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  • बदरीले मौसम का असर, किसानों फिर चिंता में

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भंडारा. मूसलाधार वर्षा व बदरीले मौसम की वजह से खरीफ की सभी फसलों पर कीड़ों ने आक्रमण कर दिया है. फसलों पर कीड़े लगने से उन पर रोगों ने जकड़ लिया. मूसलाधार वर्षा के कारण तुअर की फसल पर रोग लगने से इस बार उत्पादन कम होने की आशंका व्यक्त की जा रही है. जिले के किसान धान की फसल के साथ-साथ तुअर की फसल भी बोते हैं. मृग नक्षत्र की वर्षा शुरू होते ही किसान तुअर की फसल लगाने की तैयारी करने लगते हैं. तुअर की फसल के लिए ज्यादा पानी की जरूरत पड़ती है. नई फसल का बांध पर मिट्टी डालने पर तुअर का उत्पादन बहुत ज्यादा होता है.

हाथ आयी फसल बर्बाद
धान की फसल के बाद जिले में तुअर दूसरी सेबसे बड़ी पैदावार वाली फसल है. इस वजह से जिले के किसान ज्यादा क्षेत्र में तुअर का उत्पादन करते हैं. तुअर की फसल को बहुत ज्यादा रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती. अगर तुअर की फसल पर रोग का आक्रमण हुआ तो कीटनाशक दवा के छिड़काव की जरूरत पड़ती है. जून में लगाई गई तुअर की फसल सितंबर में तैयार हो जाती है. सितंबर के अंतिम सप्ताह में तुअर में फूल लग जाते हैं.

उम्मीदों पर फिरा पानी
पिछले अगस्त में मूसलाधार वर्षा व बाढ़ के कारण जिन किसानों ने सोच रखा था कि इस बार तुअर का उत्पादन ज्यादा होगा, किंतु जोरदार वर्षा तथा बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के किसानों को तुअर की फसल से हाथ धोना पड़ा. मूसलाधार वर्षा व बदरीयुक्त वातावरण के कारण बदली हुई परिस्थिति में तुअर की फसल पर रोगों ने कब्जा कर लिया है. तुअर की बुवाई मृग नक्षत्र में जून या जुलाई में पहले सप्ताह में की जाती है. सिंतबर-अक्टूबर में इस फसल पर फुल लगने शुरू होते हैं. जनवरी-फरवरी में तुअर की फसल तैयार होने की स्थिति में आ जाती है. फरवरी-मार्च के पहले सप्ताह तक तुअर फसल तैयार हो जाती है. उसके बाद फसल की कटाई की जाती है. तुअर की दाल मांग बहुत ज्यादा रहती है.