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Published: Nov 28, 2023 03:32 PM IST

KCR vs Etela Rajenderबड़ा दिलचस्प है गजवेल का चुनाव, अपने 'खासमखास' से लड़ने को मजबूर हैं KCR, ऐसी हैं संभावनाएं

कंटेन्ट राइटरनवभारत.कॉम
केसीआर बनाम ईटेला राजेंदर

हैदराबाद : कहा जाता है कि चुनाव में कुछ भी हो सकता है और जनता कभी भी किसी को हरा या जीत दिला सकती है, लेकिन जब मुकाबला अपने ही किसी शख्स से हो तो यह चुनावी जंग और भी खास हो जाती है। कुछ ऐसा ही हाल तेलंगाना में विधानसभा के चुनाव के दौरान गजवेल सीट को लेकर हो रहा है, जहां पर हो रहे चुनाव में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव को गजवेल में चुनौती देने वाले ईटेला राजेंदर अपना सब कुछ झोंक रहे हैं, ताकि वह मुख्यमंत्री को उनके गढ़ में जाकर हराकर अपने आपको एक बड़े राजनेता के तौर पर प्रोजेक्ट कर सकें। एक समय में एक साथ रहने वाले इन दोनों नेताओं की टक्कर और उसका परिणाम देखने लायक होगा। वहीं दोनों राजनेता अपने आपको सिक्योर करने के लिए एक और सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, ताकि किसी भी उलटफेर की स्थिति में वह विधानसभा में पहुंचने से न चूक जाएं।

तेलंगाना में विधानसभा का चुनाव प्रचार आज खत्म हो जाएगा। इसके बाद सभी दल 30 नवंबर को होने वाली वोटिंग और 3 दिसंबर को होने वाले मतगणना पर अपना फोकस करेंगे। इसके बीच हार जीत की कवायद व एक्जिट पोल पर खूब चर्चा देखने को मिलेगी। लेकिन चुनाव प्रचार के आखिरी दिन इस बात की चर्चा हो रही है कि ईटेला राजेंदर के खौफ से  मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव को दो जगहों से चुनाव लड़ना पड़ रहा है। हालांकि पिछले दो चुनावों में वह अपनी सुरक्षित व परंपरागत सीट को कंफर्म मानकर चुनाव लड़ा करते थे। लेकिन भाजपा के द्वारा चली गयी इस राजनीतिक चाल से मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने अपनी विधायकी कंफर्म करने के लिए कामारेड्डी से भी पर्चा भर दिया, क्योंकि वह इस चुनाव में विधानसभा में पहुंचने से चूकना नहीं चाहते हैं।

केसीआर के साथ ईटेला राजेंदर

ईटेला राजेंदर बनाम केसीआर 
तेलंगाना में एक समय ऐसा भी था कि जब केसीआर की कैबिनेट में मंत्री रहे ईटेला राजेंदर चंद्रशेखर राव के सबसे भरोसेमंद और खासमखास राजनेता हुआ करते थे। लेकिन उन्होंने अचानक 2021 में के. चंद्रशेखर राव और उनकी पार्टी भारत राष्ट्र समिति (तत्कालीन टीआरएस) का साथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। भारतीय जनता पार्टी उनको आगे करके तेलंगाना में अपनी पकड़ को और मजबूत करना चाहती थी। इसीलिए ईटेला राजेंदर पर सफलतापूर्वक डोरे डालकर उनको दल बदल करने के लिए राजी कर लिया। इसके बाद ईटेला राजेंदर ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और अपनी विधानसभा सीट भी छोड़ दी। 
भाजपा में शामिल होने के बाद हुजूराबाद सीट से निवर्तमान विधायक ने जब उपचुनाव लड़ा तो मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने ईटेला राजेंदर को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी और उनके खिलाफ पार्टी के 100 विधायक एक-एक करके बारी-बारी मैदान में उतार दिए, लेकिन इसके बावजूद ईटेला राजेंद्र ने उपचुनाव को आसानी से जीत लिया और भारतीय जनता पार्टी का प्रमुख चेहरा बनाकर तेलंगाना की राजनीति में उभरे। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर ईटेला राजेंदर का मुकाबला केसीआर से कराने की सोची है। मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की परंपरागत सीट पर चुनौती देने के लिए ईटेला राजेंदर को तैयार किया और उनको उनकी सेफ सीट हुजूराबाद से भी चुनाव मैदान में उतारा ताकि, उनको विधानसभा में किसी भी तरह से पहुंचाया जा सके। 

भाजपा नेता ईटेला राजेंदर

 भारतीय जनता पार्टी ने ईटेला राजेंदर का उपयोग कर केसीआर को चुनावी चक्रव्यूह में फंसाने की कोशिश की है, हालांकि ईटेला राजेंदर  के मैदान में उतरने की खबर के बाद के. चंद्रशेखर राव ने अपने लिए दूसरी सेफ सीट तलाश कर ली और वह कामरेड्डी से भी चुनाव मैदान में हैं। वहीं ईटेला राजेंदर भी गजवेल के अलावा हुजूराबाद से भी चुनाव मैदान में हैं। 

 तेलंगाना के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि के. चंद्रशेखर राव और उनकी पार्टी को बढ़ाने में ईटेला राजेंदर का काफी बड़ा रोल रहा है। पार्टी में जब मुख्यमंत्री केवल अपने बेटे और बेटी को ही आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे तो इसीलिए ईटेला राजेंदर ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया।

 गजवेल विधानसभा सीट पर केसीआर और ईटेला राजेंदर के बीच लड़ाई काफी अहम है और यहां अगर अप्रत्याशित परिणाम आया और केसीआर को ईटेला राजेंदर हराने में सफल रहे तो वह एक बड़े नेता के रुप में उभरेंगे। शायद इसी महत्वाकांक्षा से ईटेला राजेंदर ने यह बड़ा दाव खेला है। 

नाराज हैं इलाके के मुस्लिम 
 बताया जा रहा है कि गजवेल विधानसभा में 2 लाख 60 हजार मतदाता हैं, जो अबकी बार अपने पसंद का विधायक एक बार फिर से चुनेंगे। हालांकि यहां पर कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में 2009 में इस सीट से विधायक रहे नरसारेड्डी भी चुनाव मैदान में हाथ आजमा रहे हैं। गजवेल विधानसभा सीट के इलाके में 10 से 15% की मुस्लिम आबादी भी है, जो निर्णायक वोटर मानी जाती है। पिछली बार के चुनाव में मुस्लिम वोटरों ने मुख्यमंत्री का खुलकर समर्थन किया था और कई इलाकों में उनकी पार्टी का साथ दिया था, लेकिन अबकी बार मुख्यमंत्री अपने वायदे को पूरा नहीं करने की वजह से वहां के लोगों में नजरों में खटक रहे हैं। गजवेल वाफ बोर्ड के मुतलवल्ली खादर पशा का कहना है कि मुख्यमंत्री ने वफ्फ बोर्ड की जमीनों पर कब्जे हटाने की बात कही थी, लेकिन आज तक उस पर कुछ भी काम नहीं हुआ है। साथ ही साथ कई उन मुद्दों पर मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की चुप्पी भी उनके ऊपर कई तरह के सवालिया निशान खड़े करती है।

हालांकि 2014 के चुनाव में केसीआर ने यह सीट पहली बार केवल 19,391 वोटों से टीडीपी के प्रताप रेड्डी को हराकर जीती थी। कांग्रेस का उम्मीदवार तीसरे स्थान पर था। वहीं जब 2018 में चुनाव हुए तो केसीआर ने इस सीट को 58,290 वोटों से जीता। एक बार फिर उन्होंने प्रताप रेड्डी को ही हराया, जो अबकी बार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में थे। इसलिए केसीआर यहां उतना कमजोर नहीं हैं, जितना समझा जा रहा है। फिर भी इस सीट पर कई बार अप्रत्याशित परिणाम आए हैं। शामिल इसीलिए केसीआर ने अंदरुनी फीडबैक लेकर एक और सीट से उतरना मुनासिब समझा है।

फॉर्म हाउस भी है चर्चा में
विधानसभा क्षेत्र में गजवेल शहर के बाहर केसीआर ने अपना एक बहुत बड़ा फार्म हाउस बना रखा है। यह फार्म हाउस उनकी पार्टी और  सत्ता का मुख्य केंद्र रहा है। कहा जाता है कि प्रदेश के सारे अहम फैसले यहीं से होते हैं। इसी फार्म हाउस पर केसीआर अक्सर  उपलब्ध रहा करते हैं और पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ अक्सर गोपनीय बैठकें यहीं पर होती हैं। यहां पर होने वाली खेती भी चर्चा में रहती है।

हालांकि इस सीट पर हार जीत का फैसला तो 3 दिसंबर को आएगा, लेकिन 30 नवंबर को होने वाली वोटिंग से ही रुझान मिलने लगेंगे। अब देखना है कि ईटेला राजेंदर का राजनीतिक छलांग लगाने वाला सपना पूरा होता है या केसीआर अपने अभेद्य दुर्ग को भेदने का सपना देखने वाले को धूल चटाते हैं।