नागपुर
Published: Mar 21, 2024 02:56 PM ISTPrakash Ambedkar इसलिए महा विकास अघाड़ी के दरवाजे खटखटा रहे हैं प्रकाश अंबेडकर, डिमांड आ रही है आड़े
नवभारत डेस्क : महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra politics) में बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर (Babasaheb Bhimrao Ambedkar) के उत्तराधिकारी बनने की कोशिश में कई राजनीतिक दल उभरे और खत्म हो गये। छोटे बड़े अन्य राजनीतिक दलों ने भी उनका नाम बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन कोई बहुत लंबी पारी नहीं खेल पायी, जबकि कांशीराम ने मायावती को साथ लेकर यूपी में दलितों को जगाकर मायावती को 4 बार मुख्यमंत्री बनने में मदद की। फिलहाल उनके नाम को भुनाने की कोशिश में पौत्र प्रकाश अंबेडकर (Prakash Ambedkar) महा विकास अघाड़ी (MVA) के दरवाजे खटखटा रहे हैं।
फिलहाल अगर देखा जाए तो महाराष्ट्र में वंचित बहुजन अघाड़ी के अध्यक्ष और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के पौत्र प्रकाश आंबेडकर इस दौरान उनके नाम का झंडा उठाए घूम रहे हैं। कहा जा रहा है कि प्रकाश आंबेडकर उद्धव बालासाहेब ठाकरे वाली शिवसेना, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस पार्टी के साथ बने महा विकास अघाड़ी के साथ ताजमेल करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वह गठबंधन में शामिल होकर कुछ सीटें अपने लिए ले सकें। लेकिन उनके द्वारा मांगी जा रही अधिक सीटों को देखकर महा विकास अघाड़ी के नेता उनका उतनी अधिक तवज्जो नहीं दे रहे हैं। वहीं रिपब्लिकन पार्टी के नेता रामदास अठावले भी अंबेडकर नाम पर अपने झंडे को लहराने की कोशिश कर रहे हैं।
आपको याद होगा कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने 1952 का पहला लोकसभा चुनाव शेड्यूल कास्ट फेडरेशन नामक दल के बैनर पर लड़ा था, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद 3 अक्टूबर 1956 को रिपब्लिकन पार्टी का गठन किया गया। लेकिन जल्द ही इस पार्टी की अनेक शाखाएं और उप शाखाएं बन गयीं तथा तमाम गुट भी बनते चले गए। इस पार्टी के नेता बीसी कांबले, बैरिस्टर खोब्रागडे, दादा साहब रूपवते और आरडी भंडारी में अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार अपनी राजनीति की और नए-नए रास्ते तलाशते रहे। जब-जब चुनाव आते तब तक ये नेता अपनी शाखाओं और उपशाखाओं के जरिए राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरी करने की कोशिश करते रहते और अपनी डफली और अपना राग भी खूब अलापते रहे।
1966, 1974, 1989 तथा 1996 रिपब्लिकन विचारों के नेताओं में एकता करने की कोशिश हुई। लेकिन सबसे ज्यादा सफलता 1996 में मिली, जब बाबा साहब अंबेडकर की पत्नी सविता अंबेडकर ने इसका नेतृत्व किया और 28 जनवरी 1996 को पहली बार मुंबई के शिवाजी पार्क में वंचित समाज की एक विशाल रैली आयोजित हुई। इस वंचित एकता रैली का चमत्कार था कि तब तत्कालीन कांग्रेस से एकीकृत रिपब्लिकन पार्टी का 1998 के लोकसभा चुनाव में समझौता हुआ। समझौते के दौरान उसे चार सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिलीं और रिपब्लिकन पार्टी चारों सीटें जीतने में सफल रही। यह वही दौर था जब प्रकाश आंबेडकर, रामदास आठवले, आरएस गवई और जोगेन्द्र कवाड़े एक साथ लोकसभा का दर्शन करने में सफल रहे।
इसके बाद कई नेताओं ने अपने पाले बदले रामदास अठावले ने अपना गुट बनाकर एनडीए को सपोर्ट किया। इसके बाद वह मोदी के नेतृत्व वाले गठबंधन में बने हुए हैं। साथ ही अपनी सीट भी पक्की कर रखी है। तो वहीं प्रकाश आंबेडकर ने 2019 के लोकसभा चुनाव में एआई एमआईएम से गठजोड़ करके चुनाव लड़ा और करीब एक दर्जन सीटों पर कांग्रेस व राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी को हराने में बड़ी भूमिका निभाई। हालांकि उसे लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली।
लेकिन एआइएमआइएम को एक सीट जरूर मिल गई। तब उनकी पार्टी को महाराष्ट्र में 14% वोट मिले थे, जबकि एनसीपी को केवल 15.1% वोट मिल पाए थे। वहीं कांग्रेस पार्टी को 16.27% वोट मिले थे । इसके बावजूद वो सीटों की डिमांड को लेकर गठजोड़ करना चाह रहे हैं, ताकि संसद में प्रवेश कर सकें।