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    महाराष्ट्र (Maharashtra) के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के नये हिन्दुत्व से इन दिनों राज्य में कई तरह की चर्चा चल रही है. उद्धव ने जो हिन्दुत्व (Hindutva) का एजेन्डा तय किया है, वह बीजेपी (BJP) को बुरी तरह आहत कर रहा है. चोटी और जनेऊ का हिन्दुत्व हमारा नहीं ऐसा बोलकर उद्धव ने राजनीतिक रूप से बीजेपी को बहुत ही पशोपेश में डाल दिया है. विधानसभा के फ्लोर पर यह बयान दिये जाने से महाविकास आघाड़ी सरकार के बाकी दोनों दल कांग्रेस और राकां मे बेचैनी बढ़ गई है. बीजेपी की हाल यह है वह इस हिन्दुत्व का विरोध करे तो समस्या और समर्थन करे तो बड़ी समस्या. 

    उद्धव ने विधानसभा में अपने संबोधन में छाती ठोक कर कहा कि बाबरी विध्वंस (Babri Demolition) के बाद जब बीजेपी के नेता जिम्मेदारी लेने से बच रहे थे, तब शिवसेना प्रमुख ने सीना तानकर कहा था कि मस्जिट ढहाने वाले शिवसैनिक थे. सच्चाई भी यही है कि 6 दिसंबर की घटना के बाद बीजेपी बैकफुट पर आ गई थी. उद्धव जानते हैं कि शिवसेना का राजनीतिक मैदान महाराष्ट्र की सीमाओं के भीतर है. उसमें भी विदर्भ और मुंबई का इलाका छोड़ दिया जाए तो तीन चौथाई राज्य में ब्राम्हण विरोधी (जिसे पापुलर मराठी भाषा में भटजी कहा जाता है) लोग बसते हैं. पश्चिम महाराष्ट्र और मराठवाड़ा के बड़े इलाके में यह एक बहुत बड़ा राजनीतिक मुद्दा है.

    हिन्दुत्व और बीजेपी की दुविधा

    बीजेपी अपनी सुविधा के अनुकूल हिन्दुत्व कार्ड का इस्तेमाल करती है. जिस हिन्दुत्व को वह यूपी-बिहार में आगे बढ़ाती है, वह मुंबई-गोवा में नहीं चलता. जिस गौमाता की पूजा और गोवंश की रक्षा की कसम वह हिन्दी भाषी राज्यों में बढ़-चढ़कर खाती है, वही मुंबई-गोवा सहित कई उत्तर-पूर्वी राज्यों और दक्षिण के राज्यों में वह कथित रूप से बीफ का विरोध तक नहीं कर सकती. बीजेपी की इस मजबूरी को शिवसेना भली-भांति जानती है. इस वजह से जब उद्धव ने हिन्दुत्व की नई व्याख्या की तब बीजेपी को बगले झांकना पड़ रहा है.

    आघाड़ी के नेता का दम फूला

    उद्धव के भाषणों और बयानों ने सिर्फ बीजेपी को ही असहज नहीं किया. आघाड़ी के सहयोगी दल कांग्रेस और राकां नेताओं का भी दम फूल रहा है. कांग्रेस के चमको नेता संजय निरूपम जो उद्धव विरोध के कारण ही शिवसेना से बाहर हुए थे, ऐसा कोई मौका नहीं छोड़ते. किसी समय बाल ठाकरे के हिन्दु एजेन्डे को आगे बढ़ाने वाले निरूपम जब कांग्रेस में लाये गये थे, तब शिवसेना से टकराने का काम दिया गया था. शिवसेना से तो वह मुकाबला नहीं कर पाये, लेकिन कांग्रेस की हालत मुंबई में जो हो गई उसके लिए ऐसे कई नेता जिम्मेदार है. ऐसे में जब उद्धव के हिन्दुत्व के एजेन्डे पर निरूपम सवाल उठाते हैं तो कितने लोग उसको गंभीरता से लेते होंगे, यह सवाल खड़ा किया जाता है. वैसे कांग्रेस के कई नेता जानते हैं कि पार्टी की हिन्दू विरोधी छवि जो 2014 के पराजय का मूल कारण भी बनी वह अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, लेकिन उद्धव के बयानों की आड़ में वह सुधारी जा सकती है. कथित साफ्ट हिन्दुत्व पर पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर चलने का प्रयास कर ही रही है. प्रियंका गांधी तो इंदिरा की तर्ज पर यूपी और आसाम में मंदिर दर्शन और गंगा स्नान में लगी हुई हैं. और वैसे भी कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग यह जानता है कि हिन्दुत्व के छुपे एजेन्डे पर बने रहने से कोई बहुत बड़ा नुकसान नहीं होने वाला. राकां की हालत ऐसी है कि उसके अपने वोट बैंक से हिन्दु कार्ड का कोई खास फर्क नहीं पड़ता. खुद सीनियर पवार की ‘सुविधाजनक राजनीति’ से भी सभी वाकिफ हैं. सभी यह भी जानते हैं समय आने पर वे किसी से भी गठबंधन करें, इससे उनकी और राकां की राजनीतिक सेहत पर कभी फर्क नहीं पड़ता है.

    तीन दल-तीन दिशा

    महाविकास आघाड़ी के तीन दल अलग-अलग तीन दिशा में चल रहे हैं. इससे उनकी सरकार पर तब तक असर नहीं पड़ेगा, जब तक वे एक दूसरे के रास्ते में रुकावट नहीं बनते. संयोग से तीन में से दो दल के भविष्य का पूरा दारोमदार महाराष्ट्र की सीमाओं तक ही सीमित है ऐसे में कांग्रेस को ही सोचना-विचारना है कि उसे आगे क्या करना है. कांग्रेस के पास भी देश में गंवाने के लिए कुछ नहीं है. ऐसे में कहीं भी उसे यह जवाब नहीं देना है कि वह महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ क्या कर रही है. जबकि इससे विपरीत बीजेपी की हालत ऐसी है कि कोर हिन्दु बहुल इलाकों में वह महाराष्ट्र की सरकार और शिवसेना का नाम नहीं ले पा रही है,क्योंकि वहां लोग सवाल करेंगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक हिन्दुवादी पार्टी दूसरी से इतने दूर चली गई. सब की अपनी-अपनी मजबूरी है. यही राजनीति की सच्चाई भी है.