assembly election 2023, Telangana Assembly Election 2023, Union Minister Mr. Kishan Reddy, Hyderabad or Bhagyanagar
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(एस हनुमंत राव, स्वतंत्र पत्रकार)

दक्षिण के महत्वपूर्ण राज्य तेलंगाना में कांग्रेस पार्टी को भले ही अप्रत्याशित जन समर्थन मिलता दिखाई दे रहा हो लेकिन हमें तेलंगाना की तासीर नकारना नहीं चाहिए। मैं इस राज्य की मौजूदा चुनावी स्थिति से अपनी बात शुरू करना चाहता हूं। तेलंगाना में अंतिम उम्मीदवार सूची के विश्लेषण से पता चलता है कि भाजपा 119 विधानसभा सीटों में से 40 पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है, जबकि कम्युनिस्ट पार्टियां, बसपा और एआईएमआईएम भी कुछ सीटों पर वोटों का बंटवारा कर सकती हैं।

अब यह स्पष्ट है कि तेलंगाना के एक तिहाई निर्वाचन क्षेत्रों में त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है, जबकि सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) और कांग्रेस अन्य की मौजूदगी के बावजूद बाकी सीटों पर सीधी लड़ाई में दिख रही हैं । सत्तारूढ़ बीआरएस सभी 119 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जबकि कांग्रेस 118 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, और कोठागुडेम सीट अपने गठबंधन सहयोगी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के लिए छोड़ रही है। भाजपा ने 111 निर्वाचन क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं, जबकि अन्य नौ सीटें अपने गठबंधन सहयोगी, फिल्म स्टार पवन कल्याण के नेतृत्व वाली जन सेना पार्टी (जेएसपी) के लिए छोड़ दी हैं। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) 107 सीटों पर और सीपीआई (मार्क्सवादी) 19 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

त्रिकोणीय लड़ाई ने बदला समीकरण 

भाजपा लगभग 40 निर्वाचन क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती दिख रही है, जबकि शेष 79 सीटों पर सीधे बीआरएस-कांग्रेस के बीच लड़ाई होने की संभावना है। जहां भी भाजपा को कुछ समर्थन प्राप्त है, वहां त्रिकोणीय मुकाबला देखा जा रहा है, जैसे कि पूर्ववर्ती जिले निज़ामाबाद, करीमनगर, आदिलाबाद, ग्रेटर हैदराबाद, महबूबनगर और वारंगल।

कम्युनिस्ट पार्टियों, जिनकी पूर्ववर्ती खम्मम और नलगोंडा जिलों में कुछ उपस्थिति है वहां त्रिकोणीय मुकाबले पैदा कर दिए हैं, हालांकि वहां भाजपा की उपस्थिति न्यूनतम है। आदिलाबाद जिले की सिरपुर कागजनगर सीट पर बीआरएस और कांग्रेस उम्मीदवारों को आईपीएस अधिकारी से नेता बने और बसपा के राज्य प्रमुख आरएस प्रवीण कुमार से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। उसी जिले में, जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर हावी है, खानापुर, बोथ और मुधोल जैसी सीटों पर बीआरएस और कांग्रेस के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा है, जबकि मंत्री इंद्रकरण के प्रतिनिधित्व वाले निर्मल निर्वाचन क्षेत्र में भी भाजपा लड़ाई में है।

कामारेड्डी से तत्कालीन निज़ामाबाद जिले में मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव के प्रवेश ने पड़ोसी निर्वाचन क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित किया। यहां कांग्रेस के उम्मीदवार राज्य पार्टी प्रमुख ए रेवंत रेड्डी हैं, और भाजपा उम्मीदवार भी यहां उनके लिए कुछ परेशानी पैदा कर रहे हैं। आर्मूर, बोधन, निज़ामाबाद शहरी, बांसवाड़ा और बालकोंडा निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा काफी मजबूत है।

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तेलंगाना में चुनाव प्रचार के दौरान मोदी

बीजेपी का कितना असर 

संयुक्त करीमनगर में तीन-तरफ़ा लड़ाई देखने है क्योंकि भाजपा सांसद बंदी संजय और धर्मपुरी अरविंद मैदान में हैं और उनकी उपस्थिति से पार्टी कैडर में उत्साह बढ़ने की संभावना है। करीमनगर, कोरुटला, जगित्याल, वेमुलावाड़ा और हुजूराबाद प्रमुख निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां भाजपा को भारी प्रभाव पड़ने की संभावना है।

हुजूराबाद में 2020 में एक हाई-वोल्टेज उपचुनाव हुआ, जहां मुख्यमंत्री द्वारा मंत्रिमंडल से हटाए जाने के बाद एटाला राजेंदर ने बीआरएस छोड़ दिया भाजपा में शामिल हो गए और जीत हासिल की, बावजूद इसके कि पूरे राज्य की ताकत और मशीनरी का इस्तेमाल बीआरएस उम्मीदवार के पक्ष में किया गया था।

सीपीआई (एम) का खेल  

संयुक्त खम्मम में बीआरएस और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है, हालांकि सीपीआई (एम) दोनों प्रमुख दलों के वोट शेयर में सेंध लगा सकती है। नलगोंडा, जो लंबे समय से कांग्रेस का गढ़ रहा है, वहां तीसरी पार्टी सीपीआई (एम) भी वोटों का बंटवारा करेगी, हालांकि कांग्रेस और बीआरएस यहां मुख्य प्रतिद्वंद्वी हैं, सूर्यापेट निर्वाचन क्षेत्र को छोड़कर जहां भाजपा उम्मीदवार को भी मजबूत माना जाता है।

बीआरएस संयुक्त महबूबनगर जिले में बड़ी जीत हासिल करने की उम्मीद कर रही है, लेकिन 2009 तक वहां अपनी उपस्थिति को देखते हुए, कांग्रेस भी काफी मजबूती से सामने आई है। राज्य कांग्रेस अध्यक्ष, श्री रेड्डी भी वहीं से आते हैं, हालांकि उनका निर्वाचन क्षेत्र कोडंगल है जो अब विकाराबाद जिले का हिस्सा बना दिया गया है।

ग्रेटर हैदराबाद में भी त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा, जिसमें ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), बीआरएस और बीजेपी सभी अच्छा प्रदर्शन करेंगे तो यह तो मौजूदा चुनाव की स्थिति है लेकिन जो अहम फैक्टर और इसके बारे में मैं इस लेख में बात करना चाहता हूं वह है ओवैसी से जुड़ा हुआ। ओवैसी तेलंगाना के ऐसे नेता हैं जिनका असर या जिनकी मौजूदगी देश के कई हिस्सों में दिखाई देती है फिर चाहे वह उत्तर प्रदेश हो बिहार हो पश्चिम बंगाल हो या फिर दिल्ली हो।

लेकिन जब हम तेलंगाना के संदर्भ में बात करते हैं तो तेलंगाना में 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान ओवैसी के सामने विकट परिस्थिति आ गई है क्योंकि कांग्रेस पार्टी की बदली हुई रणनीति उनके अपने वोट बैंक में सेंध लगाने का काम कर रही है।

तेलंगाना में मौजूदा चुनाव ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के लिए सबसे मुश्किल चुनावी लड़ाइयों में से एक बन गया है।. ग्राउंड रिपोर्ट्स बताती हैं कि पार्टी पिछली बार हैदराबाद के ओल्ड सिटी में जीती गई 7 सीटों में से ज्यादातर पर मजबूत हालत में है. लेकिन सवाल पूरे स्टेट का है।

ओवैसी चाहते हैं कि तेलंगाना में केसीआर फिर सीएम बने. और इसलिए इस चुनाव में कांग्रेस और AIMIM के बीच सबसे तीखी बयानबाजी भी देखने को मिल रही है. इन चुनावों में असदुद्दीन ओवैसी उन सीटों पर रैलियों को संबोधित करने में काफी वक्त दे रहे हैं जहां AIMIM ने खुद कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है। उदाहरण के लिए ओवैसी ने विकाराबाद में अपनी रैली में BRS सरकार के अल्पसंख्यकों के लिए किए कामों को गिनाया और राज्य सरकार की योजनाओं से अल्पसंख्यक समुदायों के कितने लाभार्थियों को लाभ हुआ, इसके आंकड़े पेश किए।

मुशीराबाद में उन्होंने अपने भाषण में कहा की उन्होंने इस साल किस तरह  मिलाद-उन-नबी जुलूस को टालने की पहल की ताकि हिंदू समुदाय के गणपति जुलूस में खलल न पड़े। खैरताबाद में उन्होंने बताया कि कैसे BJP और कांग्रेस, दोनों ने UAPA पास करने में भूमिका निभाई और लोगों को चेतावनी दी कि वे इन पार्टियों का समर्थन न करें, क्योंकि इस कानून का इस्तेमाल मुसलमानों को गलत तरीके से जेल में डालने के लिए किया जा रहा है।

अपने कम से कम दो भाषणों में उन्होंने निजामाबाद, निर्मल, आदिलाबाद टाउन, मुधोल, कोरातला, गोशामहल, मुशीराबाद और करीमनगर शहर के लोगों से एकजुट होकर वोट डालने और BJP और कांग्रेस दोनों को हराने की अपील की ।

ओवैसी के नजरिए से देखें तो BRS की जीत का एक पहलू BRS की बनावट से जुड़ा है. BRS लीडरशिप AIMIM के साथ एक पार्टनर की तरह बर्ताव करती है, न कि उत्तर की सेक्युलर पार्टियों की तरह राजनीतिक अछूत के रूप में। आपको याद होगा जब तेलंगाना के मुख्यमंत्री कर लखनऊ गए थे तो उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ओवैसी के बारे में क्या कहा था। अगर नहीं याद तो मैं आपको याद दिला देता हूं उन्होंने कुछ इस अंदाज में कहा था।

“तेलंगाना का बेटा है वो... मेरा मानना है कि राष्ट्रीय स्तर की एक मुस्लिम राजनीतिक आवाज होनी चाहिए जैसा कि इब्राहिम सुलेमान सैत का मानना था. मुझे इसमें कुछ भी गलत नजर नहीं आता है।”

के. चंद्रशेखर राव, मुख्यमंत्री तेलंगाना

एक दूसरा पहलू यह है कि BRS तेलंगाना को कैसे देखती है। इसका परिप्रेक्ष्य क्षेत्रीय गौरव का है और यह तेलंगाना को भारतीय राष्ट्रवाद से मुकाबले के नजरिये से नहीं देखती है।

उदाहरण के लिए BJP और यहां तक कि एक हद तक कांग्रेस के उलट, BRS निजाम काल के बारे में नकारात्मक लहजे में बात नहीं करती है और स्वीकार करती है कि तेलंगाना आज जो है, उसमें उस शासन का योगदान है. बहुत से AIMIM समर्थकों को लगता है कि निजाम विरोधी भावनाओं को संभावित रूप से तेलंगाना के मुसलमानों के खिलाफ हथियार बनाया जा सकता है और इतिहास के उस दौर के बारे में कम ध्रुवीकरण का नजरिया रखने वाली पार्टी सबसे सही है।

कांग्रेस-AIMIM की कड़वाहट नामपल्ली सीट पर सबसे ज्यादा उजागर होती है। नामपल्ली को एक ऐसी सीट है जहां कांग्रेस के पास AIMIM की पहले से जीती दूसरी सीटों के मुकाबले उसे परेशान करने का ज्यादा मौका है।

यहां कांग्रेस उम्मीदवार फिरोज खान ने चुनाव प्रचार के दौरान कई विवादित बयान दिए हैं। कांग्रेस के फिरोज खान को नामपल्ली के मतदाताओं के एक वर्ग को “तालिबानी” या कट्टर मानसिकता वाला कहने पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। ओवैसी ने फौरन फिरोज खान को आड़े हाथों लिया और उन पर RSS की भाषा बोलने का आरोप लगाया।

हैदराबाद के पूर्व मेयर और AIMIM उम्मीदवार माजिद हुसैन के समर्थन में एक राजनीतिक सभा को संबोधित करते हुए ओवैसी ने कहा, “वे नामपल्ली के मुसलमानों का अपमान कर रहे हैं।” 43 साल के माजिद हुसैन AIMIM के उभरते सितारे हैं। उन्होंने 2020 के बिहार चुनाव में पार्टी के अभियान की कमान संभाली थी, जिसमें पार्टी ने सीमांचल क्षेत्र में पांच सीटें जीती थीं।

इसी तरह से जुबली हिल्स सीट है। यहां कांग्रेस AIMIM पर BRS की मदद के लिए मुस्लिम मतदाताओं को बांटने का आरोप लगा रही है. भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन यहां कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के पूर्व सांसद अजहरुद्दीन पहली बार अपने गृह राज्य तेलंगाना से चुनाव लड़ रहे हैं।AIMIM के साथ इस कड़ी लड़ाई में कांग्रेस को जुबली हिल्स से पूर्व AIMIM उम्मीदवार नवीन यादव का समर्थन मिला है, जिन्होंने 2014 में यहां से मजलिस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। AIMIM द्वारा BRS (तब इसका नाम TRS था) के लिए समर्थन की घोषणा के बाद उन्होंने 2018 में निर्दलीय चुनाव लड़ा था।

लेकिन मैं यहां पर एक और बड़े दिलचस्प पहलू का जिक्र करना चाहूंगा और वह यह है कि कांग्रेस और AIMIM में हमेशा दुश्मनी नहीं थी. जब अविभाजित आंध्र प्रदेश में कांग्रेस और तेलुगु देशम पार्टी के बीच ज्यादातर सीधा मुकाबला होता था तो AIMIM का झुकाव ज्यादातर कांग्रेस की ओर होता था। दोनों दलों के बीच संबंध खासतौर से 2004 से 2009 तक बहुत अच्छे थे, जब वाईएस राजशेखर रेड्डी मुख्यमंत्री थे।

2009 में YSR के निधन पर असदुद्दीन ओवैसी ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा था

जब वाईएस राजशेखर रेड्डी मुख्यमंत्री बने तो आंध्र प्रदेश के मुसलमानों को पहली बार लगा कि उनका कोई अपना ही सरकार का मुखिया बनकर आया है।

“ओवैसी ने यह भी बताया कि जब वह एक नौजवान विधायक थे और आंध्र प्रदेश में तत्कालीन TDP सरकार को घेरते थे, तब YSR हमेशा उन्हें प्रोत्साहित करते थे, भले ही वे अलग-अलग पार्टियों से थे। ओवैसी के मुताबिक AIMIM ने 2004 और 2009 में कांग्रेस का इसलिए समर्थन किया, क्योंकि “YSR ने हमेशा अपनी बात पर अमल किया।”

असदुद्दीन ओवैसी, सांसद, हैदराबाद

YSR की मौत के बाद आंध्र प्रदेश में कांग्रेस के लिए हालात खराब होते गए।  पहले इसने वाईएस जगनमोहन रेड्डी और फिर तेलंगाना आंदोलन को गलत तरीके से डील किया. इन दो घटनाक्रमों के चलते आखिरकार आंध्र प्रदेश कांग्रेस और बाद में राज्य का बंटवारा हुआ। इस उथल-पुथल के दौरान AIMIM के साथ कांग्रेस के रिश्ते और खराब होते चले गए, खासकर एन किरण कुमार रेड्डी के दौर में। किरण रेड्डी के शासनकाल में चंद्रयानगुट्टा से AIMIM विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी को कथित नफरत भरे भाषण के मामले में गिरफ्तार किया गया था।

चारमीनार पर मंदिर निर्माण की कोशिशों को लेकर किरण रेड्डी सरकार हिंदुत्ववादी संगठनों के खिलाफ कमजोर दिखाई दी। इस मुद्दे पर AIMIM ने रेड्डी सरकार से समर्थन वापस ले लिया और किरण रेड्डी को हिंदुत्ववादी सीएम करार दिया।

किरण रेड्डी ने 2014 में कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाई। बाद में उन्होंने इसे भंग कर दिया और 2018 में फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए। 2023 की शुरुआत में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और BJP में शामिल हो गए।

2012 में रिश्ते टूटने के बाद से ओवैसी कांग्रेस के खिलाफ हो गए। दूसरी तरफ कांग्रेस AIMIM को “BJP की बी-टीम” कहती रही है और उस पर मुस्लिम वोट काटने के लिए उम्मीदवार खड़े करने का आरोप लगाती रही है।

2022 में कांग्रेस ने तेलंगाना में भारत जोड़ो यात्रा में हैदराबाद शहर को शामिल करने के लिए यात्रा का रूट बढ़ाया और पार्टी को उम्मीद है कि इससे उसे पूरे राज्य में मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में लाने में मदद मिल सकती है।

कांग्रेस के रणनीतिकार तेलंगाना में कर्नाटक मॉडल को दोहराना चाहते हैं। इसमें न केवल कल्याणकारी योजनाएं और OBC और दलित वोटों, बल्कि अल्पसंख्यकों पर भी जोर देना शामिल है। क्योंकि कर्नाटक चुनाव या आप यूं कह सकते हैं कि कांग्रेस का कर्नाटक मॉडल अगर आप देखें वह जी थ्योरी पर काम करता है, उसे ओवैसी जैसे नेताओं को पूरे देश में खतरा पैदा हो गया है या उन तमाम नेताओं को नेताओं को खतरा पैदा हो गया है जो अल्पसंख्यकों की राजनीति करते हैं। तो आखिर में मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगा की तेलंगाना चुनाव का नतीजा चाहे जो हो लेकिन यह भारतीय राजनीति में मील का पत्थर स्थापित करने वाला साबित होगा।