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  • व्यवसायी डूबे चिंता में

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अमरावती. 23 मार्च से कोरोना के कारण लॉकडाउन घोषित किया गया. जिले में भी लॉकडाउन के दौरान शत-प्रतिशत व्यवसाय बंद रहे. 1 जुलाई से चरण बध्द तरीके से अनलॉक होते ही व्यवसाय आरंभ होना शुरु हुए. सितंबर माह में संपूर्ण देश अनलॉक हो चुका है. बावजूद इसके अभी भी कई व्यवसाय ऐसे है, जो लॉकडाउन की मार झेल रहे है. बावजूद इसके उनकी मदद के लिए ना ही प्रशासन सामने आ रहा है और नहीं कोई सामाजिक संगठनाएं सहयोग देने पहल कर रही है. जिससे परिवार के सदस्यों की चिंता और बढ़ती जा रही है.

सामाजिक संगठनाएं भी हुई गायब 

अनलॉक में भी कई व्यवसाय-कारोबार शुरु नहीं हो पाए है. जिसमें मुख्य रुप से सिनेमा हॉल, जिम, बैंड बाजा, स्कूल वैन, सिटी बस, आटो व्यावसायिक, पंडीत-पुजारी, रेलवे वेंडर, कुली, यात्रा में सामान बेचने वालों के साथ इन व्यवसायों से संबंधित सभी लोगों का व्यवसाय अनलॉक में भी ठप पड़ा है. जिससे अपने और अपने परिवार का गुजारा अब कैसे होगा? ऐसा सवाल इन परिवारों के सामने है. विशेष बात यह है कि लॉकडाउन में कई सामाजिक संगठनों ने सामने आकर लोगों को भोजन की व्यवस्था कराई, लेकिन अब ना तो व्यवसाय है और ना ही आर्थिक मदद, तो कैसे और क्या करें? ऐसा सवाल घर के कर्ता पुरुषों के सामने निर्माण हो रहा है. 

गुजारा करना मुश्किल

तीन माह की बात अलग थी. सभी लॉकडाउन था. इसलिए कोई किश्त मांगने या उधार मांगने नहीं आया. लेकिन अब सभी अनलॉक हो चुका है. ऐसे में केवल हमारा व्यवसाय ही बंद है. क्योंकि स्कूल बंद है. ऐसे में दूसरा व्यवसाय भी कौनसा करें. जरुरतें भी पूरी नहीं हो पा रही है. ऐसे में किश्त कहां से भरे. इसलिए गाडियों की किश्त भी नहीं भरी. सरकार की कथनी और करनी में फर्क रहा.  

– शक्ति खत्री, स्कूल वैन चालक 

दो वक्त की रोटी भी मिलना मुश्किल

मातंग समाज का मुख्य व्यवसाय बैंड बाजा है. शादी-ब्याह के सीजन के बाद गणेशोत्सव भी निकल गया. बावजूद इसके अनुमति नहीं दी गई. नवंबर में नवरात्रित्सव है. इसलिए 11 लोगों को अनुमति देने की मांग कर रहे है. हम लोग दूसरा कौनसा व्यवसाय करें? निर्माण कार्य मजदूरों को भी सरकार 2 हजार रुपये अनुदान दे रही है, लेकिन हमें तो वह भी नहीं मिल रहा. अब दो वक्त की रोटी भी मिलना मुश्किल हो गया है. इसका विचार प्रशासन ने करना चाहिए. 

-वसंत सरकटे, वसंत बैंजो पार्टी साबनपुरा 

हमारे व्यवसाय पर ही प्रश्नचिन्ह क्यों?

सरकार ने बोला एक और किया एक. अनलॉक करना तो सभी व्यवसायों को सुरक्षी के साथ अनलॉक करना था. जिससे से कुछ कर्मियों को वेतन मिल रहा तो कईयों को रोजगार नहीं है. शहर की टॉकिजें बंद रहने से मालिकों का 6 माह से नुकसान हो रहा है. बावजूद इसके आधा वेतन दे रहे है. वे भी कब तक नुकसान झेलेंगे. अब वेतन के अनुसार जरुरतें तो पूर्ण नहीं हो सकती. ऐसे में सरकार किश्त भी बंद नहीं कर पायी है, किराया भी देना ही पडता है. शाला की फीस भी भरना जरुरी है. दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त करें की जरुरतों को पूर्ण करें. ऐसा सवाल निर्माण होता है. टॉकिज तो सैनटाइजर के साथ आसन क्षमता से हाफ में शुरु करने की इच्छा जताई गई, लेकिन सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया. 

-राजेश उपलकर, मैनेजर वसंत टाकीज