूरी है। 2010 में ऐसे देशों ने जहां बाघ पाए जाते हैं, 2022 तक बाघों की संख्या दोगुना करने का संकल्प लिया था।