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    नई दिल्ली. वैसे तो वो तारीख थी 6 मई 1967, जब देश के तीसरे राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने वाले थे। एक तरफ देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के खिलाफ जैसे पूरा विपक्ष था। तो वहीं इन्ही कांग्रेस (Congress) की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे डॉ.जाकिर हुसैन (Dr. Zakir Hussain)। इधर विपक्ष की तरफ से उम्मीदवार थे के.सुब्बाराव। अब तो जैसे पूरा विपक्ष ही एक तरह से डॉ.जाकिर हुसैन के खिलाफ एकजुट हो चुका था। तब देश में कुछ एक अलग माहौल भी बन चूका था, क्योंकि उस वक्त जनसंघ की तरफ से ये संदेश देने की कोशिश भी हुई थी कि एक मुस्लिम को देश के राष्ट्रपति के तौर पर कभी भी स्वीकार नहीं किया जा सकता।

    लेकिन फिर उसी दिन शाम को ऑल इंडिया रेडियो का प्रसारण बीच में ही रोका गया क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों की को घोषणा होनी थी। उस दिन रेडियो पर बताया गया कि कुल 8,38,170 वोटों में से 4,71,244 वोट हासिल करके जाकिर हुसैन देश के राष्ट्रपति का चुनाव जीत चुके हैं। के।  सुब्बाराव को 3,63,971 वोट मिले। ऐसे में उस दिन भारत को पहला मुस्लिम राष्ट्रपति मिला।

    तो दोस्तों, आज उन्हीं जाकिर हुसैन का जन्मदिन है, जिनका आज ही के दिन 1897 में जन्म हुआ था। वैसे तो उनका जन्म हैदराबाद में हुआ था, लेकिन मूल रूप से वह अफगानिस्तान के रहने वाले थे। ऐसे में उनके पूर्वज 18वीं सदी में अफगानिस्तान से भारत आ गए थे। जाकिर हुसैन का बचपन बड़े ही कठिनाइयों में गुजरा था। वह जब 10 साल के थे, तो उनके पिता गुजर चुके थे। वहीं 4 साल बाद उनकी मां का भी निधन हो गया। लेकिन यह भी उनकी मेहनत का नतीजा था कि पख्तूनों के आफरीदी कबीले से आने वाले इन्ही जाकिर हुसैन ने आगे जाकर बर्लिन की यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में PHD की।

    की थी जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी की स्थापना 

    ऐसे ही ब्रिटिश राज में सिर्फ 18 लोगों के साथ मिलकर जाकिर हुसैन ने एक नई यूनिवर्सिटी कि नींव रखी और नाम रखा- जामिया मिलिया इस्लामिया। इस यूनिवर्सिटी की स्थापना 29 अक्टूबर साल 1920 को हुई थी। फिर साल 1925 में इस यूनिवर्सिटी को अलीगढ़ से दिल्ली शिफ्ट किया गया था। 1926 से 1948 तक जाकिर हुसैन इसी यूनिवर्सिटी के कुलपति रहे। उसके बाद साल 1948 से 1956 तक वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलपति भी बने।

    ऐसे हुआ निधन

    वैसे तो डॉ.  जाकिर हुसैन की तबियत अक्सर खराब रहा करती थी। तभी साल 1957 में जब प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू उनके पास बिहार के राज्यपाल पद का प्रस्ताव लेकर गए, तो उन्होंने तबियत खराब होने की वजह से पहले तो साफ़ मना कर दिया था, लेकिन बाद में नेहरू के आग्रह करने पर वे मान भी गए।

    ऐसा भी बताया जाता है कि जाकिर हुसैन का हर दिन मेडिकल चेकअप हुआ करता था। ऐसे ही 3 मई 1969 की सुबह उनका फिर एक मेडिकल चेकअप होना था। ठीक पौने 11 बजे डॉक्टर उनका चेकअप करने पहुंच गए। तब उन्होंने कहा कि वो बाथरूम से वापस लौटकर चेकअप करवाएंगे, लेकिन जब आधे घंटे तक दरवाजा नहीं खुला, तो उनके असिस्टेंट ने उनका दरवाजा खटखटाया। लेकिन तब तक जाकिर हुसैन का निधन हो चुका था। उस समय उनके सम्मान में देश की सारी सरकारी इमारतों का तिरंगा झुका दिया गया था ।

    तो दोस्तों, इस तरह हमारे देश का पहला मुस्लिम राष्ट्रपति अपना कार्यकाल भी ठीक से पूरा नहीं कर सका था। लेकिन उनकी देशभक्ति का जज्बा आज भी हमारी  नई पीढ़ी को देश के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देता है।